उड़ीसा हाईकोर्ट ने पीए की संदिग्ध मौत के लिए मलकानगिरी के पूर्व कलेक्टर के खिलाफ हत्या के आरोप को खारिज कि, इसकी जगह 'आत्महत्या के लिए उकसाने' का आरोप लगाया
उड़ीसा हाईकोर्ट ने 2019 में अपने निजी सहायक (पीए) की रहस्यमय मौत के लिए मलकानगिरी जिले के पूर्व कलेक्टर, आईएएस अधिकारी मनीष अग्रवाल के खिलाफ लगाए गए हत्या के आरोप को खारिज कर दिया।
जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल न्यायाधीश पीठ ने हालांकि, पूर्व जिला मजिस्ट्रेट और अन्य आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने और आपराधिक साजिश के आरोप को बरकरार रखा।
एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
“मृतक द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं से संबंधित उपरोक्त विवरण से प्रथम दृष्टया पता चलता है कि सभी तीन आरोपी व्यक्तियों ने कई तरीकों से और कई मौकों पर मृतक को अपमानित करने के लिए एकजुट होकर काम किया, जिससे वह मानसिक रूप से परेशान था।”
तथ्यात्मक पृष्ठभूमि
देबा नारायण पांडा (मृतक) मल्कानगिरी के तत्कालीन कलेक्टर (याचिकाकर्ता) मनीष अग्रवाल के पीए के रूप में कार्यरत थे। वह 27 दिसंबर 2019 को ड्यूटी के दौरान लापता हो गए। अगले दिन उनका शव सतीगुड़ा बांध स्थल से अग्निशमन कर्मियों ने बरामद किया गया।
इसके बाद डॉक्टरों की टीम ने शव का पोस्टमार्टम किया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण डूबने और उसकी जटिलताओं का खुलासा हुआ। इसमें यह भी पता चला कि शव पर कोई चोट या हिंसा का निशान नहीं था।
जबकि मामला इस प्रकार है, 13 नवंबर, 2020 को मृतक की पत्नी ने एसडीजेएम, मलकानगिरी की अदालत में शिकायत दर्ज कराई कि घटना की तारीख पर उसका पति सुबह लगभग 10 बजे कलेक्टर के आवास पर गया और फिर कभी नहीं लौटा। आरोप था कि मृतक की मौत के लिए तत्कालीन कलेक्टर जिम्मेदार थे।
एसडीजेएम ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के अनुसार एफआईआर दर्ज करने और जांच करने के लिए शिकायत पुलिस को भेज दी। जांच पूरी होने पर जांच अधिकारी ने यह कहते हुए क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत की कि मृतक की मौत में कोई गड़बड़ी शामिल नहीं थी और आरोपी व्यक्तियों ने कोई अपराध नहीं किया।
हालांकि, शिकायतकर्ता-पत्नी ने पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के खिलाफ विरोध याचिका दायर की। उक्त विरोध याचिका में उन्होंने आरोप लगाया कि मामले की ठीक से जांच नहीं की गई और मृतक की मौत में कलेक्टर की संलिप्तता को जानबूझकर छुपाया जा रहा है।
तदनुसार, एसडीजेएम ने शिकायतकर्ता का प्रारंभिक बयान दर्ज किया और ऐसे बयान और रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य सामग्रियों के आधार पर उपरोक्त अपराधों का संज्ञान लिया और शिकायतकर्ता को अपने सभी गवाहों को पेश करने के लिए बुलाने का निर्णय लेकर प्रक्रिया को स्थगित कर दिया।
शिकायतकर्ता की ओर से चार गवाहों की जांच की गई, जिसके बाद एसडीजेएम ने शिकायतकर्ता को 11 जनवरी, 2023 के आदेश द्वारा आवश्यक दस्तावेज दाखिल करने का निर्देश दिया और 13 जनवरी, 2023 को उन्होंने याचिकाकर्ताओं को उनके सामने पेश होने के लिए समन जारी किया।
व्यथित होकर, कलेक्टर और अन्य आरोपी व्यक्तियों ने संज्ञान का आदेश रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षकारों का विवाद
याचिकाकर्ताओं के लिए यह प्रस्तुत किया गया कि शिकायतकर्ता का मामला, भले ही प्रथम दृष्टया स्वीकार कर लिया जाए, फिर भी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मृतक की मृत्यु में कोई भूमिका होने का एक भी आरोप सामने नहीं आएगा।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि उन्हें पूर्व में कदाचार के लिए पिछले कलेक्टरों द्वारा और मलकानगिरी के कलेक्टर के रूप में मनीष अग्रवाल द्वारा भी कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जांच अधिकारी ने इस पर ध्यान दिया और माना कि मृतक अपनी सेवा संबंधी समस्याओं के कारण परेशान था और मामले को आत्महत्या के रूप में निष्कर्ष निकाला गया।
दूसरी ओर, राज्य के लिए यह प्रस्तुत किया गया कि भले ही पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई थी, लेकिन शिकायतकर्ता द्वारा दायर विरोध याचिका पर कार्रवाई करने के लिए एसडीजेएम के पास खुला था।
यह रेखांकित किया गया कि क्या याचिकाकर्ताओं की मृतक द्वारा की गई आत्महत्या में कोई भूमिका थी, यह ऐसा मामला है, जिसे केवल ट्रायल के दौरान साक्ष्य दर्ज करने और जांचने के बाद ही सुनिश्चित किया जा सकता है, न कि इस समयपूर्व चरण में।
न्यायालय का विश्लेषण एवं आदेश
अदालत ने तथ्यों पर ध्यान दिया और पाया कि शिकायतकर्ता द्वारा याचिकाकर्ता-कलेक्टर के खिलाफ लगाया गया एकमात्र आरोप यह है कि 4 अप्रैल, 2018 को उसने मृतक से पूछा कि वह कौन लोग या परियोजनाएं या एजेंसियां हैं, जिन्होंने कलेक्टर को या तो मासिक आधार पर या कार्य-से-कार्य आधार पर धन दिया।
शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि कलेक्टर यह जानना चाहते थे कि वे कौन लोग हैं, जो आमतौर पर वसूली करते हैं। कलेक्टर ने कथित तौर पर मृतक से पूछा कि क्या वह उसकी ओर से कमीशन इकट्ठा करने की जिम्मेदारी ले सकता है। जब मृतक ने इस तरह की वसूली करने में असमर्थता व्यक्त की तो याचिकाकर्ता स्पष्ट रूप से परेशान था।
उपलब्ध सामग्रियों की जांच करने के बाद न्यायालय का विचार था कि न तो मेडिकल साक्ष्य और न ही शिकायतकर्ता की याचिकाओं और बयानों और साथ ही अन्य गवाहों के बयानों में प्रथम दृष्टया, यहां तक कि यह सुझाव देने के लिए कोई सबूत नहीं है कि मौत प्रकृति में मानव हत्या थी।
कोर्ट ने यह कहा,
“ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसा कोई आरोप नहीं है, जो याचिकाकर्ताओं को मृतक की मौत से दूर-दूर तक जोड़ता हो। विरोध याचिका में यह आरोप लगाने के अलावा कि याचिकाकर्ता-मनीष अग्रवाल ने जांच के दौरान प्रासंगिक तथ्यों को दबाने के लिए अपने पद का इस्तेमाल किया। याचिकाकर्ताओं पर मृतक की मौत का कोई आरोप नहीं है।'
इसलिए न्यायालय ने कहा,
जब तक मानव वध की संभावना स्थापित नहीं हो जाती, तब तक अपराधी की पहचान सुनिश्चित करने का प्रयास करना व्यर्थ होगा।
इस प्रकार, न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ हत्या के आरोप (आईपीसी की धारा 302 के तहत) को बरकरार रखने में असमर्थता व्यक्त की।
जहां तक आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप का सवाल है, अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आरोप पत्र में ही दर्ज किया गया, "जांच से पता चला है कि मृतक देबा नारायण पांडा अपने सेवा मामलों से परेशान था और उसने सतीगुडा बांध में कूदकर आत्महत्या कर ली।"
इसलिए अदालत ने रेखांकित किया कि अभियोजन पक्ष ने भी स्वीकार किया कि मृतक अपने सेवा मामलों के कारण परेशान था, जो इतना मजबूत था कि उसे आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया।
अदालत ने कहा,
“आरोपी व्यक्तियों का उपरोक्त आचरण उकसावे की श्रेणी में आएगा या नहीं, यह स्पष्ट रूप से ट्रायल के दौरान पेश किए गए सबूतों से निर्धारित किया जा सकता है, लेकिन इस प्रारंभिक चरण में नहीं। ध्यान देने वाली बात यह है कि जांच में मृतक के लिए अपनी सेवा से परेशान होकर चरम कदम उठाने पर विचार करने के अलावा कोई ठोस कारण नहीं सुझाया गया है।''
इसलिए न्यायालय ने आईपीसी की धारा 302 और 506 के तहत आरोपों को हटाकर और आईपीसी की धारा 306/120-बी/34 के तहत आरोपों को बरकरार रखते हुए आरोपों को संशोधित करना उचित समझा, क्योंकि उपरोक्त अपराधों के लिए आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त सामग्री मौजूद है।
तदनुसार, ट्रायल कोर्ट को यथासंभव शीघ्र और आदर्श रूप से आठ महीने के भीतर मुकदमे को समाप्त करने का निर्देश दिया गया था।
केस टाइटल: मनीष अग्रवाल बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य।
केस नंबर: सीआरएलएमसी नंबर 551/2023
फैसले की तारीख: 22 जून, 2023
याचिकाकर्ता के वकील: मिलन कानूनगो, सीनियर एडवोकेट और युवराज पारेख।
राज्य के वकील: टी.के. प्रहराज, सरकारी वकील
साइटेशन: लाइव लॉ (ओआरआई) 69/2023
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