'मध्याह्न भोजन से मांस और चिकन को हटाने का प्रथम दृष्टया कोई कारण नहीं': केरल हाईकोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासन के आदेश पर रोक लगाई

Update: 2021-06-23 05:04 GMT

केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को लक्षद्वीप प्रशासन के डेयरी फार्मों को बंद करने और स्कूली बच्चों के आहार से मांस हटाने के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि समझ में नहीं आ रहा है कि लक्षद्वीप प्रशासन ने मध्याह्न भोजन से चिकन और मांस को हटाकर स्कूली बच्चों के भोजन मेनू में बदलाव क्यों किया।

खंडपीठ लक्षद्वीप के एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार कर रही थी। याचिका में स्कूली बच्चों के मध्याह्न भोजन से चिकन और मांस हटाने और द्वीप में प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे डेयरी फार्मों को बंद करने के आदेश को चुनौती दी गई है।

मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाल्यो की खंडपीठ ने कहा कि,

" हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि बच्चों को दिए जाने वाले खाद्य पदार्थों के मेनू में बदलाव कैसे हो सकता है, जबकि स्वास्थ्य कारक के महत्वपूर्ण पहलू को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।"

अधिवक्ता अजमल अहमद आर द्वारा दायर याचिका में नए प्रशासक प्रफुल खोड़ा पटेल के तहत प्रशासन द्वारा पारित विवादास्पद आदेशों को रद्द करने की मांग करते हुए कहा गया है कि आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ और उल्लंघन करके पारित किए गए हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह आदेश गैर-कानूनी है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता पीयूस ए कोट्टम ने यह तर्क दिया कि लक्षद्वीप के निवासी अपनी आजीविका चलाने के लिए ज्यादातर सरकारी गतिविधियों में लगे हुए हैं। पशुपालन विभाग द्वारा चलाए जा रहे सभी डेयरी फार्मों को तुरंत बंद करने और इस संबंध में नीलामी आयोजित करने के प्रशासक के निर्देश से द्वीपों के लोगों के लिए गंभीर परिणाम होगा।

अधिवक्ता पीयूस ने इसके अलावा यह प्रस्तुत किया कि आदेश के अनुसार मेनू से मांस को हटाना स्कूलों में मध्याह्न भोजन के राष्ट्रीय कार्यक्रम और 2020-21 के वार्षिक बजट के विपरीत है, जिसमें लक्षद्वीप के स्कूल के बच्चों को मांस और चिकन उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

याचिका में कहा गया है कि लक्षद्वीप में वर्तमान प्रशासक के पद ग्रहण करने के बाद लिए गए निर्णयों ने लोगों के हितों को काफी हद तक प्रभावित किया है। याचिका में संबंधित अधिकारियों को सुधारों को लागू करने से परहेज करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है, जिसमें कहा गया है कि आदेश लक्षद्वीप की जातीय संस्कृति, विरासत और यहां के लोगों की भोजन की आदतों का उल्लंघन करते हैं।

मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति शाजी पी चाल्यो की खंडपीठ ने कहा कि मध्याह्न भोजन के लिए मेनू तय है और इसकी स्थापना के बाद से कई वर्षों तक इसका पालन किया गया है। राष्ट्रीय कार्यक्रम के अवलोकन ने यह भी संकेत दिया कि बच्चों को भोजन में मांस दिया जाना चाहिए।

कोर्ट यह समझने में विफल रहा कि स्वास्थ्य कारक के महत्वपूर्ण पहलू पर विचार करते हुए बच्चों के मेनू में इस तरह का अचानक परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है। बैठक के कार्यवृत्त में एक सहभागी चिकित्सक की राय का भी खुलासा हुआ कि मांसाहारी भोजन बच्चों के विकास और स्वस्थ संतुलित आहार के लिए आवश्यक है, जिस पर प्रशासक द्वारा विचार नहीं किया गया है।

बेंच ने देखा कि चूंकि मेनू से मांस और चिकन को हटाने के लिए कोई प्रथम दृष्टया कारण नहीं है और प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे लक्षद्वीप के स्कूलों के बच्चों को मांस और चिकन को शामिल करके पहले की तरह भोजन उपलब्ध कराएं।

पीठ ने कहा कि,

"हमें प्रथम दृष्टया मांस और चिकन को छोड़कर खाद्य पदार्थों में बदलाव का कोई कारण नहीं मिलता है। इसलिए हम प्रतिवादियों को निर्देश देने के लिए एक अंतरिम आदेश पारित करने के इच्छुक हैं, जिसमें पहले की तरह लक्षद्वीप के स्कूलों के बच्चों के भोजन में मांस और चिकन को शामिल किया जाए।"

डिवीजन बेंच ने डेयरी फार्मों को बंद करने के संबंध में कहा कि हालांकि प्रशासक का तर्क है कि प्रशासन को वित्तीय नुकसान से बचने के लिए यह कदम उठाया गया है, लेकिन ई-मेल ने उस आशय का कुछ भी संकेत नहीं दिया गया है। इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया कि अगले आदेश तक डेयरी फॉर्मों चालू रखने की अनुमति दी जाए।

बेंच ने इस प्रकार याचिका के निपटारे तक लक्षद्वीप प्रशासन के आदेश पर रोक लगा दी है।

याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि द्वीप में बच्चों के खाने की आदतों में बदलाव के इरादे से मध्याह्न भोजन से चिकन और अन्य मांस को हटा दिया गया है। याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि यह हितधारकों के साथ बिना किसी विचार-विमर्श या परामर्श के किया गया था। यह भी आरोप लगाया गया है कि यह मध्याह्न भोजन कार्यक्रम को ''अक्षय पात्र'' नामक बैंगलोर स्थित एक गैर सरकारी संगठन को सौंपने के निर्णय के एक भाग के रूप में किया गया है।

लक्षद्वीप प्रशासन ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया है और सरकारी वकील ने पीठ को बताया कि मध्याह्न भोजन की तैयारी से संबंधित काम उक्त एनजीओ को सौंपने का कोई प्रस्ताव नहीं है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि फिलहाल इस मुद्दे का समाधान करने की जरूरत नहीं है।

पीठ ने निम्नलिखित आदेश पारित किए;

(i) डेयरी फार्मों का संचालन अगले आदेश तक जारी रहना चाहिए।

(ii) लक्षद्वीप के स्कूल के बच्चों को पहले की तरह भोजन में मांस, चिकन, मछली और अंडे आदि दिए जाने चाहिए यानी पहले वाली व्यवस्था को जारी रखी जाए।

(iii) प्रतिवादियों को सहायक दस्तावेजों के साथ जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है।

मामले की अगली सुनवाई 30 जून को होगी।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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