कैदियों के अधिकार-कलकत्ता हाईकोर्ट ने एचआईवी पॉजिटिव एनडीपीएस आरोपी को ''बेहतर इलाज कराने के लिए'' अंतरिम जमानत दी

Update: 2022-11-30 06:00 GMT

Calcutta High Court 

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एचआईवी पॉजिटिव रोगी होने के कारण एनडीपीएस एक्ट के तहत आरोपी एक महिला को तीन महीने की अंतरिम जमानत दे दी है। उस पर गांजे की व्यावसायिक मात्रा रखने का आरोप है।

जस्टिस अजय कुमार गुप्ता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने कहा,

''2017 के अधिनियम की धारा 31 की उप-धारा (1) राज्य की देखभाल और हिरासत में प्रत्येक व्यक्ति को अधिनियम के तहत जारी दिशानिर्देशों के अनुसार एचआईवी उपचार सेवाओं का अधिकार देती है। उपरोक्त तथ्य के मद्देनजर, हमारी राय यह है कि दिशानिर्देशों के अनुसार याचिकाकर्ता का बेहतर इलाज सुनिश्चित करने के लिए उसे अंतरिम जमानत पर रिहा किया जा सकता है।''

याचिकाकर्ता ने ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस और एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 पर भरोसा करते हुए कहा कि वह अधिनियम के प्रावधानों के तहत जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार इलाज कराने की हकदार है। उसके खिलाफ एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20 (बी) (ii) (सी) और 29 के तहत मामला दर्ज किया गया था और उसने चिकित्सा आधार पर जमानत मांगी थी।

अधिनियम की धारा 34 (2) के साथ पठित धारा 31 राज्य की हिरासत में एचआईवी रोगियों के उपचार और देखभाल के लिए प्रावधान करती हैं और कानूनी कार्यवाही में ऐसे व्यक्तियों के आवेदनों का प्राथमिकता से निपटान करने के लिए कहा गया है।

उसने प्रस्तुत किया कि अप्रैल 2021 में उसे अपनी बीमारी के बारे में पता चला था और उसे सुधार गृह में उचित उपचार नहीं मिल पा रहा है। तदनुसार, उसने प्रस्तुत किया कि चूंकि वह राज्य की हिरासत में रहते हुए उचित देखभाल पाने की हकदार है और राज्य उसे उचित उपचार प्रदान करने में विफल हो रहा है, इसलिए वह जमानत पर रिहा होने की हकदार है।

याचिकाकर्ता ने भवानी सिंह बनाम राजस्थान राज्य, स्पेशल लीव टू अपील (क्रिमिनल) नंबर 2225/2022 मामले पर भी भरोसा किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने एचआईवी से पीड़ित एक अभियुक्त को इस आधार पर जमानत दे दी थी कि प्रतिरक्षा से समझौता किए जाने के कारण, उसे अस्वास्थ्यकर स्थिति में बार-बार संक्रमण होने का खतरा था और रोगी को नियमित उपचार और फॉलोअप की आवश्यकता थी।

लोक अभियोजक ने इस आधार पर जमानत याचिका का विरोध किया कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत अपराध किए जाने से पहले ही आवेदक एचआईवी से पीड़ित थी। यह भी प्रस्तुत किया गया कि आरोपी के कब्जे से 28.190 किलोग्राम गांजा बरामद किया गया था और मादक पदार्थ की व्यावसायिक मात्रा को देखते हुए और एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत प्रतिबंध को देखते हुए, वह जमानत पर रिहा होने की हकदार नहीं है।

अदालत ने अपने पूर्व के आदेश में सुधार गृह से एक रिपोर्ट मांगी थी, जहां उसे हिरासत में रखा गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसे उचित देखभाल और उपचार मिल रहा है या नहीं। इस रिपोर्ट के मिलने के बाद अदालत ने कहा कि वह सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत याचिका पर विचार करेगी।

कोर्ट ने कहा,

''उक्त अधिनियम की धारा 31 में कहा गया है कि एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति इस संबंध में जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार अपने इलाज के संबंध में राज्य की देखभाल और हिरासत पाने का हकदार है। धारा 31 की उप-धारा 2 में कहा गया है कि राज्य की देखभाल और हिरासत में रहने वाले व्यक्तियों में मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे व्यक्ति भी शामिल हैं। उपरोक्त वैधानिक प्रावधान के मद्देनजर, याचिकाकर्ता राज्य की उचित देखभाल और हिरासत की हकदार है क्योंकि वह एचआईवी से पीड़ित रोगी है।''

केस टाइटल- इन रेः तुलु बिस्वास

साइटेशन- सी. आर. एम. (एनडीपीएस) 1261/2022

कोरम-जस्टिस अजय कुमार गुप्ता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची

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