राज्य में सार्वजनिक स्थानों से अवैध मजारों, मस्जिदों को हटाने की मांग वाली याचिका: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र, यूपी सरकार से जवाब मांगा
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने सार्वजनिक स्थानों [जैसे रेलवे स्टेशनों, सड़कों, पार्कों, आदि] से अनधिकृत मजारों और मस्जिदों को हटाने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) याचिका पर भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है।
जन उदघोष सेवा संस्थान और अन्य की ओर से दायर जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जे जे मुनीर की पीठ 15 दिसंबर को सुनवाई करेगी।
याचिका में कहा गया है कि सार्वजनिक स्थानों, सार्वजनिक पार्कों और सार्वजनिक उपयोगिता के स्थानों पर मस्जिदों और मजारों के अवैध और अनधिकृत निर्माण के कारण जनता को काफी नुकसान हो रहा है।
इस संबंध में याचिका में मथुरा, गाजियाबाद, गोरखपुर, लखनऊ, कानपुर, मुजफ्फरनगर और राज्य के अन्य जिलों का उदाहरण दिया गया है। और कहा गया है कि ऐसे जिलों में ऐसे अनधिकृत मजार, मस्जिद हैं।
याचिका में यह भी कहा गया है कि छद्म धर्म के नाम पर अवैध और अनधिकृत रूप से अधिक से अधिक भूमि पर कब्जा करने के इरादे से इस तरह की अवैध गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं जिससे राष्ट्रीय अखंडता और राष्ट्रीय हित खतरे में पड़ रहा है।
कोर्ट ने कहा,
"कई सार्वजनिक स्थानों पर सार्वजनिक पार्कों, रास्तों, बीच/सार्वजनिक सड़कों के अंदर, फुटपाथों, सार्वजनिक स्थानों, सार्वजनिक भवनों, रेलवे स्टेशनों, रेलवे में कब्रों/मजारों/दरगाहों का निर्माण/निर्माण किया जा रहा है। लाइन/ट्रैक, रेलवे प्लेटफॉर्म, बस स्टैंड, फ्लाईओवर, बीच/राजमार्ग के अंदर, पुल और देश भर में सरकारी भवनों के भीतर या बाहर यह भी पाया गया है कि मस्जिदों का निर्माण सड़क के किनारे और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भी किया गया है। यह भी देखा गया है कि कभी-कभी असामाजिक तत्व ऐसे स्थानों पर शरण लेते हैं और कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा करते हैं। स्थिति इतनी खतरनाक है कि ऐसी गतिविधियां सांप्रदायिक विद्वेष को जन्म दे सकती हैं और जनता और कानून को प्रभावित कर रही हैं।"
कोर्ट आगे भारत सरकार और राज्य सरकार को अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को निभाने में लापरवाही बरतने के लिए कहता है।
इस संबंध में, याचिका गुजरात राज्य बनाम भारत सरकार एसएलपी (सी) संख्या 8519/2006 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संदर्भित करती है जिसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया था कि किसी भी धार्मिक संस्थान का अनधिकृत निर्माण न हो।
याचिका में आगे जोर दिया गया है कि मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने सार्वजनिक भूमि के उल्लेखनीय क्षेत्रों पर कब्जा करने की दृष्टि से कृत्रिम कब्रें बनाई हैं और उन भूमि के भीतर मस्जिदों का निर्माण करने की कोशिश कर रहे हैं और उन भूमि को संचयी रूप से परिवर्तित करने की कोशिश कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है,
"वे तथाकथित वक्फ के नाम पर अधिक से अधिक भूमि पर कब्जा करने का इरादा रखते हैं, यहां तक कि सार्वजनिक पार्कों का भी अतिक्रमण कर रहे हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जनता पीड़ित है और भविष्य में और अधिक पीड़ित होने की संभावना है।"
आगे कहा गया है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लागू करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
याचिका में प्रार्थना की गई है कि प्रतिवादियों को यह सुनिश्चित करने के लिए एक निर्देश जारी किया जाए कि राज्य में और सार्वजनिक स्थानों के आसपास ऐसी धार्मिक संरचनाएं और भविष्य में ऐसी कोई संरचना विकसित न हो।
याचिका में राज्य में ऐसी संरचनाओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की भी मांग की गई है।