‘एक बेटी हमेशा बेटी रहती है’: हाईकोर्ट ने कहा विवाहित बेटियों को अनुकम्पा नियुक्ति से बाहर रखने की पंजाब पाॅलिसी अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि विवाहित बेटियों को उनके पिता की मृत्यु पर अनुकंपा नियुक्ति के लाभ से बाहर करने की पाॅलिसी भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक है।
जस्टिस जीएस संधवालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन की खंडपीठ ने कहाः
‘‘हमारी सुविचारित राय है कि एक विवाहित बेटी के मामले में शुरुआत में बहिष्करण (अपवाद)स्पष्ट रूप से मनमाना है। केवल लिंग के आधार पर दहलीज पर अस्वीकृति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन होगा क्योंकि इसके विपरीत समान रूप से स्थित भाई जैसे बेटा जो विवाहित हो सकता है और अलग रह रहा हो,फिर भी विचार के दायरे में आएगा क्योंकि उसके मामले में, नोट-I के खंड (बी) के तहत, ऐसा नहीं है कि विवाहित पुत्र होने के नाते उसके नाम को विचार से बाहर रखा गया है।’’
डिवीजन बेंच कई याचिकाओं के मामले में दिए गए फैसले के खिलाफ पंजाब राज्य द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। इन सभी याचिकाओं में पाॅलिसी/नीति को भेदभावपूर्ण बताते हुए चुनौती दी गई थी।
दिनांक 21.11.2002 के नीति/निर्देशों के नोट-I के विवादित खंड (सी) को पहले वर्तमान प्रतिवादियों द्वारा यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि अनुकंपा नियुक्ति के लाभार्थियों के रूप में खंड (सी) में ‘पुत्र’ (जिसमें विवाहित और अविवाहित पुत्र दोनों शामिल होंगे)शब्द के प्रयोग के विपरीत केवल ‘अविवाहित बेटियों’ का उल्लेख किया गया है,जो भेदभावपूर्ण है।
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक फैसले में, हालांकि आदेश दिया था कि खंड (सी) में ‘अविवाहित बेटी’ शब्द को ‘बेटी’ के रूप में पढ़ा जाना चाहिए, जिससे कि विवाहित बेटियां भी इसके दायरे में आ सकें।
खंडपीठ के समक्ष यह देखते हुए याचिकाओं को एक साथ जोड़ दिया गया था कि संवैधानिक महत्व का मामला शामिल है।
राज्य ने तर्क दिया कि विवादित खंड (सी) भेदभावपूर्ण नहीं था क्योंकि यह उचित वर्गीकरण से निकला है। यह तर्क दिया गया कि शादी के बाद, बेटी मृतक के परिवार पर निर्भर नहीं रहेगी और इसलिए पाॅलिसी ने उन्हें अनुकंपा नियुक्ति के लाभ से बाहर रख कर सही किया है।
राज्य ने आगे तर्क दिया कि यह अदालतों के लिए नहीं है कि वे ऐसी नीतियों या नियमों का विस्तार करें, ताकि विवाहित बेटियों को शामिल किया जा सके, जिन्हें पाॅलिसी में शामिल नहीं किया गया था।
राज्य ने गुरप्रीत कौर बनाम पंजाब राज्य व अन्य, 2019 (1) एससीटी 66 के मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले, महाराष्ट्र राज्य व अन्य बनाम माधुरी मारुति विधाते, 2022 (4) एससीटी 298 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले और सुमेर कंवर बनाम राजस्थान राज्य व अन्य, 2012 (2) एससीटी 331 के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का हवाला दिया।
हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने पाॅलिसी पर विचार करने के बाद कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के लाभ से विवाहित बेटियों को बाहर रखना भेदभावपूर्ण है।
न्यायालय ने कहाः
‘‘एक विवाहित बेटी को आवेदन करने से भी रोक दिया जाता है क्योंकि वह विचार के क्षेत्र में नहीं आएगी चाहे वह आश्रित हो या नहीं, लेकिन यह अपवाद केवल लिंग के आधार पर है और यह स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण होगा। मृतक सरकारी कर्मचारी की भले ही बेटियां और एक विधवा हो परंतु वह रोजगार लेने की स्थिति में नहीं होंगी। केवल इसलिए कि बेटियों की शादी हो चुकी है, उनके नाम को विचार क्षेत्र से बाहर नहीं कर देगा।”
न्यायालय ने आगे कहा किः
“यह बार-बार देखा गया है कि एक बेटी हमेशा एक बेटी होती है जबकि एक बेटा इस तथ्य के कारण बदल सकता है कि वह शादीशुदा है और उसके पास देखभाल करने के लिए एक पत्नी है जिसके अपने ससुराल वालों के साथ गंभीर मतभेद हो सकते हैं। इसलिए, ऐसी स्थिति में भी बेटे को विचार का अधिकार मिलेगा, भले ही वह शादीशुदा हो और उसके माता-पिता के साथ अच्छे संबंध न हों, जबकि मृत सरकारी कर्मचारी के साथ अच्छे संबंध रखने वाली और विधवा की देखभाल करने की स्थिति वाली विवाहित बेटी के नाम को बाहर रखा जाएगा।’’
केस टाइटल- पंजाब राज्य व अन्य बनाम अमरजीत कौर
साइटेशन- एलपीए-462-2021 (ओ एंड एम) अन्य संबंधित मामलों के साथ
कोरम- जस्टिस जीएस संधवालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन
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