'कानून की उचित प्रक्रिया के बिना आवास को ध्वस्त करने का निर्देश देने वाला कोई भी कानून से ऊपर नहीं: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आईडीपीएल घरों को तोड़ने पर रोक लगाई

Update: 2023-08-09 05:00 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि कानून का शासन कायम रहना चाहिए, हाल ही में राज्य सरकार को इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (आईडीपीएल) कॉलोनी के 899.53 एकड़ के अब बंद हो चुके ऋषिकेश प्लांट के अंदर घरों के विध्वंस को रोकने का निर्देश दिया।

जस्टिस पंकज पुरोहित की पीठ नेयह देखते हुए कि सरकार को सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जेदारों की बेदखली) अधिनियम, 1971 के तहत बेदखली की कार्यवाही शुरू करनी चाहिए, राज्य को याद दिलाया कि "कानून की उचित प्रक्रिया के बिना आवास को खाली करने और ध्वस्त करने का निर्देश देने के लिए कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।"

कोर्ट ने मकानों को गिराने के सरकारी आदेश पर रोक लगाते हुए उसे 4 सप्ताह के भीतर मामले में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई 19 सितंबर को तय की।

न्यायालय ऋषिकेश में आईडीपीएल कॉलोनी के 4 निवासियों द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें राज्य सरकार के 19 जुलाई के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं द्वारा आईडीपीएल के पूर्व कर्मचारी होने के आधार पर उनके आवास को खाली करने/ध्वस्त करने का निर्देश दिया गया।

याचिकाकर्ताओं का मामला यह है कि वे आईडीपीएल के कर्मचारी होने के बावजूद अलग-अलग तारीखों पर आईडीपीएल/प्रतिवादी नंबर 7 द्वारा उन्हें प्रदान किए गए आवास पर कब्जा कर रहे हैं। हालांकि, चूंकि आईडीपीएल अब निष्क्रिय हो गया है, इसलिए केंद्र सरकार ने इसे बंद कर दिया।

न्यायालय को आगे बताया गया कि केंद्र सरकार द्वारा लीज की पूरी भूमि (आईडीपीएल के ऋषिकेश प्लांट की 899.53 एकड़ जमीन, जिसमें घर मौजूद हैं)को राज्य सरकार को वापस देने का निर्णय लिया गया।

आईडीपीएल के साथ उक्त पट्टा 27 नवंबर, 2021 को समाप्त हो गया। इसके बाद राज्य सरकार ने आवास के विध्वंस/बेदखली के लिए 19 जुलाई, 2023 को एक आदेश जारी किया।

याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा यह तर्क दिया गया कि भले ही आईडीपीएल का पट्टा उत्तराखंड राज्य के पास है, फिर भी आईडीपीएल द्वारा उन्हें आवंटित आवासों पर याचिकाकर्ताओं का कब्जा ही माना जा सकता है। यह अनधिकृत कब्जा है, इसलिए घरों को ध्वस्त करने के बजाय सरकार को सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जेदारों की बेदखली) अधिनियम, 1971 के प्रावधानों को लागू करना चाहिए, जिसके तहत अनधिकृत कब्जेदारों और उनके निष्कासन से निपटने के लिए विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गई है।

इन दलीलों की पृष्ठभूमि में कि जब अदालत ने राज्य की ओर से पेश वकील से पूछा कि क्या विवादित आदेश पारित करने से पहले राज्य सरकार द्वारा याचिकाकर्ताओं को कोई नोटिस जारी किया गया तो डीएजी ने इस बारे में कुछ भी कहने में असमर्थता व्यक्त की।

इसे देखते हुए न्यायालय ने पाया कि उत्तराखंड राज्य के साथ लीज डीड की समाप्ति के बाद आईडीपीएल द्वारा आवंटन रद्द करने के बाद प्रश्नगत आवास पर याचिकाकर्ताओं का कब्जा अवैध/अनधिकृत हो सकता है। हालांकि, नियम कानून लागू होना चाहिए और उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना आवास को खाली करने और ध्वस्त करने का निर्देश देने वाला कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि एक बार जब याचिकाकर्ताओं ने पट्टे की समाप्ति के बाद आईडीपीएल को खाली कब्जे नहीं सौंपे तो वे अब आईडीपीएल के कब्जेदार नहीं हैं और राज्य सरकार को 1971 अधिनियम के तहत बेदखली की कार्यवाही शुरू करनी चाहिए।

कोर्ट ने सरकार के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगाते हुए आगे कहा,

"चूंकि याचिकाकर्ताओं ने आईडीपीएल द्वारा आवंटित आवास के बाद आवास पर कब्जा कर लिया है, इसलिए उन्हें रैंक अतिक्रमी नहीं कहा जा सकता।"

याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता, एडवोकेट रफत मुनीर अली और इरुम ज़ेबा उपस्थित हुए। डीएजी टीएस बिष्ट उत्तराखंड राज्य/प्रतिवादी क्रमांक 1 से 6 की ओर से उपस्थित हुए। एडवोकेट अतुल भट्ट प्रतिवादी संख्या 8/भारत संघ की ओर से उपस्थित हुए।

केस टाइटल- गुलशन भनोट और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य

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