यह देश बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा; समान नागरिक संहिता जल्द ही हकीकत बनेगी: VHP के इवेंट मे जस्टिस शेखर यादव
रविवार (8 दिसंबर) को प्रयागराज में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के विधिक प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के वर्तमान जज ने समान नागरिक संहिता की संवैधानिक आवश्यकता पर व्याख्यान दिया, जहां उन्होंने कहा कि उन्हें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश भारत में बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा।
उन्होंने कहा,
“मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि यह हिंदुस्तान है, यह देश हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार चलेगा। यह कानून है। आप यह नहीं कह सकते कि आप हाईकोर्ट के जज होने के नाते ऐसा कह रहे हैं। वास्तव में कानून बहुसंख्यकों के अनुसार काम करता है। इसे परिवार या समाज के संदर्भ में देखें। केवल वही स्वीकार किया जाएगा, जिससे बहुसंख्यकों का कल्याण और खुशी हो।”
अपने संबोधन में उन्होंने सवाल उठाया कि हिंदू धर्म में अस्पृश्यता, सती और जौहर जैसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया, फिर भी मुस्लिम समुदाय में कई पत्नियां रखने की प्रथा को अनुमति दी जा रही है।
जस्टिस यादव ने इस प्रथा को अस्वीकार्य बताया। उन्होंने आगे कहा कि शास्त्रों और वेदों जैसे हिंदू धर्मग्रंथों में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, लेकिन एक समुदाय के सदस्य अभी भी कई पत्नियां रखने, हलाला करने या तीन तलाक का अभ्यास करने का अधिकार मांगते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि इस देश में एक संविधान और दंडात्मक कानूनों का एक सेट है, इसलिए यह तर्कसंगत है कि नागरिक कानूनों को भी एकीकृत किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि 'शपथ लेकर' कि देश में जल्द ही समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी।
जस्टिस शेखर यादव ने कहा,
"आप उस महिला का अपमान नहीं कर सकते जिसे हमारे शास्त्रों और वेदों में देवी का दर्जा दिया गया। आप चार पत्नियां रखने, हलाला करने या तीन तलाक़ का अधिकार नहीं ले सकते। आप कहते हैं कि हमें '#ट्रिपलतलाक' कहने का अधिकार है और महिलाओं को भरण-पोषण नहीं देना है। यह अधिकार काम नहीं करेगा। #UCC ऐसा कुछ नहीं है, जिसकी वकालत VHP, RSS या हिंदू धर्म करता है। देश की सुप्रीम कोर्ट भी इस बारे में बात करती है। यह अदालत का ऐतिहासिक पुस्तकालय हॉल है, जहां कई महान हस्तियां आई हैं। मैं यहां बोल रहा हूं, उनके बीच... सिर्फ कह नहीं रहा हूं। मैं शपथ ले रहा हूं कि यह देश एक कानून ज़रूर लाएगा, और बहुत जल्द लाएगा।"
अपने संबोधन की शुरुआत में उन्होंने कहा कि उनका परिचय तब तक अधूरा है, जब तक कि यह इस तथ्य से न जुड़ जाए कि वे उस देश के निवासी हैं, जहां गंगा बहती है। उन्होंने कहा कि गाय, गंगा और गीता भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं।
जस्टिस शेखर यादव ने कहा,
"गाय, गीता और गंगा जहां की संस्कृति, हरबाला देवी की प्रतिमा, और बच्चा बच्चा राम है, ऐसा मेरा देश है।"
उन्होंने यह भी कहा कि गंगा में डुबकी लगाने या चंदन लगाने वाला व्यक्ति ही हिंदू होने की एकमात्र परिभाषा नहीं है, जो कोई भी इस भूमि को अपनी मां मानता है, जो संकट के समय देश के लिए अपनी जान देने को तैयार है, चाहे वह किसी भी धार्मिक प्रथा या विश्वास का पालन करता हो, चाहे वह कुरान या बाइबिल का पालन करता हो, वह हिंदू है।
उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि हमारे हिंदू धर्म में बाल विवाह, सती प्रथा और बालिकाओं की हत्या जैसी कई सामाजिक बुराइयां भी थीं, लेकिन राम मोहन राय जैसे सुधारकों ने इन प्रथाओं को समाप्त करने के लिए संघर्ष किया।
हालांकि, उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय में व्याप्त सामाजिक बुराइयों जैसे हलाला, तीन तलाक और गोद लेने से जुड़े मुद्दों पर उनके पास इनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं है या यूं कहें कि इन मुद्दों को लेकर मुस्लिम समुदाय की ओर से कोई पहल नहीं हुई। अपने संबोधन में उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेकर विवाह करें, या गंगा में डुबकी लगाएं या चंदन लगाएं। हालांकि, उन्होंने कहा कि उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे इस देश की संस्कृति, महापुरुषों और इस भूमि के भगवान का अपमान न करें।