राजनेता खुद को कानून से ऊपर समझते हैं, इस खतरे से सख्ती से निपटने की जरूरत: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यूपी विधानसभा में एक पूर्व विधायक की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। उक्त पूर्व विधायक को निचली अदालत ने लॉकअप में एक व्यक्ति पर हमला करने के लिए दोषी ठहराया था।
हाईकोर्ट ने पूर्व विधायक की जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि,
"आजकल विधायिका और राजनीतिक व्यक्ति खुद को कानून से ऊपर सोच रहे हैं। इस खतरे को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इससे सख्ती के साथ निपटा जाना चाहिए।"
जस्टिस मो. असलम की पीठ हसरतुल्ला शेरवानी (पूर्व विधायक) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें निचली अदालत के दोषसिद्धि आदेश के खिलाफ अपील की लंबितता के दौरान सजा को निलंबित करने और जमानत पर रिहा करने की मांग की गई थी [उन्हें आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत 'हत्या का प्रयास' सहित दोषी ठहराया गया था]
यह ध्यान दिया जा सकता है कि अदालत ने पूर्व विधायक की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने अन्य (कुल 8 व्यक्तियों में) की जमानत याचिका की अनुमति दी। जमानत पाए व्यक्ति भी वर्तमान मामले में शामिल हैं। उन्होंने अपनी जमानत याचिका के साथ-साथ मुख्य आरोपी (पूर्व विधायक) की याचिका को स्थानांतरित कर दिया था।
संक्षेप में तथ्य
अभियोजन पक्ष के अनुसार, सितंबर 2012 में यूपी के कासगंज जिले में शमसाद (मुखबिर) नामक व्यक्ति द्वारा एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि मई 2011 में उसके खिलाफ झूठी रिपोर्ट दर्ज की गई। इसके आधार पर पुलिस ने मुखबिर को गिरफ्तार कर लॉकअप में बंद कर दिया है।
इसके बाद अगस्त, 2021 में जब वह लॉकअप में था, आरोपी-अपीलकर्ता हसरतुल्लाह शेरवानी (तत्कालीन विधायक) अपने रिश्तेदारों और समर्थकों सहित अन्य व्यक्तियों के साथ थाने आया और पुलिस को उसे इतनी बुरी तरह से पीटने का निर्देश दिया कि वह पांव और हाथ से अपंग हो जाएंगे। ऐसे नहीं करने पर पुलिसवाले बुरे परिणामों के लिए तैयार होंगे।
उसके बाद आरोपी-अपीलकर्ता हसरतुल्लाह शेरवानी (राइफल और बंदूक से लैस) अपने समर्थकों (डंडा से लैस) के साथ पुलिस लॉक-अप की ओर बढ़े और बाहर से लॉक-अप में उसका हाथ पकड़ा और राइफल और अन्य बंदूकों, लाठी और डंडा के बट से उसे मारने का इरादा से उसके साथ मारपीट की।
हालांकि, चूंकि एस.ओ. राममूर्ति यादव ने बीचबचाव किया तो उसे बचाया जा सका।
न्यायालय के समक्ष किए गए सबमिशन
अभियुक्त-अपीलार्थी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि इस मामले में मुखबिर/घायल मुकर गया और अन्य प्रत्यक्षदर्शी भी मुकर गए। केवल दो पुलिस कर्मी सेवानिवृत्त हुए हैं। एसआई फूल सिंह और एच.सी.टी. छोटे लाल हा ने अभियोजन पक्ष का समर्थन किया।
आगे यह तर्क दिया गया कि मुखबिर के शरीर पर पाए गए घाव साधारण प्रकृति के थे।
दूसरी ओर, उनकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए राज्य के वकील ने तर्क दिया कि हसरतुल्लाह शेरवानी विधानसभा के चुने गए सदस्य थे और उन्होंने सभी हदें पार कर दी थी। मुखबिर को थाने के लॉकअप पर उसे पास बुलाकर और खींचकर पीटा है।
न्यायालय की टिप्पणियां
कोर्ट ने शुरुआत में चोट की रिपोर्ट का अवलोकन किया और पाया कि यह प्रथम दृष्टया प्रथम सूचना रिपोर्ट की सामग्री का समर्थन करता है। इसलिए, उपरोक्त परिस्थितियों में कोर्ट का मत है कि चश्मदीदों के मुकरने का कोई मतलब नहीं है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी-अपीलकर्ता हसरतुल्ला शेरवानी के प्रभाव में गवाह मुकर गए हैं।
गौरतलब है कि आरोपित विधायक का कर्तव्य है कि वह विधानसभा में कानून के दुरुपयोग के मुद्दे को उठाएं और उसका समाधान करवाएं, लेकिन इसके बजाय उन्होंने खुद कानून का दुरुपयोग किया और कानून को अपने हाथ में लिया।
अदालत ने उनकी जमानत याचिका को खारिज करते हुए इस प्रकार टिप्पणी की:
"पूर्व विधायक ने पुलिस कर्मियों पर थर्ड डिग्री अपनाने और मृतक को पुलिस लॉक अप में बंद करने के लिए दबाव डाला। आरोपी का यह कृत्य पुलिस तंत्र का दुरुपयोग है। इसलिए, उसका कृत्य निंदा के बजाय सहानुभूति का पात्र नहीं है।"
हालांकि, अदालत ने अन्य आरोपी-अपीलकर्ताओं की जमानत याचिका को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि उन्होंने उसका अनुसरण किया और अपील के लंबित रहने के दौरान उन्हें दी गई सजा निलंबित रहेगी।
अदालत ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उनकी अपील को भी 10 जनवरी, 2022 को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
केस का शीर्षक - हसरतुल्ला शेरवानी और आठ अन्य बनाम यूपी राज्य
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