केवल संसद ही एससी लिस्ट में किसी जाति को शामिल कर सकती है: 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित करने के यूपी सरकार के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज किया

Update: 2022-09-03 13:55 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग की 17 उप-जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता देने या स्वीकार करने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा केवल संसदीय कानून के जरिए ही किया जा सकता है।

चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर ने कहा है,

"संविधान के अनुच्छेद 341 के प्रावधान संसद द्वारा बनाए गए कानून को छोड़कर संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 द्वारा प्रदान की गई राज्य में अनुसूचित जाति की सूची में किसी भी जाति या समूह को शामिल करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ते हैं।"

उत्तर प्रदेश सरकार ने जिन जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने की इच्छा प्रकट की है, वे - मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मचुआ हैं।

मामला

पीठ डॉ बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति, गोरखपुर द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें 2016, 21 दिसंबर और 22 दिसंबर, में जारी दो सरकारी आदेशों को चुनौती दी गई थी।

उन आदेशों के जरिए कुछ 'अन्य पिछड़ी जातियों' को अनुसूचित जाति घोषित करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि संविधान के अनुच्छेद 341 के प्रावधान के तहत किसी भी जाति को एससी लिस्ट में शामिल करने का अधिकार केवल संसद के पास है।

इसके अलावा एक अन्य रिट याचिका गोरख प्रसाद ने दायर की थी, जिसमें राज्य की ओर से 24 जून, 2019 को जारी आदेश को उसी प्रभाव के लिए चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया था कि अनुसूचित जातियों की सूची भारत के राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई थी और इसमें कोई भी बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है और राज्यों को इसमें किसी भी तरह से संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है।

अवलोकन

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, जहां तक ​​21 दिसंबर 2016 के आदेश का संबंध है, उसने संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 में किसी जाति को अनुसूचित जाति के रूप में जोड़ा या पेश नहीं किया है।

न्यायालय ने कहा कि 21 दिसंबर के आदेश में केवल यह कहा गया है कि मझवार जाति के सदस्य, जिनकी अनुसूचित जाति के आदेश में प्रवेश संख्या 53 है, उन्हें उनकी स्थिति के सत्यापन के बाद आवश्यक प्रमाण पत्र जारी किए जाने चाहिए, इसलिए, न्यायालय को उस आदेश में कोई अवैधता नहीं मिली है।

हालांकि, 22 दिसंबर के आदेश के संबंध में कोर्ट ने कहा कि उसने स्पष्टीकरण के नाम पर 17 अन्य पिछड़े जानियों को अनुसूचित जाति के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता दी है।

कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यूपी सरकार का 17 जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता देने का आदेश, जो वैसे ओबीसी की श्रेणी में हैं, उचित नहीं था, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 341 के प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार को ऐसा करने की अनुमति नहीं है।

कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य बनाम केशव विश्वनाथ सोनोन [Civil Appeal No 4096 of 2020] पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि राष्ट्रपति के आदेश में शामिल करने या बाहर करने, संशोधित करने या बदलने की शक्ति स्पष्ट रूप से और विशेष रूप से संसद में निहित है। उक्त प्रावधानों और आदेशों के मद्देनज़र कोर्ट ने 22 दिसंबर 2016 और 24 जून 2019 के आदेश को रद्द कर दिया।

केस टाइटल- डॉ बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [PIL NO- 2129 Of 2017 ]

केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 412

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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