''यूएपीए के तहत कोई अपराध नहीं'' : दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगा मामले के अभियुक्त को ज़मानत दी
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैजान खान को जमानत दे दी, जो दिल्ली दंगा मामले में एक आरोपी है और उसके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत केस बनाया गया था।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई की और पाया कि यूएपीए की धारा 43डी (5) के तहत दी गई शर्त/एम्बार्गो वर्तमान मामले में रिकॉर्ड पर आई सामग्री के अनुसार लागू नहीं होती हैं। वहीं जांच एजेंसी की स्टे्टस रिपोर्ट में भी गवाहों के मामूली बयानों को छोड़कर, यूएपीए के तहत बनने वाले अपराधों के गठन का खुलासा नहीं किया गया है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 120 बी के तहत दंडनीय अपराध के मामले में दर्ज एक प्राथमिकी में यह जमानत मांगी गई थी। इस जमानत याचिका का विरोध करते हुए राज्य की तरफ से 6 मार्च, 2020 को एक स्थिति रिपोर्ट दायर की गई थी।
उपरोक्त स्टेटस रिपोर्ट में, यह दावा किया गया था कि क्राइम ब्रांच को यह जानकारी मिली थी कि दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए सांप्रदायिक दंगे पूर्व नियोजित थे और जेएनयू के एक छात्र उमर खालिद और उसके सहयोगियों द्वारा ही इसके लिए योजना बनाई गई थी। यह सभी दो अलग समूहों के साथ जुड़े हुए हैं।''
23-25 फरवरी, 2020 के बीच उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र में सीएए के विरोध प्रदर्शनों से हिंसा शुरू हुई थी,जिससे जानमाल की हानि और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा था।
जांच के दौरान सामने आए तथ्यों के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302/307/124ए/153ए/ 186/353/395/427/435/436/452/454/109/114 रिड विद 120बी, प्रीवेंशन ऑफ डेमेज ऑफ पब्लिक प्राॅपटी एक्ट की धारा 3 व 4 और आम्स एक्ट की धारा 25/27 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
19 अप्रैल 2020 को इस मामले में यूएपीए की धारा 13/16/17/18 को भी जोड़ दिया गया था। 4 जून 2020 को आईपीसी की धारा 341 जोड़ी गई और 26 जुलाई 2020 को धारा 201 जोड़ी गई व इसके बाद 29 जुलाई 2020 को आईपीसी की धारा 420/468/471 को भी जोड़ा गया।
स्टेटस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि आरोपी फैजान खान और सह-आरोपी आसिफ इकबाल तन्हा ''एक दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे थे'' और ''दूसरे सह-आरोपियों के साथ मिलकर एक पूर्व-नियोजित आपराधिक साजिश रची व जानबूझकर गैरकानूनी व टेररिस्ट एक्ट के तहत किए जाने वाले अपराध के लिए सुविधा प्रदान की।''
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि आरोपी व्यक्तियों के मोबाइल फोन सीईआरटी-आईएन के विश्लेषण के लिए भेजे गए थे और यह पता चला है कि आपसी सहयोग व निर्देश देने के लिए अलग-अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए थे ताकि दंगों का नेतृत्व करने के लिए सीएए के विरोध स्थलों पर लोगों भेजा जा सकें।
एकत्र किए गए साक्ष्यों व गवाहों के बयानों का उपयोग वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ उपरोक्त धाराओं को जोड़ने के लिए किया गया था।
एएसजी एसवी राजू ने तर्क दिया कि एकत्र किए गए सबूतों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने सह-अभियुक्तों के साथ रची गई आपराधिक साजिश के मद्देनजर जानबूझकर सिम कार्ड जारी किया था जिसका उपयोग मुसलमानों को जुटाने के लिए किया गया था, जिसके कारण दिल्ली में विभिन्न विरोध स्थलों पर चक्का जाम और दंगे हुए थे। इसके अलावा, यह भी कहा गया था कि याचिकाकर्ता शुरू से ही दंगों की साजिश से अच्छी तरह वाकिफ था।
एएसजी राजू ने आगे कहा कि 16 सितम्बर 2020 को 15 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था, हालांकि, उनमें से किसी को भी जमानत पर रिहा नहीं किया गया है, सिर्फ मानवता के आधार पर सफूरा जरगर को जमानत दी गई है। याचिकाकर्ता सहित छह आरोपियों के खिलाफ जांच लंबित थी और 6 में से तीन को जमानत पर रिहा कर दिया गया है।
राजू ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज किए गए बयानों से यह भी पता चलता है कि दिल्ली में सामान्य गतिविधि को बाधित करने के लिए एक गहरी साजिश रची गई थी और इसको व्यवस्थित रूप से कुछ लोगों द्वारा अंजाम दिया गया था,जो विशेष रूप से ''अहिंसक दिखने वाले विरोध प्रदर्शनों में हिसंक प्रदर्शन को छुपाने में'' माहिर होते हैं।
राजू ने कहा, ''जांच एजेंसी द्वारा एकत्र किए गए सबूतों के मद्देनजर व यूएपीए की धारा 14-ई के तहत प्रदान किए गए अपराध के अनुमान को देखते हुए याचिकाकर्ता को जमानत देने के लिए कोई आधार नहीं बनता है।''
