एनआई एक्ट- 'लीगल नोटिस जारी करने के लिए निर्धारित 30 दिनों की सीमा अवधि की गणना करते समय उस दिन को नहीं जोड़ा जाना चाहिए, जिस दिन बैंक से चेक की वापसी के बारे में सूचना प्राप्त हुई': दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi high Court) ने कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138(बी) के तहत कानूनी नोटिस जारी करने के लिए निर्धारित 30 दिनों की सीमा अवधि की गणना करते समय उस दिन को नहीं जोड़ा जाना चाहिए, जिस दिन शिकायतकर्ता को बैंक से सूचना प्राप्त होती है कि विचाराधीन चेक बिना भुगतान के वापस कर दिया गया है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिकाओं के एक समूह से निपट रहे थे। इन याचिकाओं आपराधिक शिकायतों को रद्द करने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता नंबर 1 आरोपी कंपनी है, याचिकाकर्ता नंबर 2 इसके प्रबंध निदेशक हैं। याचिकाएं नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट,1881 की धारा 138 के साथ 141 और 142 के तहत विभिन्न शिकायतों की गईं हैं।
याचिकाकर्ताओं का यह मामला है कि आपराधिक शिकायतें सुनवाई योग्य नहीं हैं, क्योंकि संबंधित कानूनी मांग नोटिस एन.आई. एक्ट के तहत निर्धारित 30 दिनों की वैधानिक अवधि की समाप्ति के बाद जारी किए गए थे।
यह तर्क दिया गया कि नोटिस अवैध होने के कारण एन.आई. अधिनियम की धारा 138 (बी) के आवश्यक तत्व उलब्ध नहीं हैं और इस प्रकार, आक्षेपित आपराधिक शिकायतों को रद्द कर दिया जाना चाहिए।
कोर्ट के समक्ष मुद्दा यह था कि शिकायतकर्ता कंपनी को एन.आई. एक्ट की धारा 138 (बी) के तहत निर्धारित तीस दिनों की सीमा अवधि के भीतर नोटिस भेजे गए थे या नहीं?
कोर्ट ने कहा कि एन.आई. एक्ट, एक दंडात्मक क़ानून होने के नाते सख्त निर्माण का वारंट करता है और परिणामस्वरूप, अधिनियम के तहत किसी अभियुक्त पर आपराधिक दायित्व का आरोप लगाने से पहले, कथित रूप से किए गए अपराध के आवश्यक तत्वों को संतुष्ट करना आवश्यक है।
बेंच ने कहा,
"कानूनी स्थिति, जैसा कि यहां उल्लिखित न्यायिक आदेश से निकाला गया है, यह है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138(बी) के तहत कानूनी नोटिस जारी करने के लिए निर्धारित 30 दिनों की सीमा अवधि की गणना करते समय उस दिन को नहीं जोड़ा जाना चाहिए, जिस दिन शिकायतकर्ता को बैंक से सूचना प्राप्त होती है कि विचाराधीन चेक बिना भुगतान के वापस कर दिया गया है।"
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने क़ानून में निर्धारित 30 दिनों की अवधि की गणना करने के लिए रिटर्न मेमो की तारीखों पर भरोसा किया, यानी चेक की वापसी की तारीखों पर भरोसा किया और तर्क दिया कि कानूनी नोटिस समय पर जारी नहीं किए गए थे।
दूसरी ओर, शिकायतकर्ता ने अपने बैंक से रिटर्न स्टेटमेंट प्राप्त करने की तारीखों पर भरोसा किया, यानी, जिस तारीख को चेक के अनादर के संबंध में सूचना प्राप्त हुई थी, यह प्रस्तुत करने के लिए कि कानूनी नोटिस वैधानिक अवधि के भीतर जारी किए गए थे।
अदालत ने कहा,
"इस न्यायालय की प्रथम दृष्टया राय है कि शिकायतकर्ता कंपनी द्वारा उसके बैंक से संबंधित चेकों के अनादर के संबंध में सूचना प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर कानूनी नोटिस पोस्ट किए गए थे।"
तदनुसार याचिकाएं खारिज कर दी गईं।
केस का शीर्षक: मेसर्स रायपति पावर जेनरेशन प्राइवेट लिमिटेड एंड अन्य
प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 75
आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: