पोक्सो एक्ट के तहत सहमति से यौन संबंध बनाने वाले नाबालिगों के मामलों की अनिवार्य रिपोर्टिंग के खिलाफ जनहित याचिका, दिल्ली हाईकोर्ट ने नोटिस जारी किया

Update: 2023-02-21 13:23 GMT

Delhi High Court

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को पोक्सो एक्ट, 2012 के उन प्रावधानों के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें नाबालिगों से जुड़े सहमति से यौन संबंध के मामलों में पुलिस को अनिवार्य रिपोर्टिंग या एफआईआर दर्ज करने की आवश्यकता है।

चीफ ज‌स्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने आठ सप्ताह के भीतर कानून और न्याय मंत्रालय के माध्यम से भारत सरकार से जवाब मांगा।

एडवोकेट हर्ष विभोर सिंघल की ओर से दायर याचिका संविधान के पोक्सो अधिनियम की धारा 19, 21 और 22 की संवैधानिक वैधता को अनुच्छेद 21 के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी गई है।

जनहित याचिका में प्रस्तुत किया गया है कि विवादित प्रावधान नाबालिगों को उनकी कानूनी एजेंसी और उनकी कामुकता और यौन अभिव्यक्ति के बारे में सूचित विकल्प बनाने और उनके खिलाफ ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने या न करने की सूचित सहमति देने की क्षमता से वंचित करते हैं।

याचिका में अरहंत जनार्दन सुनातकारी बनाम महाराष्ट्र राज्य में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया है, जहां यह देखा गया कि नाबालिगों के बीच सहमति से किया गया सेक्स "कानूनी रूप से एक संश्यग्रस्त क्षेत्र" रहा है, क्योंकि नाबालिग द्वारा दी गई सहमति को वैध नहीं माना जाता है।

याचिका में तर्क दिया गया है कि विवादित प्रावधान रिपोर्ट करने से इनकार करने के लिए सूचित सहमति के बावजूद अनिवार्य रूप से रिपोर्ट करवाकर नाबालिगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और उन्हें जीवन के जोखिम के लिए मजबूर करते हैं।

याचिका में एक घोषणा की मांग की गई है कि यौन आचरण के किसी भी कृत्य को किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर के रूप में दर्ज करने से पहले, नाबालिग पीड़िता की पूर्व शर्त के रूप में व्यक्त सहमति प्राप्त की जानी चाहिए या एक अभिभावक [यदि 12 वर्ष से कम आयु] के माध्यम से सहमति प्राप्त की जानी चाहिए।

टाइटल: हर्ष विभोर सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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