बालिग होने पर महिलाएं अपनी पसंद ज़ाहिर करने की हकदार, कोर्ट सुपर गार्जियन की भूमिका नहीं निभा सकता : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2020-10-27 07:23 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार (14 अक्टूबर) को हैबियस कार्पस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि  बालिग महिलाएं, अपनी पसंद चुनने और ज़ाहिर करने की हक़दार हैं और वे जहां चाहें रह सकती हैं।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की खंडपीठ ने आगे कहा कि अदालतें उन पर कोई प्रतिबंध लगाने के लिए एक सुपर गार्जियन की भूमिका नहीं निभा सकती।

न्यायालय के समक्ष मामला

हैबियस कार्पस याचिका दो बेटियों के पिता (जो नाबालिग बताई गई थी) ने दायर की थी। जिसमें मांग की गई थी कि प्र तिवादी नंबर 1 से 3 को निर्देश दिया जाए कि वह डिटेन्यू 'ए' और 'बी' (पहचान छुपाने के लिए नामों का उल्लेख नहीं किया गया है) को प्रतिवादी नंबर 4 से 9 के घरों में खोजे और उन्हें उनकी अवैध हिरासत से मुक्त करवाए।

यह दलील दी गई थी कि दोनों 'ए' और 'बी' याचिकाकर्ता-उस्मान खान की अविवाहित बेटियां हैं।

यह आरोप लगाया गया था कि डिटेन्यू ('ए' और 'बी') अपने साथ पैसे व गहनें भी ले गई हैं और 26 जून 2020 की रात प्रतिवादी नंबर 4 से 9 ने उन दोनों का उसके घर से अपहरण किया था। जिसके बाद उन्हें अवैध हिरासत में रखा गया है।

11 अगस्त 2020 को कोऑर्डिनेट बेंच ने अपने आदेश के तहत रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि एक वारंट ऑफिसर नियुक्त करें।

इसके बाद, वारंट अधिकारी ने दिनांक 21 अगस्त 2020 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की और बताया कि याचिकाकर्ता द्वारा बताए गए स्थानों पर दोनों डिटेन्यू ('ए' और 'बी') न तो किसी हिरासत में पाई गई, ना ही वैसे पाई गई।

हालांकि, डिटेन्यू अपने वकील के साथ 25 सितम्बर 2020 को अदालत के सामने पेश हुई और कहा कि वह बालिग हो चुकी हैं। उन्होंने उस आरोप का भी खंडन किया कि किसी ने उनका अपहरण किया था।

दिनांक 25 सितम्बर 2020 के आदेश के तहत दोनों डिटेन्यू को कोर्ट के अगले आदेश तक नारी निकेतन, सेक्टर -26, चंडीगढ़ में रखने का आदेश दिया गया था। वहीं उनकी उम्र, उनके अपहरण और अवैध हिरासत के संबंध में परस्पर विरोधी बयानों को देखते हुए न्यायिक /ड्यूटी मजिस्ट्रेट, चंडीगढ़ को निर्देश दिया गया था कि वह अपराध प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 164 के तहत दोनों डिटेन्यू का बयान दर्ज करें। जिसमें उनकी उम्र, क्या उनका अपहरण किया गया था या अवैध रूप से किसी को हिरासत में रखा गया था या उन्होंने अपना घर अपनी मर्जी से छोड़ा था या किसी अन्य परिस्थिति के कारण आदि के बारे में पूछा जाए। वहीं दस्तावेजी प्रमाण सहित डिटेन्यू की उम्र के संबंध में याचिकाकर्ता-उस्मान खान का भी बयान दर्ज किया जाए।

दोनों डिटेन्यू का बयान

अपने बयानों में उन्होंने ('ए' और 'बी') बताया कि उन दोनों का उनके मामा के बेटों ने बलात्कार किया था और जब उन्होंने अपने पिता उस्मान खान को उक्त घटना सुनाई तो उन्होंने उनकी बात सुनने के बजाय उन्हें फटकार लगाई।

इसके बाद, दोनों को उनके परिवार के सदस्यों ने बंदी बना लिया। उनके पिता ने उन्हें पैसे के लिए बेचने की कोशिश की और जबरन शादी करवाने की कोशिश भी की। उक्त परिस्थितियों के कारण, वे किसी तरह उपरोक्त व्यक्तियों के चंगुल से बचकर 27 जून 2020 को मोहाली पहुँची। उन्होंने इच्छा व्यक्त की है कि वे अपने शोषण और दुर्व्यवहार के कारण अपने घर नहीं लौटना चाहती हैं।

उनके बयानों के अनुसार, उनका अपहरण नहीं किया गया था और न ही उनको अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था। उन्होंने शोषण और दुर्व्यवहार के कारण अपने घर को छोड़ दिया था। दोनों ने यह भी उल्लेख किया कि वह अब बालिग हो चुकी हैं।

न्यायालय की टिप्पणी

याचिका की सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने दोनों डिटून्ये के साथ भी बातचीत की। जिन्होंने दोहराया कि दोनों की आयु 18 वर्ष से अधिक है और वह बालिग हैं और उनका अपहरण किसी के द्वारा नहीं किया गया था और वे खुद ही अपने घर छोड़ गई थी। वे मोहाली में अलग रहना चाहती हैं और सिलाई का काम करके अपना गुजार-बसर कर लेंगी।

इस पर कोर्ट ने कहा,

''... दोनों डिटेन्यू में से किसी को भी नाबालिग नहीं कहा जा सकता है। दोनों के बयानों के मद्देनजर, जो बालिग हैं, यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादी नंबर 4 से 9 ने उनका अपहरण किया था या अवैध रूप से किसी ने भी उनको अपनी हिरासत में रखा था।''

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा,

''बालिग होने के कारण, दोनों डिटेन्यू को अपनी पंसद चुनने का हक है और जहाँ भी वे चाहती हैं,रहने की हकदार हैं और अदालत एक सुपर अभिभावक की भूमिका नहीं निभा सकती है और उन पर किसी भी प्रतिबंध को नहीं लगा सकती है। इसप्रकार,दोनों डिटेन्यू को नारी निकेतन, सेक्टर -26,चंडीगढ़ से रिलीज करने का आदेश दिया गया है। साथ ही दोनों डिटेन्यू को स्वतंत्रता दी है कि वह अपनी मर्जी से किसी भी स्थान पर जा सकती हैं।''

कोर्ट ने यह भी कहा,

''चूंकि दोनों डिटेन्यू का अपहरण नहीं किया गया है और न ही किसी ने उनको अवैध रूप से हिरासत में रखा है और न ही वह अपने पिता-याचिकाकर्ता के साथ नहीं जाना चाहती हैं, इसलिए मौजूदा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर कोई कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए इस याचिका को खारिज किया जा रहा है।''

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