"याचिकाकर्ता लिटिगेशन डिपेंडेश सिंड्रोम से पीड़ित प्रतीत होता है" याचिकाकर्ता को फटकारते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा दोबारा याचिका दायर करना कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने जैसा

Update: 2021-01-05 11:48 GMT

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक याचिकाकता को एक ही तथ्य और सामग्री को बार-बार य‌ाचिकाएं दायर कर, उठाने के लिए कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता लिटिगेशन डिपेंडेश सिंड्रोम से पीड़ित प्रतीत होता है।

जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ और जस्टिस आशा मेनन की खंडपीठ एचसी राम नरेश की ओर से दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपील उसी पीठ द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।

कोर्ट ने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता के व‌िवादों पर 8 दिसंबर 2020 के एक पुराने आदेश में विचार किया जा चुका है और निस्तारण किया किया जा चुका है। न्यायालय के अनुसार, मौजूदा अपील फिर से मुकदमेबाजी जैसी है "जिसे न्यायालय की प्रक्रिया की दुरुपयोग माना गया है।"

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (ITBP) में सेवारत था। उन्हें मेडिकल बोर्ड और ITBP की अपील मेडिकल बोर्ड द्वारा अल्कोहल डिपेंडेंस सिंड्रोम से पीड़ित पाया गया। बर्खास्तगी के भय से, उसने अदालत के समक्ष रिट याचिका दायर की, जिसमें ITBP को एक तीसरी मेडिकल रिपोर्ट, जिसे एम्स या किसी अन्य अस्पताल ने तैयार की हो, पर विचार करने के लिए दिशा निर्देश जारी करनी की मांग की गई ‌थी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 8 दिसंबर 2020 के एक फैसले के जर‌िए याचिका का निस्तारण किया, जिसमें तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को तीसरी राय के लिए संदर्भित किया गया है और इस प्रकार याचिका में मांगी राहत संतोषप्रद पाई गई है।

जांच - परिणाम

हालांकि उक्त फैसले के बाद याचिकाकर्ता ने वर्तमान अपील को दायर किया, बेंच के अनुसार, जिसमें राहत की मांग दूसरे तरीके की गई, साथ ही 8 दिसंबर के आदेश में दोष निकाला गया।

बेंच ने कहा कि नई रिट पिटीशन फिर से मुकदमेबाजी के बराबर है, और इसे अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा। अदालत ने कहा, "याचिकाकर्ता, पहले अल्कोहल डिपेंडेंस सिंड्रोम से पीड़ित पाया जाता था, अब लिटिगेशन डिपेंडेंस सिंड्रोम से पीड़ित लगता है।"

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ कार्यवाही में देरी करने की कोशिश में नई याचिका दायर की थी।

"याचिकाकर्ता ने प्रशासनिक निर्णय की प्रतीक्षा किए बिना, पहले मेडिकल बोर्ड के निष्कर्षों के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया....। उस याचिका को दाखिल कर, जिसके लंबित होने के दरमियान, अंतरिम स्थगन रहा, याचिकाकर्ता ने निर्णय की प्रक्रिया को विलंबित किया / स्‍थागित किया, निश्चित रूप से यह उसने अपने फायदे के लिए किया।

यह याचिका दायर कर वह एक बार फिर निर्णय की प्रक्रिया को विलंब कराने का प्रयास कर रहा है, ताकि सेवा में उसकी निरंतरता बनी रहे..."

अदालत ने मेडिकल बोर्ड की अनुशासनात्मक कार्यवाही पर अंतरिम चरण में रोक लगाने से इनकार कर दिया और विभागीय कार्यवाही से पहले याचिकाकर्ता को कोई लाभ देने से इनकार कर दिया।

याचिका को निस्तार‌ित करने से पहले खंडपीठ ने कहा कि यदि अनुशासनात्मक कार्यवाही याचिकाकर्ता के लिए पूर्वाग्रहपूर्ण है, तो वह विभागीय उपायों का उपयोग कर सकता है। हालांकि, अगर वह अभी भी असंतुष्ट है, तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अदालत से संपर्क करने के अपने अधिकार का उपयोग कर सकता है।

केस टाइटिल: एचसी राम नरेश बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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