"राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रशासन के खिलाफ विरोध करने का अधिकार है": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के मंत्री के खिलाफ मामला खारिज किया

Update: 2022-12-09 04:08 GMT

भाजपा विधायक दिनेश प्रताप सिंह

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश सरकार में मौजूदा मंत्री और भाजपा विधायक दिनेश प्रताप सिंह के खिलाफ दर्ज 2013 के एक आपराधिक मामले को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने कहा,

"वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतंत्र में, राजनीतिक कार्यकर्ता और अन्य जन-उत्साही व्यक्तियों को कथित भेदभाव/अत्याचार, निष्क्रियता, चूक या राज्य प्राधिकरणों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करके प्रशासन के खिलाफ विरोध का अधिकार है।"

जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि राज्य सरकार ने पहले ही अभियोजन पक्ष से हटने की अनुमति दे दी है और जिसके अनुसार सीआरपीसी की धारा 321 के तहत आवेदन उस अदालत के समक्ष पहले ही दायर किया जा चुका है जहां मामला 2013 से लंबित है।

पूरा मामला

प्राथमिकी के आरोप के अनुसार, आवेदक [दिनेश प्रताप सिंह, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)] ने 40-50 लोगों के साथ रायबरेली-सुल्तानपुर रोड को एक मामले की निष्पक्ष जांच की मांग के लिए जाम कर दिया था। इस मामले में स्थानीय विधायक भी शामिल थे।

हालांकि, चूंकि पुलिस ने एफआईआर में उक्त विधायक का नाम नहीं लिया था, इसलिए एक सार्वजनिक शख्सियत होने के नाते, आवेदक ने निष्पक्ष जांच के लिए प्रशासन पर दबाव बनाने के प्रयास में विरोध प्रदर्शन किया। इसके बाद, उन पर आईपीसी की धारा 141, 145, 283 और 341 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अदालत के समक्ष, उनके वकील ने तर्क दिया कि सिंह के खिलाफ दायर चार्जशीट में ही यह खुलासा नहीं होगा कि वह या उनके साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल कोई अन्य व्यक्ति किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल था।

यह भी प्रस्तुत किया गया कि अगर लोकतंत्र में लोगों के विरोध के अधिकार, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत गारंटीकृत है, का गला घोंट दिया जाता है या विरोध को दबा दिया जाता है, तो यह लोकतंत्र स्वस्थ के हित में नहीं होगा।

यह आगे प्रस्तुत किया गया कि राज्य सरकार ने वर्तमान मामले में अभियोजन से वापस लेने की अनुमति पहले ही दे दी है और राज्य सरकार द्वारा दी गई अनुमति के अनुसार, लोक अभियोजक द्वारा सीआरपीसी की धारा 321 के तहत एक आवेदन दायर किया गया था। हालांकि, अभी तक उक्त आवेदन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया।

अत: प्रार्थी के विरूद्ध समस्त कार्यवाही निरस्त करने की प्रार्थना की गयी ताकि उसे आगे प्रताड़ना का सामना न करना पड़े क्योंकि उसके विरूद्ध कोई प्रकरण नहीं बनता है।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

वकीलों के तथ्यों, परिस्थितियों और तर्कों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने शुरुआत में कहा कि सिंह ने अपने समर्थकों के साथ राज्य के अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए रायबरेली-सुल्तानपुर रोड पर धरना दिया था। हालांकि, कोई अपराध नहीं किया है।

नतीजतन, मामले की तुच्छता को देखते हुए, जो 2013 से ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित है, विशेष रूप से, राज्य सरकार द्वारा अभियोजन से वापस लेने की अनुमति को ध्यान में रखते हुए और जिसके अनुसार सीआरपीसी की धारा 321 के तहत आवेदन पहले ही दायर किया जा चुका है।

कोर्ट ने पाया कि विवादित कार्यवाही को जारी रखना और कुछ नहीं बल्कि न्यायालय की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग होगा।

अत: आवेदन को स्‍वीकार किया गया और आक्षेपित कार्यवाही को निरस्‍त किया गया।

केस टाइटल - दिनेश प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य [आवेदन U/S 482 संख्या - 7859 of 2022]

केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ 521

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