दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली यूनिवर्सिटी की एलएलबी, एलएलएम एंट्रेस एग्जाम में 'बड़े पैमाने पर धांधली' का आरोप लगाते हुए याचिका दायर

Update: 2023-02-03 05:40 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट में 2022 के शैक्षणिक सत्र के लिए एलएलबी और एलएलएम एंट्रेस एग्जाम में "बड़े पैमाने पर धांधली", प्रश्न पत्र लीक और अंतिम परिणामों में हेरफेर का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की गई।

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने मामले को 22 मार्च को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए यूनिवर्सिटी और एनटीए को इस मामले में निर्देश लेने का निर्देश दिया। हालांकि, अदालत ने अभी तक मामले में औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया।

अदालत ने कहा,

"नोटिस जारी करने से पहले यह अदालत दिल्ली यूनिवर्सिटी/प्रतिवादी नंबर 1 और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी/प्रतिवादी नंबर 2 को निर्देश लेने के लिए निर्देश देना उचित समझती है।"

याचिका 19 उम्मीदवारों द्वारा दायर की गई, जिन्होंने एलएलबी और एलएलएम कोर्स में एडमिशन के लिए ऑनलाइन एंट्रेस एग्जाम दिया, लेकिन 12 दिसंबर को घोषित परिणाम में उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया।

उनका मामला यह है कि एंट्रेस एग्जाम "अधिकारियों और प्रशासन के भीतर राजनीतिक प्रभाव के माध्यम से विशेषाधिकार का आनंद लेने वाले कुछ घोटालेबाजों के बीच सुनियोजित साजिश है" जिसमें प्रश्न पत्र का लीक होना और परीक्षा केंद्र का प्रबंधन शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप "कट-ऑफ में अभूतपूर्व वृद्धि" हुई।

इस प्रकार याचिका विशेष जांच दल द्वारा 300 से अधिक चिन्हित छात्रों के खिलाफ कदाचार और घोटाले की कथित घटनाओं की स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच की मांग करती है।

यह याचिका डीयू और एनटीए को बढ़े हुए कट-ऑफ के कारण का आकलन करने और परीक्षा में किसी भी तरह के अनुचित साधनों के उपयोग से लाभ उठाने वाले उम्मीदवारों की पहचान करने के लिए निर्देश देने की भी मांग करती है। याचिका में "घोटाले के पीड़ितों को उनके योग्य स्थान की अनुमति देकर" मुआवजे की भी मांग की गई।

याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि प्रासंगिक प्रमाणों के साथ स्टूडेंट द्वारा अभ्यावेदन किए जाने के बाद भी यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

याचिका में कहा,

“तथाकथित कानून प्रवर्तन एजेंसी, दिल्ली पुलिस ने स्टूडेंट के उनके पास पहुंचने पर लापरवाही से काम किया। दिल्ली पुलिस के असंगत रवैये को इस अधिनियम से जांचा जा सकता है कि उन्होंने एफआईआर दर्ज करने से भी इनकार कर दिया, जो कि भारत में किसी भी व्यक्ति को दिया गया मूल अधिकार है और ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य में अनिवार्य प्रक्रिया भी है।

इसमें कहा गया कि पुलिस के साथ-साथ यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन का आचरण स्पष्ट रूप से मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है, जो याचिकाकर्ताओं के शिक्षा के अधिकार, समानता के अधिकार और न्याय के अधिकार के साथ-साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 को भी प्रभावित करता है।

केस टाइटल: सनी कुमार और अन्य बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी और अन्य।

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