उड़ीसा हाईकोर्ट ने COVID-19 के इलाज के रूप में लाल चींटी की चटनी का प्रस्ताव रखने वाली याचिका खारिज की
उड़ीसा हाईकोर्ट ने शुक्रवार (09 अप्रैल) को लाल चींटियों का उपोयग करके तैयार की जाने वाली 'कैई (कुकुटी) चटनी (पेस्ट)' का COVID-19 वायरस के संक्रमण को रोकने का दावा करने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
याचिका को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति बीपी राउत्रे की पीठ ने कहा कि आदिवासी समुदायों द्वारा औषधीय और चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए लाल चींटी की चटनी या सूप का उपयोग उनके पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों पर आधारित है, जिस पर टिप्पणी करना न्यायालय के लिए मुश्किल है।
कोर्ट के समक्ष दलील
कोर्ट के समक्ष याचिका दायर करने वाले सहायक अभियंता (सिविल), टेकतपुर, आर एंड बी सेक्शन, बारीपदा, जिलामायूरभंज के रूप में काम कर रहा है और वह बथुडी आदिवासी आदिवासी समुदाय से है।
अपनी दलील में उन्होंने दावा किया कि 'कैई (कुकुटी) चटनी (पेस्ट)' जो लाल चींटियों, हरी मिर्च (धनुआ लंका) के साथ मिलाकर तैयार की जाती है, एक गुणकारी औषधि है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा दे सकती है और इस प्रकार, COVID-19 वायरस के संक्रमण से बचा सकती है।
इससे पहले, जब वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विचार नहीं किया गया था, तो याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला किया। याचिका निपाटार करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को ICMR के सक्षम अपने प्रतिनिधित्व दाखिल करने के लिए कहा।
इसके बाद, याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को आयुष मंत्रालय, भारत सरकार और सीएसआईआर दोनों द्वारा स्वीकार किया गया।
अपनी टिप्पणी में सीएसआईआर ने कहा कि वर्तमान में उसके पास एंटोमोफैगी के क्षेत्र में आवश्यक विशेषज्ञता नहीं है और इसलिए वह मामले में कोई कार्रवाई करने में सक्षम नहीं होगा।
जैसा कि केंद्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के संबंध में यह नोट किया गया कि यह ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम, 1940 की पहली अनुसूची में वर्णित आयुर्वेद की शास्त्रीय पुस्तकों से लाल चींटी की चटनी के आंतरिक उपयोग पर किसी भी संदर्भ में नहीं मिल सकता है, इसलिए याचिकाकर्ता इसे आयुर्वेदिक चिकित्सा के रूप में मान्य करा सकता है।
इसलिए, यह भी कहा गया कि COVID-19 रोगी द्वारा लाभकारी उपयोग के लिए लाल चींटी की चटनी या सूप का उपयोग "ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम, 1940 और नियम, 1945 के नियामक प्रावधानों के अनुसार आयुर्वेद दवाओं के दायरे से बाहर है।"
याचिकाकर्ता के वकील ने जोर देकर कहा कि आयुष मंत्रालय के साथ-साथ सीएसआईआर दोनों को इस मामले को विशेषज्ञों के दूसरे निकाय के पास भेजना चाहिए। इसके लिए याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की कि वह इस उद्देश्य के लिए वर्तमान याचिका के संदर्भ में नोटिस जारी करे।
इस पर कोर्ट ने कहा,
"कोर्ट उपरोक्त प्रार्थनाओं को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं है। ये सीएसआईआर और सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज, जैसे विशेष निकायों द्वारा निर्णय के लिए सबसे अच्छे मामले हैं। वहां कई अच्छे विशेषज्ञ हैं।"
कोर्ट ने आगे कहा,
"न्यायालय के पास कथित विशेषज्ञ निकायों के निर्णय पर अपील में बैठने के लिए अपेक्षित विशेषज्ञता नहीं है, जो उनके द्वारा बताए गए कारणों के लिए चिकित्सीय या औषधीय प्रयोजनों के लिए उनके सार्वभौमिक आवेदन की सिफारिश करने के लिए इच्छुक नहीं हैं।"
तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
केस का शीर्षक- इर. नयधर पढियाल बनाम भारत संघ [W.P.(C) No. 8317 of 2021]
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