पुलिस पोस्ट ऐसी जगह नहीं है जहां सरकारी कर्मचारियों पर फायर आर्म्स, डंडों या उन पर पथराव से हमला किया जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-06-06 11:51 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस चौकी पर हमला करने और पुलिस अधिकारियों पर अवैध हथियार से गोली चलाने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि पुलिस चौकी ऐसी जगह नहीं है जहां सरकारी कर्मचारियों पर फायर आर्म्स, डंडों या उन पर पथराव से हमला किया जाना चाहिए

जस्टिस तलवंत सिंह का प्रथम दृष्टया देखा कि एफएसएल रिपोर्ट से पता चलता है कि वह व्यक्ति अपने हाथ में फायर आर्म्स पकड़ा हुए है। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में एक सब इंस्पेक्टर, शिकायतकर्ता, आरोपी व्यक्तियों के हमले का मुख्य टारगेट थे, जिन्हें गंभीर चोटें आईं।

सब इंस्पेक्टर चौकी इंचार्ज है, जिसकी पोस्टिंग की जगह पुलिस पोस्ट होने के कारण डंडा, लाठियों से लैस लोगों के एक समूह ने हमला किया था।

कोर्ट ने देखा,

"पुलिस पोस्ट एक ऐसी जगह है जहां लोग अपने बीच विवादों की शिकायत दर्ज कराने जाते हैं और यह ऐसी जगह नहीं है जहां लोक सेवकों पर आग्नेयास्त्रों, दंडों और लाठियों से हमला किया जाता है या उन पर पथराव किया जाता है।"

एक नावेद ने जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें दावा किया गया था कि उसे जून 2020 में पुलिस स्टेशन सराय रोहिल्ला में दर्ज एक झूठे और मनगढ़ंत मामले में गिरफ्तार किया गया था, जहां वह इस मामले के शिकायतकर्ता और उसके सहयोगियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने गया था।

सब इंस्पेक्टर (शिकायतकर्ता) पुलिस चौकी इंद्रलोक में मौजूद था, जब काले नाम के एक व्यक्ति ने उससे मुलाकात की और मोहसिन, सलमान, नावेद और अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ उसकी दुकान में लूट और उक्त व्यक्तियों द्वारा पीटे जाने की शिकायत की।

शिकायतकर्ता का यह मामला था कि एक सादेकिन को पुलिस चौकी लाया गया, जहां सब इंस्पेक्टर ने कुछ औपचारिक पूछताछ की और इसी बीच मोहसिन, नावेद और अन्य पुलिस चौकी पहुंचे और एसआई ने उन्हें शांत करने की कोशिश की तो वे अभद्र भाषा में चिल्लाने लगे।

याचिकाकर्ता नावेद के हाथ में पिस्तौल और अन्य लाठी और डंडों से लैस बताया गया था।

यह आरोप लगाया गया कि उक्त व्यक्तियों को अन्य पुलिस अधिकारियों की मदद से एसआई ने बाहर कर दिया, लेकिन वे फिर से वापस आ गए और पुलिस चौकी पर पथराव शुरू कर दिया। बताया गया कि एसआई ने तब अपनी सरकारी पिस्टल से फायरिंग की और इस दौरान याचिकाकर्ता ने अपनी पिस्टल से भी फायरिंग की।

याचिकाकर्ता ने इस आधार पर अदालत का रुख किया कि वह भारत का एक शांतिप्रिय और कानून का पालन करने वाला नागरिक है, उम्र में युवा है, समाज में गहराई से निहित है और जून 2020 से हिरासत में है।

कोर्ट ने कहा कि एक एफएसएल रिपोर्ट ऑन रिकॉर्ड दर्ज की गई थी, जो पुलिस के इस संस्करण का समर्थन करती है कि याचिकाकर्ता के पास एक हथियार था जिसका इस्तेमाल किया गया था।

कोर्ट ने देखा,

"यह सच है कि याचिकाकर्ता ने एक विशेषज्ञ राय भी दर्ज की है कि जो उसके हाथ में था वह केवल एक मुखौटा था और आग्नेयास्त्र नहीं था। इस तथ्य की जांच उचित स्तर पर ट्रायल में किया जाएगा, लेकिन प्रथम प्रथम दृष्टया एफएसएल रिपोर्ट से पता चलता है कि आरोपी/आवेदक अपने हाथ में हथियार लिए हुए था।"

यह देखते हुए कि मुकदमे के समय याचिकाकर्ता के बचाव को साबित किया जा सकता है, अदालत ने कहा कि उसके आपराधिक मामलों में शामिल होने का पिछला इतिहास रहा है।

अदालत ने कहा,

"पुलिस अधिकारी अपना कर्तव्य निभा रहे थे। जाहिर है, उनकी ओर से कोई उकसावा नहीं था और यह दो पक्षों के बीच विवादों की प्रकृति में था, लेकिन उक्त विवाद को निपटाने के बजाय, वर्तमान आवेदक और उसके सहयोगियों ने पुलिस पर ही हमला करने का विकल्प चुना। वर्तमान याचिकाकर्ता के गवाहों को धमकाने या फिर से उसी अपराध में लिप्त होने और न्याय से भागने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।"

ऐसे में जमानत याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: नावेद बनाम राज्य

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