सीआरपीसी की धारा 41A और 'अर्नेश कुमार' दिशानिर्देशों के तहत गिरफ्तारी प्रक्रिया का उल्लंघन करने पर पुलिस अधिकारी कार्रवाई का सामना करेंगे: तेलंगाना हाईकोर्ट

Update: 2021-11-22 05:50 GMT

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक आरोपी को सीआरपीसी की धारा 41 ए के तहत गिरफ्तारी की प्रक्रिया का उल्लंघन करने पर पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने की स्वतंत्रता दी।

कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के लिए 'अर्नेश कुमार' मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करना पुलिस का कर्तव्य है।

न्यायमूर्ति ललिता कन्नेगंती की एकल-न्यायाधीश पीठ सिकंदराबाद में एक शिक्षा / नौकरी परामर्श फर्म के प्रमुख द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। मुख्य रूप से याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है।

अदालत ने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत आवेदन पर सुनवाई करते हुए कहा कि जब अपराध के लिए सजा सात साल से कम है, तो पुलिस अधिकारी अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य में शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों का पालन करने और सीआरपीसी की धारा 41A के तहत नोटिस जारी कर आरोपी को पेश करने की मांग की प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

कोर्ट ने कहा,

"यदि याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत प्रक्रिया का पालन नहीं करने और मामले से समझौता करने की धमकी देकर अन्य साधनों और उपायों का सहारा लेने में पुलिस की कार्रवाई से व्यथित है, तो याचिकाकर्ता के खिलाफ उचित कार्यवाही शुरू करने के लिए स्वतंत्र है। संबंधित अधिकारियों को आगे निर्देश दिया जाता है कि सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत नोटिस जारी करने के बाद पुलिस सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रक्रिया और दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य है।"

शिकायतकर्ता के अनुसार आरोपी ने शिकायतकर्ता को फर्जी नौकरी का प्रस्ताव दिया और वादा किया कि उसे 10 लाख रुपये के भुगतान पर विदेश में रोजगार मिलेगा।

शिकायतकर्ता ने विदेश में नौकरी पाने की आशा में आरोपी द्वारा मांगी गई राशि का विधिवत भुगतान किया। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उनके द्वारा बार-बार नौकरी के बारे में पूछने पर भी जवाब नहीं मिला। शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि आरोपी देश से भागने का प्रयास कर रहा है।

शिकायत मिलने के तुरंत बाद याचिकाकर्ता-आरोपी पर आईपीसी की धारा 406, 420, 504 और 506 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था।

इसके बाद आरोपी ने अग्रिम जमानत के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत तेलंगाना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता का यह मामला था कि अपराधों के लिए सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत अपनाई गई प्रक्रिया के विपरीत पुलिस शिकायतकर्ता के साथ इस मामले में समझौता करने पर अड़ी थी। वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया, वे आरोपी को गिरफ्तारी की धमकी भी दे रहे हैं कि अगर वह उनकी बात नहीं मानता है।

उच्च न्यायालय ने यह भी याद किया कि आरोपी द्वारा की गई इसी शिकायत पर पहले एक अंतरिम आदेश पारित किया गया। अंतरिम आदेश पारित होने से पहले याचिकाकर्ता के वकील ने पुलिस से अपराध की प्रकृति पर विचार करने के लिए कहा, जो कि एक जमानती अपराध है, जिसमें सात साल से कम कारावास की सजा दी गई है, और तदनुसार कदम उठाएं।

अदालत ने तब अंतरिम आदेश में कहा,

"यदि याचिकाकर्ता को जांच के उद्देश्य की आवश्यकता है, तो प्रतिवादी संख्या 4 - स्टेशन हाउस अधिकारी, तुकारामगेट पुलिस स्टेशन को सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत प्रक्रिया का पालन करने और अर्नेश कुमार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करने का निर्देश दिया जाता है।"

वकील ने प्रस्तुत किया कि इस अंतरिम आदेश के बावजूद पुलिस अधिकारी आरोपी को समझौता करने के लिए परेशान कर रहे हैं।

अदालत ने आदेश में कहा,

"इस संबंध में किसी भी विचलन (सीआरपीसी की धारा 41 ए और अर्नेश कुमार दिशानिर्देशों के तहत प्रक्रिया) को बहुत गंभीरता से देखा जाएगा।"

जब याचिकाकर्ता ने उसी दिन पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की आशंका वाले आदेश की एक प्रति का अनुरोध किया, तो न्यायमूर्ति ललिता कन्नेगंती ने रिहाई के लिए जमानत आदेशों की प्रमाणित प्रतियां प्रस्तुत करने की सख्त सीमाओं पर विस्तार से चर्चा की।

अदालत ने कहा कि संविधान द्वारा गारंटीकृत किसी आरोपी को जमानत देने का अक्षम्य अधिकार अपने आप में तब तक पर्याप्त नहीं है जब तक कि जमानत के आदेश समय पर नहीं दिए जाते हैं।

तदनुसार, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने भी जमानत आदेशों की प्रमाणित प्रतियों की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है और कहा है कि ई-प्रतियां 22 नवंबर से स्वीकार की जाएंगी।

केस का शीर्षक: वी. भरत कुमार बनाम तेलंगाना राज्य

केस नंबर: सीआरएल.पी. नंबर 8108/2021

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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