"राज्य की ओर से कुछ भी संतुष्टिजनक तर्क नहीं रखे गए": इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यूपी 'लव जिहाद' कानून के तहत आरोपित एक व्यक्ति को जमानत दी
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के 'लव जिहाद' कानून के रूप में जाने जाने वाले उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश के तहत बुक किए गए एक व्यक्ति को यह देखते हुए जमानत दे दी कि शिकायतकर्ता और राज्य की ओर से जमानत न दिए जाने को लेकर कुछ भी ठोस तर्क नहीं दिया गया था।
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा- I की पीठ अपीलकर्ता/आरोपी मोतीराम की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर धारा - 342, 366, 384, 506 I.P.C,उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश एवं आईटी ऐक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।
इससे पहले विशेष न्यायाधीश एस.सी./एस.टी. ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। और इसलिए उसने उच्च न्यायालय के समक्ष धारा 14-ए (2) एससी / एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत एक आपराधिक अपील दायर की।
उसने दावा किया कि इस मामले में अन्य सह-आरोपियों, जो कथित तौर पर धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया में सीधे तौर पर शामिल थे, से उसका मामला एकदम अलग है।
आवेदक की ओर से यह तर्क दिया गया कि उसके खिलाफ केवल यह मामला था कि सीआरपीसी की धारा-161 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान में उसकि एकमात्र यह भूमिका बताई गई थी कि जब पीड़िता का कथित रूप से धर्म परिवर्तन किया जा रहा था, तब वह मौके पर मौजूद था।
इसके अलावा, यह आगे तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता के खिलाफ कुछ भी अन्य ठोस सामग्री मौजूद नहीं थी और केवल पीड़िता के पड़ोसी होने के नाते, उसे इस मामले में दुश्मनी के कारण शामिल/आरोपित किया गया था।
इस परिस्थिति में, न्यायालय ने यह गौर करते हुए कि वह मार्च 2021 में जेल में था, उसने इस प्रकार देखा:
"मैंने इस तरह की गई प्रतिद्वंद्वी प्रस्तुतियों पर विचार किया है और उस आदेश सहित पूरे रिकॉर्ड को देखा है जिसके द्वारा अपीलकर्ता की जमानत याचिका खारिज कर दी गई है। शिकायतकर्ता / राज्य की ओर से कुछ भी ऐसा तर्क नहीं दिया गया है जिससे अपीलकर्ता की जमानत अर्जी खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को सही ठहराया या कायम रखा जा सके।"
इस प्रकार, उपरोक्त को, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को और सबूतों, को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता ने जमानत के लिए एक मामला बनाया था।
तद्नुसार अपील स्वीकार की गई और अपीलार्थी की जमानत खारिज करने वाले दिनांक 07.04.2021 के आक्षेपित आदेश को अपास्त किया गया।