नॉन-डोमिसाइल कैंडिडेट पंजाब महिलाओं के लिए 33% आरक्षण के तहत नियुक्ति के हकदार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि नॉन-डोमिसाइल कैंडिडेट को पंजाब से संबंधित महिलाओं के लिए 33% आरक्षित पदों में नियुक्ति के लिए विचार नहीं किया जा सकता।
अदालत के सामने मुद्दा यह था कि क्या आरक्षण पंजाब राज्य की महिलाओं तक ही सीमित है या यह अन्य राज्यों की सभी महिलाओं पर भी लागू है।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल ने पंजाब सरकार के विभिन्न विभागों में जूनियर इंजीनियर (सिविल) की नियुक्तियों से संबंधित याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि नियमों में कहीं भी प्रावधान नहीं है कि पंजाब राज्य की नॉन-डोमिसाइल महिलाएं भी आरक्षण की हकदार होंगी।
अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने लिखित परीक्षा पास कर ली है और मेरिट सूची में भी है लेकिन सरकार उन्हें नियुक्त करने में विफल रही। उनका यह मामला है कि नियम पंजाब की डोमिसाइल महिलाओं और नॉन-डोमिसाइल महिला कैंडिडेट के बीच कोई अंतर नहीं करते हैं।
याचिकाकर्ताओं द्वारा यह तर्क दिया गया कि नियम, जैसा कि भर्ती नोटिस जारी करने की तारीख पर लागू था, महिलाओं के लिए उनके निवास स्थान पर ध्यान दिए बिना 33% आरक्षण प्रदान करता है और यदि कोई स्पष्टीकरण हो तो उसको पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता।
जवाब में पंजाब सरकार ने कहा कि कैबिनेट के दिनांक 18.03.2017 के फैसले में ग्रुप-ए, बी, सी और डी पदों की सीधी भर्ती में पंजाब राज्य की महिलाओं के लिए 33% आरक्षण स्पष्ट रूप से प्रदान किया गया।
सरकार ने यह भी कहा कि पंजाब सिविल सेवा (महिलाओं के लिए पदों का आरक्षण) नियम, 2020 को अधिसूचित किया गया और नियम 4 में सीधी भर्ती के स्तर पर सभी प्रतिष्ठानों के तहत ग्रुप 'ए', ग्रुप 'बी', ग्रुप 'सी' और ग्रुप' डी में सभी पदों पर महिलाओं के पक्ष में 33% आरक्षण का प्रावधान है।
अदालत को बताया गया,
"आरक्षित पदों के खिलाफ याचिकाकर्ताओं की उम्मीदवारी पर विचार नहीं किया गया, क्योंकि वे गैर-अधिवास वाले उम्मीदवार हैं।"
जस्टिस क्षेत्रपाल ने कहा कि कैबिनेट ने 18.03.2017 को हुई अपनी बैठक में "पंजाब राज्य से संबंधित महिलाओं को" 33% आरक्षण देने का सचेत निर्णय लिया। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि नियमों में आरक्षण के विशेष पहलू पर अस्पष्टता है।
अदालत ने यह भी जोड़ा,
"हालांकि, नियम कहीं भी यह नहीं कहते कि पंजाब राज्य की गैर-अधिवासित महिलाएं भी उक्त आरक्षण की हकदार होंगी। किसी भी मामले में कार्मिक विभाग द्वारा 29.01.2021 को जारी संचार में इस अस्पष्टता को हटा दिया गया।“
अदालत ने तब इस सवाल पर विचार किया कि क्या विभाग द्वारा किए गए इस तरह के स्पष्टीकरण के परिणामस्वरूप नियमों में संशोधन किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि यह सुस्थापित नियम है कि किसी भी कठिनाई के मामले में राज्य सरकार अंतराल या कमियों को भरने के लिए स्पष्टीकरण जारी कर सकती है।
इस संबंध में अदालत ने संत राम शर्मा बनाम राजस्थान राज्य, अन्य 1967 सुप्रीम कोर्ट, 1910 पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार प्रशासनिक निर्देशों द्वारा वैधानिक नियमों में संशोधन या अधिक्रमण नहीं कर सकती है, लेकिन यदि नियम किसी विशेष बिंदू पर सरकार अंतराल को भर सकती है और नियमों को पूरा कर सकती है और निर्देश जारी कर सकती है, जो पहले से बनाए गए नियमों से असंगत नहीं है।
अदालत ने कहा कि कैबिनेट के फैसले से यह स्पष्ट होता है कि राज्य सरकार की मंशा पंजाब राज्य की महिलाओं को सीधी भर्ती में 33% आरक्षण देने की है।
अदालत ने कहा,
“2020 नियमों के नियम 6 को सावधानीपूर्वक पढ़ने पर यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार के पास नियमों को लागू करते समय उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को दूर करने की सक्षम शक्ति है। तथ्यों को दुहराने के लिए राज्य सरकार द्वारा कार्मिक विभाग के माध्यम से भर्ती नोटिस जारी करने से पूर्व दिनांक 29.01.2021 का पत्र जारी किया गया। ऐसी परिस्थितियों में वकील के इस तर्क में कोई दम नहीं है कि एक बार भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद फरवरी, 2022 में संचार के बाद का स्पष्टीकरण लागू नहीं होगा। यह स्पष्ट है कि 18.03.2017 को हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य सरकार की मंशा क्रिस्टल की तरह स्पष्ट है।"
इसलिए अदालत ने याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता रिट जारी करने के लिए मामला बनाने में विफल रहे हैं।
अदालत ने यह भी कहा,
"स्पष्टीकरण नियमों को जारी करने की तारीख से संबंधित होगा क्योंकि कैबिनेट के निर्णय को लागू करने के लिए संबंधित विभाग द्वारा प्रयास किया जाता है," यह कहा।
एडवोकेट अरुण चंदर शर्मा, मोहित गर्ग और पीकेएस फूलका ने तीन याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया।
सीनियर एडवोकेट अनमोल रतन सिद्धू, एडवोकेट विकास चतरथ, एडवोकेट राजेश नारंग और अन्य ने याचिकाओं में विभिन्न निजी प्रतिवादियों का एडवोकेट किया। सीनियर एडवोकेट रूपिंदर खोसला ने भी कुछ आवेदकों का प्रतिनिधित्व किया। वहीं एएजी चरणप्रीत सिंह ने पंजाब सरकार का प्रतिनिधित्व किया।
केस टाइटल: कल्पना कोमल भाटी बनाम पंजाब राज्य व अन्य और अन्य संबंधित मामले
कोरम : जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल
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