रजिस्टर्ड गोद लेने के दस्तावेज़ को तब तक असली माना जाएगा, जब तक स्वतंत्र कार्यवाही में इसे गलत साबित न कर दिया जाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2025-12-26 11:33 GMT

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक रजिस्टर्ड गोद लेने के दस्तावेज़ को तब तक कानून के मुताबिक माना जाएगा, जब तक स्वतंत्र कार्यवाही में इसे खास तौर पर गलत साबित न कर दिया जाए।

हिंदू गोद लेने और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 16 में यह प्रावधान है कि जब किसी अदालत में रजिस्टर्ड गोद लेने का दस्तावेज़ पेश किया जाता है, जिसमें बच्चे को देने वाले पक्ष और बच्चे को गोद लेने वाले पक्ष के हस्ताक्षर होते हैं तो ऐसे दस्तावेज़ को तब तक कानून के मुताबिक माना जाएगा, जब तक इसके विपरीत साबित न हो जाए।

जस्टिस इरशाद अली ने कहा

“धारा 16 के अनुसार, जब भी किसी कानून के तहत रजिस्टर्ड कोई दस्तावेज़ किसी अदालत के सामने पेश किया जाता है, जिसमें गोद लेने का रिकॉर्ड होता है। उस पर बताए गए व्यक्तियों के हस्ताक्षर होते हैं तो अदालत यह मानेगी कि उक्त गोद लेना अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार किया गया, जब तक कि इस धारणा को गलत साबित न कर दिया जाए। धारा 16 के अनुसार, किसी भी पक्ष के लिए स्वतंत्र कार्यवाही शुरू करके गोद लेने के दस्तावेज़ को गलत साबित करने का प्रयास करना खुला है।”

गयादीन के तीन बेटे थे, जिनका नाम समय दीन, नारायण, राम आसरे थे। राम आसरे निःसंतान हैं, इसलिए उन्होंने याचिकाकर्ता को उसके असली माता-पिता से गोद लिया। गोद लेने का दस्तावेज़ 08.02.1982 को रजिस्टर्ड किया गया। राम आसरे की मृत्यु के बाद याचिकाकर्ता ने अपने असली पिता के माध्यम से राजस्व रिकॉर्ड में म्यूटेशन के लिए आवेदन किया। प्रतिवादियों ने इस पर आपत्ति जताई।

पक्षकारों और गवाहों की जांच की गई और यह माना गया कि वसीयत को गलत साबित नहीं किया जा सका और म्यूटेशन का आदेश पारित किया गया। सब डिविजनल ऑफिसर, कैसरगंज ने प्रतिवादियों की अपीलें स्वीकार कर लीं और म्यूटेशन आदेश रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता द्वारा कमिश्नर, फैजाबाद डिवीजन, फैजाबाद के समक्ष दायर रिवीजन याचिकाएं खारिज कर दी गईं, कथित तौर पर हिंदू गोद लेने और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 16 और गोद लेने के दस्तावेज़ की वैधता पर बिना सोचे-समझे।

याचिकाकर्ता ने इस आधार पर हाईकोर्ट का रुख किया कि गोद लेने के दस्तावेज़ को कभी भी अलग कार्यवाही में चुनौती नहीं दी गई और गोद लेने के दस्तावेज़ को कभी भी गलत साबित नहीं किया गया।

कोर्ट ने पाया कि चूंकि कमिश्नर ने अधिनियम की धारा 16 के तहत रजिस्टर्ड गोद लेने के दस्तावेज़ों से जुड़ी धारणा को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया, इसलिए आदेशों को रद्द किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि कमिश्नर ने यह मानने के लिए कोई कारण दर्ज नहीं किया कि गोद लेने का दस्तावेज़ संदिग्ध था।

कोर्ट ने आगे कहा,

“अगर विधिवत रजिस्टर्ड गोद लेने के दस्तावेज़ के खिलाफ कोई शिकायत थी तो प्रतिवादियों को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए, जिसमें रजिस्टर्ड गोद लेने के दस्तावेज़ को चुनौती दी जाती और गोद लेने के दस्तावेज़ को चुनौती न देने के कारण अपीलीय अदालत और पुनर्विचार अदालत द्वारा दर्ज किया गया फैसला, जो संदेह दिखाता है, वह गलत प्रकृति का है। पारित आदेश कानून की नज़र में मान्य नहीं हैं।”

अदालत ने पाया कि गोद लेने का दस्तावेज़ गवाहों द्वारा विधिवत साबित किया गया और उनमें से किसी ने भी क्रॉस-एग्जामिनेशन में इसकी वैधता को चुनौती नहीं दी। चूंकि इसे संदिग्ध घोषित करने के लिए कोई कारण दर्ज नहीं किया गया और कानून में अनुमान गोद लेने के दस्तावेज़ के पक्ष में था, इसलिए अदालत ने कमिश्नर के साथ-साथ अपीलीय अदालत का आदेश भी रद्द कर दिया और रिट याचिका स्वीकार कर लिया।

Case Title: Ram Kumar v. Narain And Others [WRIT - C No. - 1001378 of 2000]

Tags:    

Similar News