न्यूज़क्लिक केस | 'पंकज बंसल' मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला UAPA पर लागू नहीं: दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पंकज बंसल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जिसमें ईडी को आरोपी को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप से सूचित करने का निर्देश दिया गया था, को यूएपीए के तहत पैदा मामले पर पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस तुषार राव गेडेला ने कहा कि यूएपीए के तहत गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए, हालांकि अधिनियम के तहत ऐसे आधारों को लिखित रूप में प्रस्तुत करना अनिवार्य नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
“इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट की ओर से पंकज बंसल में निर्धारित अनुपात, जिसने वी सेंथिल बालाजी पर भरोसा करते हुए तय किया गया था, जो पूरी तरह से पीएमएलए के प्रावधानों के संबंध में था, किसी भी तरह से यूएपीए के तहत उत्पन्न होने वाले मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है।"
कोर्ट ने कहा,
“जहां तक यूएपीए का सवाल है, धारा 43ए और 43बी के प्रावधानों के तहत अधिकारियों पर ऐसा कोई समान वैधानिक दायित्व नहीं डाला गया है और इस प्रकार, यूएपीए के प्रावधानों के तहत पैदा मामले पर पंकज बंसल में सुप्रीम कोर्ट का अनुपात नहीं बिल्कुल लागू नहीं किया जा सकता है।”
कोर्ट ने कहा कि पंकज बंसल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के साथ-साथ यूएपीए के कड़े प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, "यह उचित होगा" कि दिल्ली पुलिस, अब से, लिखित रूप में गिरफ्तारी का आधार प्रदान करे। अदालत ने कहा, "जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, इससे मौजूदा मामले में गिरफ्तारी को दी गई किसी भी चुनौती का निवारण हो जाएगा।"
जस्टिस गेडेला ने यह भी कहा कि यूएपीए के तहत जांच अधिकारियों द्वारा एकत्र की जा रही जानकारी या खुफिया जानकारी की संवेदनशीलता का राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर सीधा प्रभाव पड़ने का अधिक महत्व है।
अदालत ने न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर हेड अमित चक्रवर्ती द्वारा यूएपीए मामले में उन्हें सात दिनों की पुलिस हिरासत में भेजने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
पोर्टल पर चीन समर्थक प्रचार के लिए धन प्राप्त करने के आरोपों के बाद मामला दर्ज किया गया था। दोनों ने पुलिस रिमांड को चुनौती देते हुए कहा कि उन्हें गिरफ्तारी के आधार उपलब्ध नहीं कराए गए।
केस टाइटल: प्रबीर पुरकायस्थ बनाम दिल्ली राज्य और अन्य और अन्य जुड़े हुए मामले