बलात्कार का आरोप लगाकर झूठी एफआईआर दर्ज करने की चलन से सख्ती से निपटना होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह उस महिला पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, जिसने स्वीकार किया कि उसने 4 पुरुषों के खिलाफ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का झूठा आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
न्यायालय ने यह भी कहा कि एफआईआर दर्ज करने और बलात्कार के झूठे गंभीर आरोप लगाने की चलन की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इस तरह के चलन से "सख्ती" से निपटना होगा।
जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने आगे टिप्पणी की,
"आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करके व्यक्तिगत विवादों को स्थापित करने के लिए उपकरण के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो निश्चित रूप से झूठी हैं।"
इसके साथ अदालत ने 4 आरोपियों द्वारा दायर रिट याचिका स्वीकार कर लिया और उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376, 377, 313, 406 और 506 के तहत दर्ज की गई एफआईआर रद्द कर दी।
न्यायालय उन आरोपी व्यक्तियों द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार कर रहा था, जिन्होंने अदालत में यह कहते हुए याचिका दायर की कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर मनगढ़ंत थी।
अदालत को आगे बताया गया कि याचिकाकर्ता नंबर 1 और पहली सूचनाकर्ता (कथित बलात्कार पीड़िता) ने अपनी शादी को संपन्न कर ली, क्योंकि दोनों बालिग हैं और अब वे पति-पत्नी के रूप में अपनी स्वतंत्र इच्छा से खुशी-खुशी एक साथ रह रहे हैं।
इसके अलावा, अदालत को यह भी सूचित किया गया कि पहली शिकायतकर्ता/कथित पीड़िता द्वारा पुलिस आयुक्त, प्रयागराज को संबोधित आवेदन दायर किया गया, जिसमें स्वीकार किया गया है कि उसने अपने और याचिकाकर्ता नंबर 1 बीच कुछ मतभेद पैदा होने पर "आवेश में" झूठी एफआईआर दर्ज कराई।
अदालत के समक्ष उसके वकील ने आरोपी व्यक्तियों के वकील द्वारा की गई दलील को दोहराया और कहा कि अब कथित पीड़िता याचिकाकर्ता नंबर 1/अभियुक्त उसकी पत्नी के साथ रह रही है, इसलिए उसने प्रार्थना की कि रिट याचिका रद्द कर दी जाए।
अपने समक्ष पक्षकारों द्वारा की गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए और कथित पीड़िता द्वारा दायर आवेदन पर गौर करते हुए न्यायालय ने शुरुआत में टिप्पणी की कि यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ बलात्कार के गंभीर आरोप झूठे लगाए गए, जिससे केवल एक ही निष्कर्ष निकलता है- झूठी एफआईआर "याचिकाकर्ता पर दबाव डालने और/या हिसाब बराबर करने के लिए" दर्ज की गई।
इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि बलात्कार के झूठे आरोप लगाते हुए ऐसी एफआईआर दर्ज करने की प्रथा को सख्ती से निपटा जाना चाहिए, अदालत ने याचिका की अनुमति देते हुए कथित पीड़िता को 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट रमेश चंद्र अग्रहरि उपस्थित हुए।
केस टाइटल - शिवम कुमार पाल @ सोनू पाल और 3 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य [आपराधिक विविध। रिट याचिका नंबर- 11560/2023]
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