वकीलों के हड़ताल पर होने से वादियों को नुकसान से बचाने के लिए मामलों की सुनवाई के लिए एक सिस्टम विकसित करने की आवश्यकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वकीलों के हड़ताल पर होने पर वादियों को नुकसान से बचाने के लिए मामलों की सुनवाई के लिए अदालती कार्यवाही के संबंध में एक सिस्टम विकसित करने की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने यह टिप्पणी वकीलों की हड़ताल के 'गंभीर' मुद्दे को ध्यान में रखते हुए दी। पीठ ने कहा कि वकीलों की हड़ताल के कारण वादियों और पूरे समाज को नुकसान होता है।
न्यायालय गायत्री द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें निर्धारित प्राधिकारी/उप-मंडल अधिकारी को यूपी पंचायत राज अधिनियम की धारा 12-सी के तहत दायर चुनाव याचिका को कम से कम समय में समाप्त करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई।
कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
कोर्ट ने वर्तमान मामले में आदेश-पत्र का अवलोकन किया और पाया कि मामला 19 मई, 2021 को दर्ज किया गया था। 12 जुलाई, 2021 के बाद निर्धारित प्राधिकारी द्वारा निर्धारित आठ तिथियों में से वकील छह मौकों पर हड़ताल पर थे।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि प्रतिवादी पहले ही निचली अदालत में पेश हो चुका है और उसे छह सितंबर, 2021 को लिखित बयान दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया गया।
हालांकि, याचिकाकर्ता की अपने मामले के शीघ्र निपटान की मांग को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि लगातार हड़ताल पर रहने वाले वकीलों के आचरण को देखते हुए वह निर्धारित प्राधिकारी को कोई निर्देश जारी नहीं कर सकता।
यह रेखांकित करते हुए कि कई मामलों में आदेश-पत्रों से पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में वकीलों के काम से दूर रहने के कारण चुनाव याचिका आगे बढ़ने में सक्षम नहीं है, कोर्ट ने कहा:
"इसमें कोई संदेह नहीं है कि चुनाव विवाद को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए अधिकारी कर्तव्य के अधीन हैं और चुनाव याचिका के संचालन के लिए नियमों में प्रक्रिया निर्धारित की गई है, लेकिन इस न्यायालय ने पाया कि निचली अदालतों का कामकाज वकीलों की लगातार हड़ताल से बाधित है और सुचारू कामकाज संभव नहीं है। इस संबंध जारी किए गए निर्देश किसी काम के नहीं होंगे। एक बार जब वकील काम से दूर हो जाते हैं, अधिकारियों को काम करने की अनुमति नहीं देते हैं और वादियों को परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देते हैं तो अदालत द्वारा निर्देशों के माध्यम से किए गए प्रयास बेकार हो जाते हैं।"
इसके अलावा, वर्तमान मामले का जिक्र करते हुए और वकीलों के आचरण पर निराशा व्यक्त करते हुए न्यायालय ने कहा:
"मौजूदा मामला निचली अदालत के वकीलों के आचरण का एक ज्वलंत उदाहरण है, जिस तरह से वे अदालतें चला रहे हैं और अदालतों को नियमित रूप से काम नहीं करने दे रहे हैं, इससे वादियों और समाज को बहुत नुकसान हुआ है। यह एक गंभीर मामला है। इसका कोई रास्ता निकालना होगा ताकि वादियों को उन वकीलों के हाथों नुकसान न हो जो निचली अदालत के कामकाज में बाधा डालते हैं। विशेष रूप से उन मामलों में जहां चुनाव विवाद हैं और समय निश्चित अवधि का है। इसके लिए एक सिस्टम विकसित किया जाना चाहिए ताकि वकीलों के हड़ताल पर रहने के बावजूद मामलों को सुनवाई के लिए उठाया जा सके और वादी को परेशानी न हो।"
अंत में याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया कि वह मामले को जल्द से जल्द निपटाने के लिए आज से 15 दिनों के भीतर संबंधित प्राधिकारी/अदालत के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत करें और वादियों की उपस्थिति में वकीलों की मदद के बिना मामले को आगे बढ़ाएं और मामले को कानून के तहत सख्ती से तय करें।
केस का शीर्षक - गायत्री बनाम जिला निर्वाचन अधिकारी/जिला कलेक्टर जिला - जौनपुर एवं 5 अन्य एवं 5 अन्य
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