कर्मचारी को रिटायरमेंट की तिथि से पहले रिटायर नहीं किया जा सकता, जब तक कि मूल सेवा अभिलेखों में उसकी जन्मतिथि में परिवर्तन न किया जाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-07-27 13:28 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि किसी कर्मचारी को उसकी रिटायरमेंट की तिथि से पहले रिटायर नहीं किया जा सकता, जब तक कि मूल सेवा अभिलेखों में ऐसे कर्मचारी की जन्मतिथि में परिवर्तन न किया जाए, जिससे अधिकारी कर्मचारी को सेवानिवृत्त कर सकें।

जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने कहा,

“सेवा पुस्तिका में मूल रूप से दर्ज जन्मतिथि में परिवर्तन किए बिना किसी कर्मचारी को रिटायर नहीं किया जा सकता। सेवा न्यायशास्त्र के पीछे मूल दर्शन यह है कि नियोक्ता और कर्मचारी के बीच रोजगार का अनुबंध होता है। नियोक्ता द्वारा रखी गई सेवा पुस्तिका रोजगार के अनुबंध का एक हिस्सा है। इसमें कोई भी परिवर्तन पहले होना चाहिए, क्योंकि यह रोजगार की शर्तों को बदल देगा।”

न्यायालय ने यह भी माना कि जीवन बीमा पॉलिसी सेवा कानून में आयु निर्धारित करने के उद्देश्य से एक दस्तावेज नहीं है।

हाईकोर्ट का निर्णय

न्यायालय ने पाया कि हलफनामों में कहीं भी यह नहीं कहा गया कि उक्त ट्रांसफर सर्टिफिकेट या इस तथ्य की पुष्टि के लिए कोई जांच की गई कि याचिकाकर्ता हाईस्कूल/माध्यमिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश बोर्ड से दो बार अनुत्तीर्ण हुआ था।

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को उसकी जन्मतिथि 01.09.1954 मानकर 30.08.2014 को रिटायर कर दिया गया, जबकि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट में जन्मतिथि 20.07.1950 दर्ज की गई। यह माना गया कि तिथियों में विसंगतियों के कारण जांच रिपोर्ट याचिकाकर्ता की समय से पहले सेवानिवृत्ति का आधार नहीं हो सकती थी।

न्यायालय ने माना कि कहीं भी यह नहीं कहा गया कि मूल सेवा अभिलेखों में याचिकाकर्ता की जन्मतिथि बदली गई और ऐसे परिवर्तन के बिना याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति की तिथि प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा नहीं बदली जा सकती थी।

इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि प्रस्तुत ट्रांसफर सर्टिफिकेट किसी और का था और उस पर विद्यालय के प्रधानाचार्य के हस्ताक्षर या मुहर नहीं थी। यह पाया गया कि ऐसा प्रतीत होता है कि "यह दस्तावेज या तो अध्यक्ष के निर्णय का बचाव करने के लिए मामले के उद्देश्य से तैयार किया गया या फिर तथ्यों के आधार पर न्यायालय को गुमराह करने के लिए किसी तरह से प्राप्त किया गया।"

यह मानते हुए कि सेवा कानून में आयु निर्धारण के लिए जीवन बीमा पॉलिसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, न्यायालय ने पाया कि कथित आयु विसंगतियों के संबंध में अधिकारियों द्वारा कोई जांच नहीं की गई।

न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सेवा में भर्ती (जन्म तिथि निर्धारण) नियम, 1974 के नियम 2 और 3 पर भरोसा किया, जो यह प्रावधान करता है कि किसी सरकारी कर्मचारी की जन्म तिथि कर्मचारी के हाई स्कूल सर्टिफिकेट के अनुसार दर्ज की जानी चाहिए, और जहां कर्मचारी ने कोई हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है, वहां रोजगार के समय दर्ज की गई जन्म तिथि को सही जन्म तिथि माना जाता है, जिसे बाद में बदला नहीं जा सकता।

न्यायालय ने कहा,

“न्यायालय ने बार-बार माना है कि अधिकारियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई उचित और तर्कसंगत होनी चाहिए, खासकर सेवा मामलों में जहां कर्मचारियों का हित दांव पर लगा हो। इसलिए प्रतिवादी अधिकारियों को मनमाने तरीके से काम नहीं करना चाहिए। वर्तमान मामले में अध्यक्ष ने जिस तरीके से आदेश पारित किया, उसमें याचिकाकर्ता को प्रासंगिक पॉलिसी बांड पेपर के अलावा कोई कारण बताए बिना और वह भी बिना किसी जांच के रिटायर करने का आरोप लगाया गया। यह पूरी तरह से अनुचित है।''

यह देखते हुए कि जिला मजिस्ट्रेट ने जांच को गुपचुप तरीके से किया, अदालत ने आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को 31.12.2023 तक सेवा में रहने का आदेश दिया। तदनुसार, यह निर्देश दिया गया कि उसे उसकी रिटायरमेंट की तारीख तक वेतन का भुगतान किया जाए।

केस टाइटल: सुरेश यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य [रिट - ए नंबर- 61181/2014]

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