एनआई एक्ट-नोटिस और भुगतान का अवसर मिलने के बावजूद चेक राशि का भुगतान न करने वाला व्यक्ति आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए बाध्यः दिल्ली हाईकोर्ट
इस बात पर जोर देते हुए कि जब एक बार कोई व्यक्ति चेक जारी करता है तो उसका सम्मान किया जाना चाहिए, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नोटिस जारी करने और चेक की राशि का भुगतान करने का अवसर दिए जाने के बावजूद भी चेक की राशि का भुगतान नहीं करने वाला व्यक्ति आपराधिक मुकदमे का सामना करने और उसके परिणाम भुगतने के लिए बाध्य है।
यह देखते हुए कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट चेक जारी करने वाले व्यक्ति को पर्याप्त अवसर प्रदान करता है, जस्टिस रजनीश भटनागर ने कहा कि,
''एक बार जब कोई व्यक्ति चेक जारी कर देता है, तो उसका सम्मान या पालन किया जाना चाहिए और यदि इसका भुगतान नहीं किया जाता है, तो ऐसे व्यक्ति को नोटिस जारी करके चेक राशि का भुगतान करने का अवसर दिया जाता है और यदि वह तब भी भुगतान नहीं करता है, तो वह आपराधिक मुकदमे का सामना करने और उसके परिणाम भुगतने के लिए बाध्य है।''
अदालत ने माना है कि चेक जारी करने और उस पर किए गए हस्ताक्षर स्वीकार कर लिए जाने के बाद, चेक धारक के पक्ष में कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण की धारणा उत्पन्न होती है।
कोर्ट ने कहा कि,
''यह अभियुक्त पर निर्भर है कि वह उक्त अनुमान या धारणा का खंडन करे, हालांकि आरोपी को अपने स्वयं के सबूत पेश करने की आवश्यकता नहीं है और शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत सामग्री पर भरोसा कर सकता है। लेकिन फिर भी अकेले आरोपी का बयान उक्त अनुमान का खंडन करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है।''
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि दोष सिद्ध होने के बाद आरोपी को सजा देते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराध के लिए दी जाने वाली सजा इस तरह की होनी चाहिए कि वह कानून के उद्देश्य को उचित प्रभाव दे और चेक जारी करने वाले किसी भी व्यक्ति को उसके द्वारा जारी किए गए चेक को आसानी से अनादरित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
अदालत ने कहा,
''मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 357(3) का सहारा लेकर शिकायतकर्ता की शिकायत को एलीवीएट कर सकता है, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाने वाले मुआवजे की किसी सीमा का उल्लेख नहीं किया गया है और इस प्रकार, मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता को देय मुआवजे की उचित राशि तय करने का अधिकार है।''
न्यायालय एक रिवीजन याचिका पर विचार कर रहा था,जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा 26.03.2021 को पारित निर्णय को रद्द करने की मांग की गई थी। एमएम ने याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया था और उस आदेश को ट्रायल कोर्ट में चुनौती दी थी। परंतु ट्रायल कोर्ट ने एमएम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया था।
एमएम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 3 महीने के साधारण कारावास और 7,00,000 रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई थी, जो पूरी तरह से शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में दिया जाना था। एएसजे ने याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया और सजा को संशोधित किया और आरोपी को निर्देश दिया कि वह 7,00,000 रुपये का जुर्माना शिकायतकर्ता को प्रदान करे। साथ ही यह भी कहा कि अगर 4 सप्ताह के भीतर जुर्माने का भुगतान नहीं किया गया तो उसे 3 महीने के साधारण कारावास की सजा काटनी होगी।
कोर्ट ने कहा कि संशोधनवादी ने चेक के संबंध में अलग-अलग रुख अपनाया है। उसने कहा था कि विचाराधीन चेक गुम हो गया था और वर्ष 2014 में एक शिकायत भी दर्ज कराई गई थी, हालांकि उसने मूल शिकायत को रिकॉर्ड पर नहीं रखा।
न्यायालय ने कहा कि जो चेक चोरी हो गया था,उसके बारे में संशोधनवादी ने संबंधित बैंक को सूचित नहीं किया था और न ही उसने बैंक से उक्त चेक के भुगतान पर रोक लगाने का अनुरोध किया, जो उसकी दुर्भावना को दर्शाता है।
संशोधनवादी के इस तर्क के बारे में कि वह शिकायतकर्ता को नहीं जानता है और उसके प्रति उसकी कोई कानूनी देनदारी नहीं थी, न्यायालय ने कहा कि संशोधनवादी इस मामले में शिकायतकर्ता के पक्ष में लगाए गए अनुमान का खंडन करने में विफल रहा है और केवल संशोधनवादी द्वारा दिया गया बयान अपने आप में अभियोजन के पूरे मामले के संबंध में संदेह पैदा करने के लिए अपर्याप्त था।
कोर्ट ने कहा,''इसलिए, यहां ऊपर वर्णित चर्चाओं के मद्देनजर, मुझे ट्रायल कोर्ट द्वारा 26.03.2021 को पारित आक्षेपित निर्णय में कोई कमी नहीं मिली है, इसलिए, इसे बरकरार रखा जाता है। नतीजतन, रिवीजन याचिका खारिज की जाती है और सीआरएल.एम.(जमानत) 1244/2021 का भी इसी के अनुसार निपटारा किया जाता है।''
केस का शीर्षक-संजय गुप्ता बनाम राज्य व अन्य
साइटेशन-2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 239
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