''जनता के लिए कोई सूचना उपलब्ध नहीं'': पटना हाईकोर्ट ने राज्य को हर रोज सार्वजनिक रूप से COVID संबंधी संक्षिप्त जानकारी जनता को देने का निर्देश दिया

Update: 2021-04-17 15:30 GMT

यह देखते हुए कि बड़े पैमाने पर लोगों को COVID से संबंधित सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में अपेक्षित जानकारी नहीं मिल रही है, इस सप्ताह पटना हाईकोर्ट ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया था कि वह मीडिया के माध्यम से इस तरह की जानकारी को सार्वजनिक करें और यह सुनिश्चित करें कि,''कम से कम हर दिन एक निश्चित समय पर सरकार की तरफ से एक प्रेस वार्ता की जाए,जिसमें तथ्यों का खुलासा करते हुए कोरोना के मामलों की संख्या, राज्य में विभिन्न स्थानों पर मरीजों को भर्ती करने व उनका इलाज करने के लिए उपलब्ध बुनियादी ढ़ांचे और जनहित में प्रसारित की जाने वाली अन्य आवश्यक जानकारी आम जनता को दी जाए।''

न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह और न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह की खंडपीठ बिहार राज्य में कोरोना के मामलों की खतरनाक स्थिति को देखते हुए दायर की गई याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी। इन याचिकाओं में कोरोना महामारी की दूसरी लहर से उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य में सुविधाओं और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की कमी के मुद्दे को उठाया गया है।

यह देखते हुए कि अखबार की रिपोर्ट राज्य की पूरी स्थिति की ''उदास तस्वीर'' को उजागर करती है, अदालत ने कहा कि ऐसी रिपोर्टें ''नागरिकों के मौलिक अधिकारों को छूने वाले जनहित के गंभीर मुद्दों को उठा रही हैं।''

पीठ ने कहा कि,

''हम इस तथ्य के प्रति सचेत हैं कि राज्य में COVID मामलों की स्पाइक से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों से निपटना और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना मुख्य रूप से राज्य का कार्यकारी कार्य है और संवैधानिक न्यायालय ऐसे मामलों में आमतौर पर हस्तक्षेप नहीं करते हैं। फिर भी, संवैधानिक न्यायालय अपनी न्यायिक समीक्षा की शक्तियों को लागू करने के लिए बाध्य हैं और भारत के संविधान के आर्टिकल 21 और 14 के तहत मिले जीवन व नागरिकों की समानता के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की अनदेखी को बर्दाश्त नहीं कर सकती है।''

सुनवाई के दौरान, कोर्ट के समक्ष राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने कुछ आंकड़े पेश किए थे। जिनको पेश करते हुए कहा गया था कि जिला मुख्यालय तक विभिन्न स्टेशनों पर कोरोना के रोगियों की देखभाल के लिए बिहार राज्य के विभिन्न हिस्सों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हैं।

यह देखते हुए कि उक्त आंकड़ों ने ''पूरी तरह से अलग तस्वीर'' पेश की है, न्यायालय ने कहा किः

''यदि प्रस्तुत आंकड़ों को सही मान लिया जाए तो पटना को छोड़कर बिहार राज्य में उपलब्ध बेड की संख्या उन रोगियों की संख्या से अधिक है जिन्हें COVID केयर सेंटर (सीसीसी), डेडिकेटिड COVID स्वास्थ्य केंद्रों (डीसीएचएस) और डेडिकेटिड COVID अस्पताल(डीसीएच) में भर्ती करने की आवश्यकता है। प्रथम दृष्टया हम उक्त बयान से संतुष्ट नहीं हैं।''

इसे देखते हुए, कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया था कि वह मीडिया के माध्यम से उपरोक्त जानकारी को सार्वजनिक करें और यह सुनिश्चित करें कि सरकार की तरफ से कम से कम एक सार्वजनिक ब्रीफिंग प्रतिदिन की जाए। कोर्ट ने यह निर्देश देते हुए राज्य के विभिन्न अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के मुद्दे पर भी ध्यान दिया,जिसके परिणामस्वरूप लोग ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने के लिए परेशान हो रहे हैं।

अदालत के अनुसार, उक्त स्थिति ''ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी'' को बढ़ावा देगी।

मामले को आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था अर्थात् 17 अप्रैल को। वहीं प्रतिवादियों को निम्नलिखित करने के लिए निर्देशित किया गया थाः

- स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के लिए उठाए गए कदमों और राज्य सरकार द्वारा कोरोना की दूसरी लहर से निपटने व इस तरह की सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में आम लोगों को जागरूक करने (ताकि लोगों में मौजूद अनावश्यक घबराहट की भावना को कम किया जा सकें)के लिए तैयार की गई व्यापक कार्ययोजना के बारे में अदालत को सूचित करना।

- कोर्ट को बताया जाए कि राज्य सरकार ऐसे व्यक्तियों के लिए क्या प्रावधान कर रही है जो पाॅजिटिव पाए जाते हैं परंतु उनको कोई एसे गंभीर लक्षण नहीं हैं कि उनको अस्पताल में भर्ती करना पड़े।

- राज्य सरकार यह सुनिश्चित करे कि सभी डेडिकेटिड COVID स्वास्थ्य केंद्रों में जल्द से जल्द पोर्टेबल एक्स-रे मशीन उपलब्ध कराई जाए।

- राज्य सरकार को बिहार राज्य के प्रत्येक जिले के सदर अस्पताल/ डेडिकेटिड COVID स्वास्थ्य केंद्र के लिए सीटी स्कैन मशीन प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू करने पर भी विचार करना चाहिए।

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