'नौकरियों के फर्जी रैकेट से निपटने के लिए उद्यमियों और स्व-रोजगार योजनाओं को बढ़ावा दें': मद्रास हाईकोर्ट ने उस PIL का निपटारा किया, जिसे जज को फर्जी नौकरी का प्रस्ताव मिलने के बाद शुरू किया गया था
मद्रास हाईकोर्ट ने गुरुवार को 2017 की एक स्वतः संज्ञान जनहित याचिका का निस्तारण किया। दरअसल, हाईकोर्ट के जज जसिटस एस वैद्यनाथन को एक फर्जी प्लेसमेंट एजेंसी ने संपर्क किया था और उन्हें नौकरी का संदिग्ध ऑफर दिया था, जिसके बाद उक्त याचिका शुरु की गई थी।
जस्टिस एन किरुबाकरण और जस्टिस एस वैद्यनाथन की पीठ ने गुरुवार को नौकरियों के फर्जी रैकेटों के खतरे से निपटने के लिए अधिक रोजगार के अवसर पैदा करने और उद्यमिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया।
कोर्ट ने कहा, "नौकरी के फर्जी रैकेटों के खतरे को दूर करने और बेरोजगारी की समस्या निपटने के लिए, हम केंद्र और तमिलनाडु, दोनों सरकार को उद्यमियों को बढ़ावा देने और युवाओं को उनके कौशल के आधार पर स्वरोजगार के अवसर पैदा करने का सुझाव देते हैं, ताकि भविष्य की पीढ़ी को ऐसे धन उगाहने वाले गिद्धों के शिकार होने से बचाया जा सके।"
कोर्ट ने कहा कि संबंधित सरकार को स्व-रोजगार योजनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए और सरकारी अधिकारियों को कर लाभ में पर्याप्त कटौती के साथ बैंकों से ऋण प्राप्त करने में युवाओं की सहायता करनी चाहिए।
मौजूदा मामले में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा धारक 25 वर्षीय भारतीराजा ने कुछ फर्जी भर्ती एजेंसियों को जस्टिस वैद्यनाथन और मद्रास हाईकोर्ट के अन्य जजों के कॉन्टेक्ट डिटेल साझा किए थे। ये एजेंसियां नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को नियमित रूप से धोखा दे रही थीं। भारतीराजा को खुद एक ऐसी फर्जी नौकरी के प्रस्ताव का शिकार होना पड़ा था, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने रैकेट की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित करने का फैसला किया था।
हालांकि कोर्ट ने गुरुवार को भारतीराजा को भविष्य में ऐसी हरकतों को दोहराने के खिलाफ चेतावनी दी, लेकिन पुलिस अधिकारियों को उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया क्योंकि उनका कोई आपराधिक इरादा नहीं था।
सीबी-सीआईडी की जांच के जरिए अदालत के ध्यान में लाया गया था कि तमिलनाडु की मूल निवासी चित्रा नाम की एक महिला नौकरी रैकेट के पीछे मुख्य अपराधी थी। वह फर्जीवाड़े में अपना नाम शिवानी अग्रवाल और भूमि भारती बताती थी और बेरोजगार युवकों से 9,28,850 रुपए की ठगी की थी। उसे 2017 में गिरफ्तार किया गया था और बाद में 2018 में सशर्त जमानत पर रिहा कर दिया गया था।
कोर्ट को यह भी बताया गया कि चित्रा के साथ प्रताप उर्फ राजू नाम का सह-साजिशकर्ता भी था, हालांकि सीबी-सीआईडी उसकी पहचान स्थापित करने या ऐसे व्यक्ति का पता लगाने में असमर्थ रही। नतीजतन, मामले में अभी तक कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया था।
कोर्ट ने कहा कि सह-आरोपियों के मिलने का इंतजार किए बिना चित्रा के खिलाफ कार्रवाई जल्द से जल्द शुरू की जानी चाहिए।
" इस मामले में प्राथमिकी 20.10.2017 की शुरुआत में दर्ज की गई थी। भले ही एक महिला आरोपी को पकड़ लिया गया हो, हिरासत में भेज दिया गया हो और बाद में, निचली अदालत द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया गया हो, फिर भी जांच धीमी गति से चल रही है, क्योंकि अन्य सह-अभियुक्तों के ठिकाने का पता नहीं चल रहा है। इसलिए, हमारा विचार है कि प्रतिवादी पुलिस, अन्य आरोपियों की तलाश में समय बिताने और बिना किसी प्रगति के एक आपराधिक मामले को लंबे समय तक स्थगित रखने के बजाय, आरोपी चित्रा के संबंध में मामले को विभाजित करे और अन्य सभी औपचारिकताओं को पूरा करे, जैसेकि संबंधित क्षेत्राधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोप पत्र दाखिल करना (आज से एक महीने के भीतर), यदि पहले से दायर नहीं किया गया है, तो मुकदमे के सुचारू संचालन के लिए सहयोग करना आदि।"
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को किसी भी समय 7 कार्य दिवसों से आगे मामले को स्थगित किए बिना मामले की सुनवाई में तेजी लाने का निर्देश दिया। मामले की सुनवाई चार्जशीट दाखिल होने की तारीख से 6 महीने के भीतर पूरी करने का भी आदेश दिया गया था ।
इसमें शामिल आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि चल रही जांच की प्रगति को समय-समय पर कोर्ट के रजिस्ट्रार को सूचित किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने आगे महामारी दौरान फर्जी नौकरियों के रैकेट बढ़ने पर टिप्पणी की और कहा-
"हाल ही में, कई बेरोजगार युवाओं को नौकरी के जालसाजों और असामाजिक तत्वों द्वारा धोखा दिया गया है, विशेष रूप से वर्तमान महामारी की स्थिति का लाभ उठाकर, जबकि हजारों लोगों ने अपनी नौकरी खो रहे हैं। गिरोह पहले बेरोजगार युवाओं को निशाना बनाते हैं और उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों, और कभी-कभी प्रतिष्ठित निजी संगठनों में आकर्षक नौकरी दिलाने का लालच देते हैं। उनके फर्जी शब्दों पर विश्वास करके और गरीबी के कारण, ऐसे युवा आसानी से उनकी दुष्टता के शिकार हो जाते हैं और अपने पैसे उनके खाते में स्थानांतरित कर देते हैं। और जब तक उन्हें एहसास होता है कि उन्हें धोखा दिया गया है, सब कुछ उनके हाथ से लगभग निकल गया होगा, जो उनके जीवन की पीड़ा को और बढ़ा देता है।
अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए मामले को फरवरी 2022 में सूचीबद्ध किया गया है ।
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