दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका, यूएपीए मामले में कश्मीरी फोटो जर्नलिस्ट की न्यायिक रिमांड बढ़ाने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती
कश्मीर स्थित 24 वर्षीय स्वतंत्र फोटोग्राफर मोहम्मद मनन डार के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत दर्ज एक मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा न्यायिक हिरासत बढ़ाए जाने के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है।
अधिवक्ता तारा नरूला, तमन्ना पंकज और प्रिया वत्स के माध्यम से दायर याचिका में सीआरपीसी की धारा 167(1) के तहत, जांच एजेंसी द्वारा गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं करने के कारण डिफॉल्ट बेल की मांग की गई है।
पिछले साल अक्टूबर में यूएपीए की धारा 18, 18ए, 18बी, 20, 38 और 39 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 121ए, 122 और 123 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
गृह मंत्रालय (सीटीसीआर डिवीजन) के आदेश के तहत दी गई कथित सूचना के आधार एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी), जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम), हिज्ब-उल-मुजाहिदीन (एचएम), अल बद्र और इसी प्रकार के अन्य संगठन जम्मू और कश्मीर में सक्रिय हैं और हमलों की साजिश रच रहे हैं। उनकी योजना जम्मू और कश्मीर के प्रमुख शहरों और राष्ट्रीय राजधानी सहित भारत के विभिन्न शहरों में हमला करने की थी।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि पिछले साल 10 अक्टूबर को बिना किसी औपचारिक सूचना के डार को बेवजह पूछताछ के लिए बुलाया गया था और लगभग दो सप्ताह तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया, जिसके बाद उन्हें 22 अक्टूबर को औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया गया।
याचिका में कहा गया है, "उल्लेखनीय है कि कि जिस अवधि में एफआईआर दर्ज की गई थी, उस अवधि में जम्मू और कश्मीर में पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने, कुछ नागरिकों की हत्याओं और भारत के गृहमंत्री की यात्रा के बाद 900 लोगों को हिरासत में लिया था।"
याचिका में कहा गया है कि एफआईआर में कथित साजिश के अस्पष्ट और सामान्य दावे हैं और किसी भी आरोपी का कोई विवरण नहीं दिया गया है। याचिका में पटियाला हाउस कोर्ट के विशेष एनआईए जज द्वारा 17.01.2022 को पारित आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके तहत अदालत ने यूएपीए की धारा 43 डी (2) के तहत जांच पूरी करने के लिए 90 दिनों का विस्तार दिया था।
याचिका में कहा गया है,
"यह प्रस्तुत किया गया है कि जांच एजेंसी के आवेदन पर विस्तार की आवश्यकता नहीं थी, और 90 दिनों (अधिकतम अनुमेय अवधि) के विस्तार के लिए कोई औचित्य माननीय विशेष न्यायालय या प्रतिवादी एजेंसी द्वारा पेश नहीं किया गया है।"
याचिका को आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि, जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जे भंभानी की खंडपीठ की उपस्थिति नहीं होने के कारण इस पर विचार नहीं किया जा सका। मामला अब 17 फरवरी को सूचीबद्ध किया गया है।
केस शीर्षक: मोहम्मद मनन डार @ मनन बनाम एनआईए