सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को पेंशन लाभ देने में देरी के लिए अनिश्चित वित्तीय स्थिति कोई आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-03-12 07:30 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि निगम की अनिश्चित वित्तीय स्थिति सेवानिवृत्त कर्मचारियों के कारण होने वाले पेंशन लाभों के भुगतान में देरी का आधार नहीं हो सकती।

जस्टिस इरशाद अली की खंडपीठ ने शिव कुमार बहादुर सिंह द्वारा दायर एक याचिका पर यह टिप्पणी की। बहादुर ने ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 4 के संशोधित प्रावधानों के मद्देनजर ब्याज सहित ग्रेच्युटी की पूरी राशि का भुगतान करने के लिए सरकारी अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की।

याचिकाकर्ता तृतीय श्रेणी का सरकारी कर्मचारी है। प्रतिवादियों ने ग्रेच्युटी की पूरी राशि का भुगतान करना स्वीकार किया और मई, 2021 के महीने में 19,200/- रुपये का भुगतान भी किया। याचिकाकर्ता के वकील के अनुसार, तब से शेष राशि रु.3.06 लाख और उस पर अर्जित वैधानिक ब्याज अभी भी बकाया है।

इसके बाद यह प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादियों ने एक शर्त रखते हुए कहा कि निगम की अनिश्चित वित्तीय स्थिति के कारण भविष्य में जब भी धन उपलब्ध होगा, याचिकाकर्ता को भुगतान किया जाएगा।

याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता की तरह कर्मचारी की ग्रेच्युटी राशि नियोक्ता की इच्छा पर वितरित करने के लिए उचित नहीं है। याचिकाकर्ता के पास सेवानिवृत्ति की तिथि से एक उचित समय के भीतर अपनी ग्रेच्युटी राशि का भुगतान करने का निहित अधिकार है।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों के वकील ने इस तथ्य को दोहराया कि जहां निगम याचिकाकर्ता के पेंशन लाभ के भुगतान के लिए अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करता है, वहीं निगम की अनिश्चित वित्तीय स्थिति को देखते हुए तत्काल भुगतान नहीं किया जा सकता है।

याचिकाकर्ताओं के वकील को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि पेंशन लाभ नियोक्ता की प्यारी इच्छा पर वितरित किया जाने वाला इनाम नहीं है। इस संबंध में न्यायालय ने डी.एस. नाकारा बनाम भारत संघ एआईआर 1983 सुप्रीम कोर्ट के मामले 130 के मामले का उल्लेख किया।

इसी तरह, कोर्ट ने कपिला हिंगोरानी बनाम बिहार राज्य (2003) 6 एससीसी 1 के मामले का भी उल्लेख किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक सेवानिवृत्त कर्मचारी के पेंशन लाभ में देरी नियोक्ता की अनिश्चित वित्तीय स्थिति भुगतान में देरी या भुगतान नहीं करने का वैध आधार नहीं है।

उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादी चार महीने की अवधि के भीतर याचिकाकर्ताओं की बकाया ग्रेच्युटी राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता को ब्याज के अनुदान पर भी उसी समय अवधि के भीतर विरोधी पक्षों द्वारा विचार किया गया था। नतीजतन, रिट याचिका को प्रवेश चरण में ही अनुमति दी गई थी।

केस शीर्षक: शिव कुमार बहादुर सिंह बनाम यूपी राज्य, के माध्यम से प्रिं. सचिव डेयरी विकास और अन्य

साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 109

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