एनडीपीएस एक्ट की धारा 42 पर अमल न करना ट्रायल को समाप्त कर देता है : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एवं साइकोट्रॉपिक सब्सटांसेज एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) के तहत पंढरपुर स्थित विशेष न्यायाधीश के रिहाई आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 42 की आवश्यकताओं पर अमल कर पाने में विफल रहना अभियोजन पक्ष के केस को प्रभावित करेगा और ट्रायल को समाप्त कर देगा।
विशेष न्यायाधीश ने 15 मई 2004 को एक आदेश जारी करते हुए एनडीपीएस एक्ट की धारा 20 (बी) (ii)(सी) के तहत अपराधों के सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष न केवल मामले के गुण दोष (मेरिट) के आधार पर असफल हुआ, जबकि ट्रायल कोर्ट ने भी एनडीपीएस एक्ट की धारा 42 पर अमल करने में विफलता का संज्ञान लिया था।
हाईकोर्ट ने जांच अधिकारी की गवाही का उल्लेख किया, जिसने अभियुक्तों में से एक के पास गांजा होने की जानकारी रहने और उस आरोपी के ठौर ठिकाने की जानकारी होने के बावजूद एनडीपीएस की धारा 42 के तहत जरूरी जानकारी लिखित में नहीं दी थी।
कोर्ट ने उसकी गवाही का उल्लेख करते हुए आगे कहा कि जांच अधिकारी ने संबंधित जानकारी स्टेशन डायरी में दर्ज की थी और अपने वरिष्ठ अधिकारी को टेलीफोन के जरिये इसकी सूचना दी थी। कोर्ट ने कहा कि सूचना दर्ज कर देना ही पर्याप्त नहीं होता, बल्कि उससे संबंधित अन्य धारणा और विचार भी लिखित तौर पर दर्ज करना होता है। तदनुसार, कोर्ट ने इसे एनडीपीएस एक्ट की धारा 42(2) का कड़ाई से अनुपालन नहीं माना।
न्यायमूर्ति के. आर. श्रीराम ने 'गंगाराम रमा गुंडकर बनाम महाराष्ट्र सरकार, 2002 क्रिमिनल एलजे 2578' मामले में दिये गये निर्णय पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया था कि यहां तक कि अपने वरिष्ठ अधिकारी को भेजा गया वायरलेस संदेश एनडीपीएस एक्ट की धारा 42(2) का अनुपालन नहीं करता है।
कोर्ट ने 'सैयद यूसुफ सईद नूर बनाम महाराष्ट्र सरकार, 2000 (70) ईसीसी 696' के मामले में दिये गये निर्णय पर भरोसा जताया जिसमें कहा गया था कि सुपीरियर अधिकारी को भले ही सूचना टेलीफोन पर दी गयी थी, लेकिन इस तथ्य को प्रदर्शित करने के लिए कुछ भी साक्ष्य के तौर पर नहीं दर्ज किया गया था कि सूचना प्राप्त होने के बाद इस बारे में वरिष्ठ अधिकारी को लिखित में जानकारी दी गयी थी।
इन अधिकारियों के आधार पर कोर्ट ने कहा, "चूंकि इस मामले में एनडीपीएस एक्ट की धारा 42 के अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है इसलिए इसमें ट्रायल समाप्त हो जाता है।"
इसके बाद कोर्ट ने आरोपियों को बरी करने के विशेष जज के आदेश को बरकरार रखा।
केस : महाराष्ट्र सरकार बनाम सुआबाई नरहरि बाबर [सीए नंबर : 1154 / 2020]
कोरम : न्यायमूर्ति के आर श्रीराम