डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही को केवल अनुच्छेद 227 के तहत चुनौती दी जा सकती है, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत नहींः मद्रास हाईकोर्ट फुल बेंच
मद्रास हाईकोर्ट की एक फेल बेंच ने गुरुवार को कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अदालत की शक्ति को लागू करके नहीं केवल संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
जस्टिस एन सतीश कुमार के इस मामले को जस्टिस पीएन प्रकाश, जस्टिस आरएमटी टीका रमन और जस्टिस एडी जगदीश चंडीरा की पीठ के पास भेजा था। जस्टिस एन सतीश कुमार की पीठ सीआरपीसी की धारा 482 के प्रावधानों को लागू करते हुए डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर आवेदन को रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी। पीठ ने इन याचिकाओं पर विचार करने के बाद अपने आदेश में कहा कानूनी सवाल पर डिवीजन बेंच का हालिया फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुरूप नहीं था।
अदालत की एक डिवीजन बेंच ने फैसला सुनाया कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही दीवानी प्रकृति की है और यह भी कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की कार्यवाही में सीआरपीसी की धारा 482 की याचिका सुनवाई योग्य है। हालांकि, एकल न्यायाधीश के अनुसार, यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुरूप नहीं था और इस प्रकार, उन्होंने निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दियाः
क्या डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत चुनौती दी जा सकती है?
क्या उक्त उपाय एक पीड़ित व्यक्ति के पास मजिस्ट्रेट के पास जाने और, यदि आवश्यक हो तो सत्र न्यायालय में डी.वी. अधिनियम की धारा 29 के तहत अपील दायर करने से पहले उपलब्ध है?
याचिका का निपटारा करते हुए, फुल बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट के पास सीआरपीसी की धारा 482 के माध्यम से घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही को रद्द करने का अधिकार नहीं है। कहा गया कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत, एक मजिस्ट्रेट अदालत आवेदनों को सुनने के लिए निर्दिष्ट/नामित न्यायालय है। चूंकि मजिस्ट्रेट की अदालत आपराधिक अदालत नहीं है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इस प्रकार हाईकोर्ट केवल अनुच्छेद 227 के तहत घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत चल रही कार्यवाही के खिलाफ दायर याचिका पर विचार कर सकता है।
इस प्रकार अदालत ने डॉ.पी.पथमनाथन बनाम वी.मोनिका मामले में मद्रास हाईकोर्ट की एकल पीठ के निर्णय को बरकरार रखा कि डीवी अधिनियम के तहत कार्यवाही दीवानी प्रकृति की है।
उपरोक्त मामले में, जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने घरेलू हिंसा अधिनियम के उद्देश्यों के विवरण पर ध्यान दिया, जो बताता है कि अधिनियम मुख्य रूप से आईपीसी की धारा 498-ए के तहत किसी अपराध के पीड़ितों के लिए सिविल लॉ उपचार की अनुपस्थिति को संबोधित करने के लिए अधिनियमित किया गया है और महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होने से बचाने और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सिविल लॉ के तहत एक उपाय भी प्रदान करता है।
फुल बेंच ने यह भी कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्यवाही को फैमिली कोर्ट में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इन अदालतों के पास ऐसे मामलों से निपटने के लिए केवल अतिरिक्त अधिकार क्षेत्र होता है। अदालत ने कहा कि एक पीड़ित व्यक्ति सत्र न्यायालय में अपील दायर कर सकता है और फिर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत नहीं बल्कि अनुच्छेद 227 के तहत आगे की अपील में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
फुल बेंच ने आगे स्पष्ट किया कि आदेश केवल संभावित रूप से लागू होगा। इसलिए, उन मामलों में जहां मामला पहले ही फैमिली कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया है, उनमें इस बिंदु पर हाईकोर्ट के आदेश के माध्यम से हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने कहा, ''जो हो चुका है, उसे होने दें। हमें भानुमती का पिटारा क्यों खोलना चाहिए? चूंकि ये विवाद वैवाहिक प्रकृति के हैं, इसलिए अगर इसे एक अदालत से दूसरी अदालत में स्थानांतरित किया जाता है तो यह पक्षों की पीड़ा को और बढ़ा देगा।''
केस टाइटल- अरुल डेनियल बनाम सुगन्या व अन्य जुड़े मामले
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एमएडी) 467
केस नंबर- सीआरएल ओपी 31852/2022