सोशल मीडिया की निगरानी के लिए उपकरण खरीदें, जल्द से जल्द विशेष प्रकोष्ठ स्थापित करें: मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा

Update: 2022-10-22 13:27 GMT
God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि यूट्यूब पर कई व्यक्ति "गलत और भ्रामक" सूचनाओं का प्रचार कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक पदाधिकारियों, राज्य और केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ "नाराज़गी" प्रकट करने के लिए डिजिटल मीडिया का उपयोग "न केवल उनकी निजताऔर प्रतिष्ठा पर व्यक्तिगत हमला होता है" बल्‍कि उनकी प्रतिष्ठा को भी नुकसान होगता और उनके काम पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।

ज‌स्टिस एम दंडपाणी ने कहा, "उक्त अधिकारियों के बारे में जनता के बीच एक राय को फैला दिया जाता है, जो राष्ट्र के हित में नहीं होता।"

अदालत ने शुरू में कहा कि डेढ़ दशक पहले केवल प्रिंट मीडिया समाचार प्रसारित करता था। मीडिया अपनी रिपोर्टिंग के प्रति बहुत सचेत था, जिसका नतीजा यह रहता था कि नागरिकों को अच्छी जानकारी मिलती थी।

"हालांकि डिजिटल मीडिया का उभार, विशेष रूप से सोशल मीडिया, और संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए अधिकारों, जिसे वे ठीक से समझ में नहीं पाते, के साथ उसके गठजोड़, नागरिक विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से देश में तबाही मचा रहे हैं, और उस विश्वसनीयता और सम्मान को कम कर रहे हैं, जो दुनिया भर के अन्य देशों में भारत माता के प्रति है।"

सोशल मीडिया की निगरानी

अदालत ने 29 जनवरी 2020 को राज्य के पुलिस महानिदेशक को "लज्जाहीन अपराधियों" पर नज़र रखने के लिए राज्य स्तर और जिला स्तर पर प्रत्येक स्टेशन हाउस में अलग, समर्पित और विशेष सेल का गठन करने का निर्देश दिया था।

तमिलनाडु के इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन, जिसे सोशल मीडिया की निगरानी के लिए उपकरणों की खरीद के लिए बोलियां आमंत्रित करने के लिए कहा गया था, उसने 18 अक्टूबर को अदालत को बताया कि निविदाएं प्राप्त हो गई हैं और उन्हें एक सप्ताह के भीतर खोला जाएगा। उन्होंने कोर्ट को बताया ‌था कि इस संबंध में एक रिपोर्ट अगली सुनवाई तक कोर्ट में दाखिल किया जाएगा।

कोर्ट ने कहा,

"उक्त बयान दर्ज किया गया है और प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे निविदा खोलने पर उपकरणों की खरीद के लिए कदम उठाएं और जल्द से जल्द विशेष प्रकोष्ठ स्थापित करें, क्योंकि मामला इस अदालत के समक्ष डेढ़ साल से अधिक समय से है। विशेष प्रकोष्ठों के गठन और कामकाज में बहुत प्रगति हुई है, जिन्हें गठित करने का निर्देश दिया गया है।"

पीठ ने आगे कहा कि अदालत ने आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ विशेष प्रकोष्ठों के गठन का निर्देश दिया था ताकि जब भी शिकायतें प्राप्त हों, उनसे निपटा जा सके और "अपमानजनक कृत्यों" को शुरू में ही समाप्त किया जा सके।

कोर्ट ने कहा,

"यह न्यायालय किसी विशेष उदाहरण या चैनल की ओर इशारा नहीं कर रहा है, जो राज्य और केंद्र सरकार और संवैधानिक पदाधिकारियों में व्यक्तियों और अधिकारियों को अपमानित करता है।"

अदालत ने कहा कि वह "खतरे पर अंकुश लगाने के लिए अपनी न्यायिक शक्ति का इस्तेमाल कर सकती है" और समाज में "सामाजिक मर्यादा और सद्भाव" बनाए रख सकती है, लेकिन यह कानून लागू करने वाली एजेंसियों का कर्तव्य है कि वे अधिक सतर्क रहें और प्रभावित व्यक्तियों के बचाव में आएं, बजाए प्रत्येक मामले में हस्तक्षेप की जिम्मेदारी न्यायालय के सिर पर रखने के बजाय।

अदालत ने कहा, "केवल इस विचार को ध्यान में रखते हुए इस न्यायालय ने विशेष प्रकोष्ठों का गठन किया था और इसलिए, विशेष प्रकोष्ठों का जल्द से जल्द संचालन अत्यंत महत्वपूर्ण है।"

अदालत ने डीजीपी से विस्तृत रिपोर्ट मांगते हुए और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए मामले को दो नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

अदालत एक व्यक्ति की जमानत के मामले में विशेष प्रकोष्ठ के गठन के संबंध में आदेश पारित करती रही है, जिस पर न केवल एक वकील के खिलाफ, बल्कि न्यायालय के एक सेवारत न्यायाधीश और पूरी न्याय प्रणाली के खिलाफ "अपमानजनक और निराधार बयान पोस्ट करने का आरोप लगाया गया था"।

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