इस पुरुष 'वर्चस्ववाद' कि महिलाएं 'आनंद की वस्तु' हैं, से निपटने आवश्यकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'विवाह का झूठा वादा कर संभोग करने' के मामलों पर विशिष्ट कानून बनाने की बात की
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि विधायिका के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे मामलों के लिए, जहां आरोपी शादी का झूठा वादा कर संभोग की सहमति पा लेता है, के निस्तारण के लिए स्पष्ट और विशिष्ट कानूनी ढांचा प्रदान करे।
जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने कहा, " एक स्वस्थ्य समाज का निर्माण करने और महिलाओं के मन में सुरक्षा और संरक्षण की भावना को बढ़ाने के लिए इस सामंती मानसिकता और पुरुष 'वर्चस्ववाद' कि महिलाएं कुछ भी नहीं है, बल्कि आनंद की वस्तु हैं, को कड़ाई से संबोधित करने और सख्ती से निपटने की आवश्यकता है।"
बेंच ने यह भी कहा कि पीड़ित को धोखा देने के इरादे से शादी का झूठा वादा करना एक परिघटना बन गया है और अभियुक्त यह व्यापक रूप से मानते हैं कि वे ऐसे मामलों में आपराधिक दायित्व और सजा से बच जाएंगे।
कोर्ट ने कहा, "हमारे समाज में ज्यादातर महिलाओं के लिए, शादी का वादा बहुत बड़ा प्रलोभन है और वे ऐसी स्थिति में फंस जाती हैं, जिसका नतीजा यौन दुर्व्यवहार और शोषण के रूप में होता है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि जब तक इस तरह के कानून को अधिनियमित नहीं किया जाता तब तक अदालत को सामाजिक वास्तविकता और मानव जीवन की वास्तविकता को ध्यान में रखना चाहिए और ऐसी महिलाओं को संरक्षण देना जारी रखना चाहिए, जो शादी के झूठे वादे के कारण पीड़ित हैं ।
तथ्य
जेल में बंद आरोपी ने निचली अदालत में उसकी जमानत अर्जी खारिज होने के बाद आपराधिक अपील दायर की थी। उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)5 के तहत मामला दर्ज किया गया है।
पीड़िता एक पुलिस कांस्टेबल है और अनुसूचित जाति की है। उसे अपीलकर्ता-आरोपी ने एक होटल में शादी को अंतिम रूप देने और उससे संबंधित दस्तावेज तैयार करने के लिए बुलाया था, हालांकि, होटल के कमरे में उसने कथित तौर पर उसके साथ बलात्कार किया।
जिसके बाद उसी दिन महिला ने एफआईआर दर्ज कराई। उसने धारा 161 के तहत जांच अधिकारी और धारा 164 CrPC के तहत मजिस्ट्रेट को दिए गए बयानों में एफआईआर का समर्थन किया।
अवलोकन
शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि मामला एक ही बार संभोग करने का है और एफआईआर उसी दिन दर्ज की गई है।
अदालत ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने में 17 घंटे की देरी महत्वहीन है, क्योंकि उसकी राय थी कि जिस व्यक्ति के साथ वह शादी करने की योजना बना रही थी, उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्णय लेने में इतना समय लगना स्वाभाविक था।
अदालत ने पाया कि पीड़िता प्यार में थी और उसकी शादी में पारिवारिक बाधा थी जैसा कि अपीलकर्ता-आरोपी ने उल्लेख किया है, और इसलिए, अदालत ने यह स्वाभाविक पाया कि वह होटल गई क्योंकि अपीलकर्ता चाहता था कि वह कोर्ट मैरिज के लिए दस्तावेज की तैयारी के लिए बात करने आए।
अदालत ने कहा कि आरोपी वास्तव में पीड़िता से शादी नहीं करना चाहता था और उसके दुर्भावनापूर्ण इरादे थे, और उसने केवल अपनी वासना को पूरा करने के लिए शादी का झूठा वादा किया था, और यह निश्चित रूप से धोखाधड़ी और सेक्स के लिए सहमति प्राप्त करने के लिए धोखा देने के दायरे में आता है ।
कोर्ट ने कहा, " यह कहना गैर-जरूरी है कि झूठी शादी का वादा हमारे समाज के बड़े हिस्से में, संभोग करने के लिए एक महिला पर भावनात्मक दबाव बनाने के लिए दुष्ट पुरुषों का एक प्रभावी उपकरण है और हमेशा रहा है।"
अपील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, " विवाह का झूठा वादा कर यौन संबंध की सहमति प्राप्त करने को तथ्य की गलत धारणा के तहत दी गई सहमति के रूप में माना जाना चाहिए और इसे निश्चित रूप से बलात्कार के समाना माना जाना चाहिए ... अदालत मूक दर्शक नहीं बन सकती है और उन लोगों को लाइसेंस नहीं दे सकती है जो निर्दोष लड़कियों का शोषण करने और शादी का झूठा वादा कर उनके साथ शारीरिक संबंध बनाने बनाने की कोशिश कर रहे हैं।"
केस टाइटिल- हर्षवर्धन यादव बनाम यूपी राज्य और अन्य