श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद पर 2020 में दायर मुकदमे पर पूजा स्थल अधिनियम लागू नहीं होगा: मथुरा कोर्ट

Update: 2022-05-20 09:03 GMT

मथुरा की एक अदालत ने गुरुवार को कहा कि कथित तौर पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन पर बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने का मुकदमा सुनवाई योग्य है। इसके साथ, कोर्ट ने श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और अन्य निजी पक्षों की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका को अनुमति दी और सितंबर 2020 में उनके मुकदमे को खारिज करने के एक सिविल कोर्ट के आदेश को पलट दिया।

सितंबर 2020 में भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से एक मुकदमा दायर किया गया था, जिसमें मथुरा में श्री कृष्ण मंदिर परिसर के पास स्थित शाही ईदगाह (मस्जिद) को हटाने और देवता को 13.37 एकड़ भूमि के हस्तांतरण की मांग की गई थी। .

याचिकाकर्ता/संशोधनवादी भगवान श्रीकृष्ण विराजमान, स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि ने अपने मित्र रंजना अग्निहोत्री के माध्यम से 1974 के एक समझौते को यह कहकर रद्द करने की मांग की थी कि श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही ईदगाह ट्रस्ट के बीच 1973 में किया गए समझौते में धोखाधड़ी की गई थी।

यह कहा गया था कि संबंधित समझौते में, संस्थान ने ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह के पक्ष में देवता/ट्रस्ट की संपत्ति को स्वीकार कर लिया था। 2020 के मुकदमे में, वादी ने 1974 के उसी एग्रीमेंट और समझौता डिक्री को चुनौती दी थी।

हालांकि 30 सितंबर, 2020 को मथुरा की एक ‌सिविल कोर्ट ने वाद को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत वाद को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि वादी को भगवान कृष्ण के भक्त/ उपासक होने के नाते, वाद दायर करने का अधिकार नहीं है।

जब उस आदेश को याचिकाकर्ताओं ने पुनरीक्षण में चुनौती दी तो जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजीव भारती ने गुरुवार को उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया और निचली अदालत को दोनों पक्षों को सुनने और उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया।

एक महत्वपूर्ण अवलोकन में, न्यायालय ने यह भी देखा कि पूजा स्‍थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के प्रावधान इस विवाद में लागू नहीं होंगे।

कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि चूंकि वादी द्वारा समझौते और उसके बाद के समझौता डिक्री को चुनौती दी गई थी, इस मामले में पूजा स्थल अधिनियम, पूजा स्‍थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 धारा 4 (3) (बी) के आधार पर लागू नहीं होगा।

कोर्ट ने तर्क दिया कि समझौते के परिणामस्वरूप समझौता डिक्री हुई, जो 1991 के अधिनियम के शुरू होने से पहले तैयार की गई थी और चूंकि, याचिकाकर्ता द्वारा पेश किए गए मुकदमे में यह चुनौती का विषय है, इसलिए, धारा 4 ( 3)(बी), 1991 अधिनियम, के आधार पर अधिनियम इस विवाद पर लागू नहीं होगा।

संक्षेप में, न्यायालय का मत था कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 उन मामलों पर रोक नहीं लगाता है जहां घोषणा 1991 में लागू होने से पहले की अवधि के लिए या ऐसे अधिकार के प्रवर्तन के लिए मांगी जाती है, जिसे अधिनियम के प्रभाव में जिसे आने से पहले मान्यता दी गई थी।

धारा 4(3)(बी) में कहा गया है कि धारा 4 के तहत बार किसी भी मुकदमे, अपील या अन्य कार्यवाही पर लागू नहीं होगा, जो कि इस अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले न्यायालय, न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकारी द्वारा उप-धारा (2) में संदर्भित किसी भी मामले के संबंध में अंतिम रूप से तय, या निपटाया गया है।


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