कथित फर्जी एनकाउंटर की स्वतंत्र जांच की मांग वाली जनहित याचिका: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने राज्य से ऐसे एनकाउंटर और इसके खिलाफ की गई कार्रवाई का विवरण देने के लिए कहा

Update: 2022-01-04 10:04 GMT

गुवाहाटी हाईकोर्ट 

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम पुलिस के कथित फर्जी एनकाउंटर की एक स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए, राज्य सरकार से कहा कि वह अदालत को कथित एनकाउंटर और की गई कार्रवाई के बारे में बताएं।

मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति सौमित्र सैकिया की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह को सुना और असम के महाधिवक्ता डी सैकिया को अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया।

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह याचिकाकर्ता, दिल्ली के वकील- आरिफ जवादर की ओर से पेश हुईं।

मामले को अब 11 जनवरी, 2022 को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया गया है।

जनहित याचिका

आरिफ जवादर द्वारा दायर याचिका में पुलिस कर्मियों द्वारा कथित आरोपी की फर्जी मुठभेड़ में हत्याओं को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत एक अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई है।

जनहित याचिका में राज्य सरकार के अलावा, असम पुलिस, कानून और न्याय विभाग, एनएचआरसी और असम मानवाधिकार आयोग को प्रतिवादी पक्ष के रूप में नामित किया गया है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि असम पुलिस और कथित आरोपियों के बीच मई 2021 से अब तक 80 से अधिक फर्जी एनकाउंटर हुए हैं, जिसमें 28 लोगों की मौत हुई है और 48 से अधिक घायल हुए हैं।

याचिका में दावा किया गया है कि जो लोग मारे गए या घायल हुए हैं, वे खूंखार अपराधी नहीं थे और यह इस प्रकार पुलिस के तौर-तरीकों पर सवाल खड़ा होता है।

याचिका में कहा गया है,

"सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित पुलिस के बयान के अनुसार, यह कहा गया है कि कथित आरोपी ने पुलिस कर्मियों की सर्विस रिवाल्वर छीनने की कोशिश की और आत्मरक्षा में, पुलिस को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी और कथित आरोपी को मारना या घायल करना पड़ा। सभी घायल या मृत व्यक्ति उग्रवादी नहीं थे और वे पिस्तौल का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे और यह बहुत कम संभावना है कि वे सर्विस रिवॉल्वर का उपयोग पुलिस बल के खिलाफ छीनने के बाद कर सकते थे जो कि अधिक संख्या में और भारी हथियारों से लैस थे। सभी कथित आरोपी प्रशिक्षित पुलिस अधिकारी की रिवॉल्वर नहीं छीन सकते हैं क्योंकि पिस्तौल आमतौर पर अधिकारी की कमर की बेल्ट में रस्सी से बंधी होती है।"

याचिकाकर्ता ने पहले 10 जुलाई, 2021 को ईमेल के माध्यम से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास एक शिकायत दर्ज कर फर्जी एनकाउंटर की जांच शुरू करने के लिए कहा था।

याचिका में यह कहा गया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के बजाय, असम मानवाधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए 12 जुलाई, 2021 को असम सरकार को नोटिस जारी किया।

याचिका का दावा किया गया है,

"मामले के इस दृष्टिकोण में, इस माननीय न्यायालय को इस बात की जांच करने की आवश्यकता है कि असम मानवाधिकार आयोग कैसे और क्यों इस मामले का संज्ञान ले सकता है, जब इस संबंध में एक शिकायत एनएचआरसी के समक्ष लंबित है। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य आयोग ने 1993 की धारा 36(1) के तहत एनएचआरसी को उसके अधिकार क्षेत्र से रोकने के लिए मामले का स्वत: संज्ञान लिया।"

जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि असम सरकार ने अब तक मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 30 के तहत किसी भी सत्र न्यायालय को मानवाधिकार न्यायालय के रूप में नामित नहीं किया है।

याचिका में उचित जांच के बाद पीड़ित परिवार को मौद्रिक मुआवजा देने की मांग की गई। इसके साथ ही याचिका में फर्जी एनकाउंटर की जांच के संबंध में पीयूसीएल एंड अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य, (2014) 10 एससीसी 635 मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी 16 दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने के लिए स्वतंत्र एजेंसी को जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई।

केस का शीर्षक - आरिफ मोहम्मद यासीन जवादर बनाम असम राज्य एंड 4 अन्य

आदेश की कॉपी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:



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