केवल जाति सत्यापन समिति ही कास्ट सर्टिफिकेट की वैधता तय कर सकती है, मजिस्ट्रेट नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने 61-वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला खारिज किया

Update: 2023-01-19 10:37 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने उस 61 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी के मामले को खारिज कर दिया है, जिस पर कथित तौर पर झूठा कास्ट सर्टिफिकेट प्राप्त करने का आरोप था। इसमें कहा गया कि वह अनुसूचित जाति से संबंधित है, जिसके आधार पर उसने बीईएमएल में नौकरी हासिल की।

जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल न्यायाधीश पीठ ने एस. नीलकंठप्पा द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए कहा,

"याचिकाकर्ता के पक्ष में जारी कास्ट सर्टिफिकेट को नियमों के प्रावधान के तहत रद्द नहीं किया गया, इसलिए (कर्नाटक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग) (नियुक्ति का आरक्षण आदि) नियमावली 1992, अंतिम रिपोर्ट के आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया संज्ञान अस्वीकार्य है।"

इसके अलावा पीठ ने यह स्पष्ट किया,

"मजिस्ट्रेट कास्ट सर्टिफिकेट की वैधता पर निर्णय नहीं दे सकते हैं और नियम 1992 के तहत केवल जाति सत्यापन समिति ही निर्णय ले सकती कि क्या याचिकाकर्ता ने जाली रूप से कास्ट सर्टिफिकेट प्राप्त किया है कि वह माचला समुदाय से संबंधित है। हालांकि वह बुनकर समुदाय से संबंधित है, जो अनुसूचित जाति समुदाय नहीं है।”

यह आरोप लगाया गया कि यद्यपि याचिकाकर्ता बुनकर समुदाय से संबंधित है, उसने तहसीलदार, बेल्लारी तालुक में झूठी जानकारी प्रस्तुत करके कास्ट सर्टिफिकेट प्राप्त किया कि वह माचला समुदाय से संबंधित है, जिसे अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने पर अभियुक्त ने डिस्चार्ज अर्जी दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। अस्वीकार करने के अपने आदेश में मजिस्ट्रेट ने कहा कि याचिकाकर्ता बुनकर समुदाय से है या माचला समुदाय से, इस मामले पर फुल ट्रायल के बाद विचार करने की आवश्यकता है। अपील में सेशन कोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को भी बरकरार रखा। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि कर्नाटक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (नियुक्ति का आरक्षण आदि) नियम, 1992 के नियम 6ए और 7(4) के तहत निर्दिष्ट जाति सत्यापन समिति द्वारा की गई किसी भी जांच के अभाव में पुलिस के पास भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 के तहत दंडनीय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने का अधिकार नहीं है, जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता-आरोपी ने गलत जानकारी देकर कास्ट सर्टिफिकेट प्राप्त किया।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता-आरोपी के पक्ष में जारी किया गया कास्ट सर्टिफिकेट कि वह मचला समुदाय से संबंधित है। अभी भी अस्तित्व में है और सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियम, 1992 के तहत रद्द नहीं किया गया है।

नियमावली, 1992 के नियम 7(4) का हवाला देते हुए, जो वैधता सर्टिफिकेट के अनुदान के लिए आवेदक के दावे को खारिज करने के बाद जाति सत्यापन समिति को निर्दिष्ट करता है, उसकी प्रति भेजेगा और उसके बाद नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय मुकदमा चलाने के लिए ऐसे दावेदार के खिलाफ कदम उठाएगा, जिन्होंने झूठा जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया है।

अदालत ने टिप्पणी की,

"उपरोक्त प्रावधानों को पढ़ने से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 420 के तहत दंडनीय अपराध के लिए केवल जाति सत्यापन समिति द्वारा पारित आदेश पर मुकदमा चलाया जा सकता है, जिसमें याचिकाकर्ता के वैधता सर्टिफिकेट का दावा खारिज कर दिया गया। उसके बाद नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कदम उठाएगा।"

इसके बाद यह माना गया कि "याचिकाकर्ता के पक्ष में जारी किया गया कास्ट सर्टिफिकेट रूल, 1992 के प्रावधान के तहत रद्द नहीं किया गया। अंतिम रिपोर्ट के 7 आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया संज्ञान अस्वीकार्य है।"

केस टाइटल: एस नीलकांतप्पा और कर्नाटक राज्य और अन्य

केस नंबर: क्रिमिनल पेटिशन नंबर 6915/2016

साइटेशन: लाइवलॉ (कर) 19/2023

आदेश की तिथि: 04-01-2023

उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट प्रभुगौड़ा बी तुम्बिगी, एचसीजीपी महेश शेट्टी आर1 के लिए और विशेष पीपी सी. जगदीश आर-2 के लिए पेश हुए।

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




Tags:    

Similar News