पैगंबर के खिलाफ टिप्पणी का मामला: नूपुर शर्मा के खिलाफ कथित तौर पर हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार भीम सेना चीफ को दिल्ली कोर्ट ने जमानत दी
दिल्ली कोर्ट ने भीम सेना के अध्यक्ष नवाब सतपाल तंवर को जमानत दे दी है, जिन्हें कथित तौर पर पैगंबर मुहम्मद पर उनकी कथित टिप्पणियों के लिए भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) के खिलाफ हिंसा का आह्वान करने के बाद गिरफ्तार किया गया था।
तंवर के खिलाफ आरोप यह था कि उन्होंने एक ट्वीट पोस्ट कर "नूपुर शर्मा की जीभ काटने वाले" को 1 करोड़ रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी। किया था और ट्वीट में इस्तेमाल किए गए शब्द अत्यधिक उत्तेजक थे और सार्वजनिक शांति के खिलाफ थे।
यह भी आरोप लगाया गया कि तंवर द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो के विश्लेषण पर यह पाया गया कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक ही तरह की दुश्मनी, नफरत और द्वेष को बढ़ावा दिया गया।
पटियाला हाउस कोर्ट के ड्यूटी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट देव सरोहा ने तंवर को इस शर्त पर जमानत दे दी कि जब भी जरूरत होगी वह जांच में पूरा सहयोग करेंगे।
केस डायरी पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि 9 जून को आईपीसी की धारा 504, 506 और 509 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। और पूरे वीडियो के विश्लेषण के एक दिन बाद धारा 153A को जोड़ा गया था।
कोर्ट ने कहा,
"यह पहली चीज है जो उस जल्दबाजी को दिखाती है जिसमें पहले एफआईआर दर्ज की गई और फिर पूरे वीडियो का विश्लेषण किया गया। पूछताछ के बावजूद जांच अधिकारी जवाब देने में विफल रहा है कि उसने एफआईआर दर्ज करने की इतनी जल्दी क्यों की। जब उन्होंने पूरा वीडियो नहीं देखा था।"
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच अधिकारी ने हरियाणा में तंवर के आवास पर छापेमारी की थी। हालांकि, जब वह वहां नहीं मिला तो जांच अधिकारी कर्मचारियों के साथ तंवर के पैतृक गांव गया और पता चला कि वह हरियाणा का रहने वाला है।
जांच अधिकारी के अनुसार, यह प्रस्तुत किया गया कि तंवर का स्थान उत्तर प्रदेश के देवबंद का पाया गया था और 16 जून को, जब उसका स्थान गुरुग्राम, हरियाणा का पाया गया, तब उसे गिरफ्तार किया गया।
जांच अधिकारी के आचरण पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा,
"ये परिस्थितियां कुछ प्रासंगिक सवाल भी उठाती हैं। जब जांच अधिकारी गांव खांडसा गए थे, तो वह आरोपी के घर क्यों नहीं गए। वह केवल गांव पहुंचे और जानकारी प्राप्त की कि आरोपी कहीं और रहता है।"
कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि जांच अधिकारी ने सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत गांव के पते पर या गुरुग्राम, हरियाणा में नोटिस लगाने का प्रयास क्यों नहीं किया।
अदालत ने कहा,
"इससे पता चलता है कि अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य के फैसले का पालन करने का कोई प्रयास नहीं किया गया और जांच अधिकारी बिना अनुपालन के आरोपी को गिरफ्तार करना चाहता था।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि 17 जून को ड्यूटी एमएम के आदेश के बावजूद कोई मेडिकल रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई। यह भी नोट किया गया कि तंवर की गंभीर चिकित्सा स्थिति को स्वीकार कर लिया गया था और अभियोजन पक्ष ने उस पर सवाल नहीं उठाया था।
कोर्ट ने कहा,
"यह भी तथ्य कि आरोपी/आवेदक भीम सेना का सदस्य है और भीम सेना कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है। इसके अलावा, कोई डीडी प्रविष्टि नहीं मिली है जो यह दिखा सकती है कि जांच अधिकारी उनके द्वारा बताए गए किसी भी स्थान पर गया था।"
तंवर की ओर से प्रस्तुत किया गया कि उन्हें इस मामले में झूठा फंसाया गया और गिरफ्तारी के बाद उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर किया गया जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि यदि वह हिरासत में रहता है, तो उसकी मृत्यु होने की सबसे अधिक संभावना है और वह सीआरपीसी की धारा 437 के तहत जमानत पर रिहा होने के योग्य है।
यह तर्क दिया गया कि आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध केवल तीन साल के कारावास के साथ दंडनीय है और अर्नेश कुमार मामले के दिशा-निर्देशों के अनुसार सीआरपीसी की धारा 41A के तहत कोई नोटिस नहीं दिया गया था।
इसके साथ ही, कोर्ट ने 50,000 रुपए का निजी बॉन्ड और इतनी ही राशि का एक जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
तंवर की ओर से एडवोकेट पवन कुमार, एडवोकेट औरंगजेब खान और एडवोकेट महमूद प्राचा पेश हुए।
आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: