उड़ीसा हाईकोर्ट ने वकीलों को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत जमानत आवेदन दाखिल करने या गिरफ्तारी/कठोर कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग न करने का निर्देश देते हुए स्थायी आदेश जारी किया
उड़ीसा हाईकोर्ट ने बुधवार को वकीलों को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत जमानत/अंतरिम जमानत/गिरफ्तारी आवेदन दाखिल करने या गिरफ्तारी/कठोर कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग न करने का निर्देश देते हुए स्थायी आदेश जारी किया।
कोर्ट ने उक्त प्रावधान के तहत याचिकाओं को दायर करने और सूचीबद्ध करने के संबंध में निम्नलिखित निर्देश भी जारी किए:
1. सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर हर याचिका में एफआईआर/आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग करते हुए याचिका के मुख्य भाग में घोषणा प्रस्तुत की जाएगी, जिसमें किसी भी रूप में या उसी एफआईआर/पीएस से उत्पन्न होने वाली किसी भी प्रकृति की याचिका का विवरण दिया जाएगा। यदि पहले कोई याचिका दायर की गई तो मामले की संख्या दी जाएगी और उसमें पारित आदेश याचिका के साथ संलग्न किया जाएगा, जो याचिकाकर्ता के शपथ पत्र द्वारा समर्थित होगा।
2. यदि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत पहले दायर याचिका बाद की याचिका (याचिकाओं) को किसी भी बेंच द्वारा उसी एफआईआर/पीएस से उत्पन्न होने वाली समान प्रार्थना के साथ निपटाया गया। मामले को उसी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा, यदि ऐसी न्यायपीठ उपलब्ध है।
3. सीआरपीसी की धारा 482 के तहत याचिका में जमानत देने, अंतरिम जमानत, गिरफ्तारी पर रोक/जबरदस्ती की कार्रवाई के लिए प्रार्थना नहीं करेंगे, क्योंकि ऐसी प्रार्थनाओं के लिए अलग वैधानिक प्रावधान हैं। यदि याचिका में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्रार्थना खंड के तहत ऐसी कोई भी प्रार्थना शामिल है, इसे दोष के रूप में इंगित किया जाएगा।
यह आदेश आज 4 मई से प्रभावी होगा।
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