अनधिकृत कब्जा करने वाले को भी संपत्ति के मालिक को 'कानून द्वारा प्रदान किए गए तरीके' से बेदखल करना चाहिए: उत्तराखंड हाईकोर्ट
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही एक किरायेदार को संपत्ति से बेदखल किया जा सकता है और इसलिए, संपत्ति का मालिक कानून द्वारा प्रदान किए गए तरीके के अलावा किसी अन्य तरीके से जबरन कब्जा वापस नहीं ले सकता।
मालिकों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की सिंगल जज बेंच ने कहा,
"हालांकि, यह कानून की स्थापित स्थिति है कि संपत्ति के असली मालिक के खिलाफ निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती है, लेकिन यह न्यायशास्त्र में समान रूप से स्थापित है कि अनधिकृत कब्जाधारी को भी कानून द्वारा प्रदान किए गए तरीके से ही संपत्ति से स्थापित किया जा सकता है।
तथ्य
प्रतिवादी को 1995 में एक दुकान किराये पर दी गई थी। मालिक की मृत्यु के बाद, उसका बेटा दुकान का मालिक बन गया और उसके और प्रतिवादी के बीच एक नया लीज़ डीड निष्पादित किया गया। जिसके बाद बेटे ने दुकान का हस्तांतरण वर्तमान याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कर दिया गया।
हालांकि उक्त दुकान से जबरन बेदखली की आशंका जताते हुए प्रतिवादी ने स्थायी निषेधाज्ञा के लिए एक मुकदमा दायर किया। ट्रायल कोर्ट ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया। हालांकि अतिरिक्त जिला जज, खटीमा, जिला उधम सिंह नगर ने आदेश 43 नियम 1(आर), सीपीसी के तहत प्रतिवादी की ओर से दायर अपील को अनुमति दी। अपीलीय न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय से व्यथित होकर याचीगण ने यह रिट याचिका दायर की है।
कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि मकान मालिकों द्वारा किराया स्वीकार ल करने के बाद प्रतिवादी ने यूपी अर्बन बिल्डिंग (रेगुलेशन ऑफ लेटिंग, रेंट एंड एविक्शन) एक्ट, 1972 की धारा 30(1) के तहत अदालत में किराया जमा कर रहा था।
इस प्रकार, बेंच की राय थी कि केवल इसलिए कि अधिनियम की धारा 30(1) के तहत पारित आदेश को बाद में पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा तकनीकी आधार पर रद्द कर दिया गया, मकान मालिकों को किरायेदार को जबरन बेदखल करने के लिए अधिकृत नहीं करता।
अदालत ने लल्लू यशवंत सिंह बनाम राव जगदीश सिंह पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा केके वर्मा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में दिए गए निष्कर्ष को सहमति के साथ उद्धृत किया था।
कोर्ट ने मिदापुर जमींदारी कंपनी लिमिटेड बनाम कुमार नरेश नारायण रॉय का भी हवाला दिया, जिसमें प्रिवी काउंसिल ने कहा था कि भारत में व्यक्तियों को जबरन कब्जा करने की अनुमति नहीं है। उन्हें इस तरह का कब्जा उचित तरीके से प्राप्त करना चाहिए।
अदालत ने ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड बनाम सिंडिकेट बैंक का भी हवाला दिया कि अनधिकृत रहवासी को भी कानून द्वारा प्रदान किए गए तरीके से बेदखल किया जा सकता है।
कानून की पूर्वोक्त स्थापित स्थिति को ध्यान में रखते हुए, रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: तेजेंद्र सिंह और अन्य बनाम मोहम्मद अनीस अहमद
केस नंबर: रिट याचिका (मैसर्स) नंबर 3015 ऑफ 2022
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (उत्तर प्रदेश) 1