'एक बार जब याचिका में गलती का मुद्दा उठाया जाता है, तो उसको साबित करने का जिम्मा भी पक्षकार का होता है': मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2021-03-05 10:09 GMT

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने कहा कि एक व्यक्ति, जो न्यायालय के समक्ष पेश किसी भी सबूत को हटाने के लिए एक बार जब याचिका में गलती का मुद्दा उठाया जाता है, तो उसको साबित करने का जिम्मा भी पक्षकार का होता है।

न्यायमूर्ति आर सुब्रमण्यन की एकल पीठ ने एक महिला की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मांग का दावा किया गया था कि वह एक हिंदू महिला है और गलती से उसे स्कूल प्रमाणपत्र में ईसाई के रूप में दिखाया गया है।

बेंच ने महिला के पति द्वारा की गई प्रार्थना को भी अनुमति दी, जिसमें महिला के पति ने उनकी शादी को इस आधार पर शून्य और अमान्य घोषित करने की प्रार्थना की है कि उसकी पत्नी हिंदू नहीं है और पहले उसे गलत जानकारी दी गई थी।

बेंच ने कहा कि,

"निचली अदालतों द्वारा अपीलकर्ता की ओर से गलत व्याख्या के खिलाफ प्रस्तुत किए गए सबूतों का भार निर्वहन नहीं किया गया और यह निष्कर्ष निकाला था कि अपीलकर्ता इसे साबित करने की बोझ से मुक्त नहीं है। एक बार जब याचिका में गलती का मुद्दा उठाया जाता है, तो उसको साबित करना  पक्षकार का कर्तव्य का होता है। उपलब्ध सबूतों के यह स्पष्ट होता है कि इस तथ्य को स्पष्ट रूप से इंगित किया जाएगा कि तथ्य के संदर्भ में शादी के समय प्रतिवादी के ओर से अपने धर्म के बारे में गलत जानकारी दी गई थी।"

पृष्ठभूमि

इस मामले में अपीलकर्ता ने अदालत से यह घोषणा करने की मांग की कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 के तहत शर्तों के उल्लंघन के कारण उसके और प्रतिवादी पत्नी के बीच हुई शादी शून्य और अमान्य घोषित किया जाए।

उसने (पति) ने आरोप लगाया कि 2003 में उनके शादी के बाद, उन्होंने पाया कि प्रतिवादी ईसाई धर्म की है और कुछ पूछताछ करने और खोजने पर उसका स्कूल प्रमाण पत्र और एक सामुदायिक प्रमाण पत्र मिला, जिसमें यह दर्शाता गया है कि वह और उसका परिवार ईसाई धर्म का पालन करते हैं। इसलिए उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिवादी ने अपने धर्म की गलत जानकारी दी  और धोखाधड़ी करके मुझसे शादी की।

दूसरी ओर पीड़िता ने कहा कि वह और उसका परिवार हमेशा हिंदू धर्म का पालन करता आया है। जैसा कि स्कूल के रिकॉर्ड के एंट्री का संबंध है, वे गलती से बने थे क्योंकि उसके पिता ने उसे स्कूल में एडमिशन लेने का सहयोग नहीं किया था। उसने जून 2005 को एक सामुदायिक प्रमाणपत्र भी तैयार किया, जिसमें दिखाया गया कि वह एक हिंदू नादर है।

जांच-परिणाम

जज ने उल्लेख किया कि अपीलकर्ता के दावे का समर्थन करने के लिए सबूत के रूप में ढेर सारे दस्तावेज उपलब्ध हैं। इन सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रतिवादी जन्म से ईसाई है और उसने हमेशा ईसाई धर्म का पालन किया है। पीठ ने आगे कहा कि, यह शैक्षिक रिकॉर्ड के रूप में निर्विवाद सबूतों का दस्तावेज उपलब्ध है।

खंडपीठ ने कहा कि यह दिखाने के लिए साक्ष्य उपलब्ध हैं कि प्रतिवादी ने तहसीलदार के कार्यालय में ईसाई के रूप में सामुदायिक प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था।

इसके अलावा, प्रतिवादी द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि अपीलकर्ता द्वारा कानूनी कार्यवाही शुरू करने के बाद, प्रतिवादी द्वारा कि वह एक हिंदू है और इसके लिए हिंदू नादर का सामुदायिक प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया थ।

एकल पीठ ने देखा कि,

"प्रतिवादी द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि उसे उसके सभी शैक्षिक रिकॉर्ड में एक ईसाई के रूप में वर्णित किया गया है। वह दावा कर रही है कि ऐसा गलती से हुआ है। एक बार जब इस तरह के गलत विवरण को स्वीकार किया गया है, तो यह उस व्यक्ति का कर्तव्य है कि जिस विवरण को वह गलत कर रही है, उसे साबित करे गलती को सही साबित करे।

इस पृष्ठभूमि में, यह माना जाता है कि प्रतिवादी ने उसके द्वारा उठाए गए गलती की दलील को साबित नहीं किया है और अपीलकर्ता द्वारा पेश विभिन्न दस्तावेज प्रदर्शित करते हैं कि उसने (प्रतिवादी) खुद को ईसाई के रूप में वर्णित किया है।

खंडपीठ ने अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए 'सबूत' की अनदेखी करने पर निचली अदालतों की भी आलोचना की।

पीठ ने कहा कि,

"निचली अदालतों ने सबूतों की सराहना नहीं की, जो रिकॉर्ड पर उपलब्ध थे। उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेजी सबूतों को नजरअंदाज किया, जिसके परिणामस्वरूप उनके निष्कर्ष प्रस्तुत सबूतों के खिलाफ थे जो रिकॉर्ड पर उपलब्ध हैं। मैं यह बताने के लिए विवश हूं कि निचली अपीलीय अदालत ने इस तथ्य का पर ध्यान नहीं दिया था कि विभिन्न दस्तावेज विशेष रूप से आधिकारिक दस्तावेज जो लोग खुद बनवाते हैं और ऐसे दस्तावेजों को बनवाने के लिए वैधानिक रूप से बाध्य हैं, जो यह बताता है कि प्रतिवादी ईसाई है। इसने मूल याचिका दायर करने के बाद निकले दस्तावेजों पर भरोसा जताया। गलती के दावे को नकार दिया गया।

केस का शीर्षक: पी. शिवकुमार बनाम एस. बेउला

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:




Tags:    

Similar News