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद पेश हुए और कहा कि जांच एजेंसी ने ''गलत तरीके से'' यूएपीए के तहत मामला बना दिया है। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ता किसी आतंकवादी कार्य में लिप्त था और न ही कोई ऐसी सामग्री उपलब्ध है,जो यह दर्शाती हो कि याचिकाकर्ता किसी भी आतंकवादी गतिविधि के लिए पैसा दे रहा था। इसलिए, याचिकाकर्ता को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए यूएपीए लगाना एकदम गलत था।
यह भी प्रस्तुत किया गया था कि यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं थी कि याचिकाकर्ता की ओर से कोई अपेक्षित इरादा नहीं था और खुद जांच एजेंसी का मामला यह था कि याचिकाकर्ता ने पैसे के बदले सिम कार्ड प्रदान किया गया था,किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं।
''इसलिए, यूएपीए, 1967 का आह्वान अव्यवस्थित है और यूएपीए, 1967 के तहत प्रदान की जाने वाली बुनियादी सामग्री को संतुष्ट करने के लिए कोई तथ्य नहीं है।''
न्यायमूर्ति कैत ने दलीलें सुनने और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री को देखने के बाद कहा कि जांच एजेंसी का यह आरोप नहीं था कि याचिकाकर्ता उन व्हाट्सएप समूहों में शामिल था, जिन्हें सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए बनाया गया था और याचिकाकर्ता के खिलाफ यह भी आरोप नहीं लगाया गया था कि उसने आतंकी कामों के लिए फंडिंग की है या वह किसी अन्य सहायक गतिविधि में संलग्न था।
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि जांच एजेंसी द्वारा आरोपित घटनाओं के बीच कोई निकटस्थ सांठगांठ नहीं थी और यह भी आरोप नहीं लगाया गया था कि याचिकाकर्ता सीएए, 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के मामले में एक पक्षकार था या उसने ऐसा करवाया था।
यह भी देखा गया कि जांच एजेंसी का मामला यह था कि पैसे के बदले सिम कार्ड प्रदान किया गया था। 1994 के करतार सिंह मामले का उल्लेख करते हुए, न्यायाधीश ने कहा कि यूएपीए को लागू करने के लिए, एजेंसी का यह कर्तव्य था कि वह यह प्रदर्शित करे कि याचिकाकर्ता को इस बात का ''वास्तविक ज्ञान''था कि उक्त सिम कार्ड का उपयोग विरोध प्रदर्शन के आयोजन के लिए किया जाएगा।
''जांच एजेंसी के लिए यह प्रदर्शित करना अनिवार्य था कि याचिकाकर्ता को उक्त सिम कार्ड के उपयोग के बारे में 'पूरा ज्ञान' था। यह आरोप नहीं लगाया गया है कि याचिकाकर्ता विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए किसी भी तरह की साजिश कर रहा था।''
न्यायालय ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता स्वेच्छा से पूछताछ के लिए एजेंसी के समक्ष पेश हुए था और एफआईआर के पंजीकरण से लेकर उसकी गिरफ्तारी की तारीख के बीच की अवधि में कहीं फरार नहीं हुआ था। जिससे पता चलता कि उसने जांच में पूरी तरह से सहयोग किया है और जब भी जांच एजेंसी ने उसे बुलाया,वह जांच के लिए पेश हुआ था।
कोर्ट ने कहा कि यूएपीए की धारा 43डी (5) के तहत जमानत के लिए दी गई एम्बार्गो वर्तमान मामले में लागू नहीं होती है क्योंकि दिल्ली पुलिस की तरफ से दायर स्टे्टस रिपोर्ट में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया है,जिससे यूएपीए के तहत अपराध का गठन होता हो,सिवाय गवाहों के मामूली बयानों के अलावा।
''यहां यह उल्लेख करना उचित है कि रिकाॅर्ड पर आई सामग्री व पुलिस की स्टे्टस रिपोर्ट को देखते हुए यूएपीए 1967 की धारा 43डी (5) के तहत दी गई शर्त/एम्बार्गो वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता के संबंध लागू नहीं होगी क्योंकि खुद स्टे्टस रिपोर्ट में यूएपीए 1967 के तहत अपराध के गठन का खुलासा नहीं किया गया है,सिवाय गवाहों के मामूली बयानों के अलावा।''
यह भी देखा गया कि सीसीटीवी फुटेज, वीडियो या चैट जैसे कोई सबूत नहीं थे, सिवाय इस आरोप के कि उसने दिसंबर 2019 में एक फर्जी आईडी पर सिम कार्ड उपलब्ध कराया था।
इसप्रकार, मामले की मैरिट पर टिप्पणी किए बिना, हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता जमानत के योग्य है।
उपरोक्त के आलोक में, दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि खान को 25 हजार रुपये के निजी मुचलके व एक जमानती लाने की शर्त पर जमानत दे दी जाए।
खान को निर्देश दिया गया है कि वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी भी गवाह को प्रभावित करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश नहीं करेगा। वहीं ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया है कि वह हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों से प्रभावित न हो।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद साथ में अधिवक्ता अजरा रहमान, आदिल सिंह बोपाराय और रागिनी नायक उपस्थित हुए।
प्रतिवादी की तरफ से एएसजी एसवी राजू के साथ एसपीपी अमित महाजन, रजत नायर और एडवोकेट शांतनु शर्मा, ए वेंकटेश, गुंटूर प्रमोद कुमार, धु्रव पांडे, साइरिका राजू और शौर्य आर राय पेश हुए।
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