NCLAT दिल्ली ने डीएलएफ को क्लीन चिट देने वाला CCI का आदेश रद्द किया, मामले को नए सिरे से विचार के लिए CCI को भेजा
नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) की जस्टिस राकेश कुमार (न्यायिक सदस्य) और डॉ. अशोक कुमार मिश्रा (तकनीकी सदस्य) की प्रिंसिपल बेंच ने अमित मित्तल बनाम डीएलएफ लिमिटेड और अन्य में दायर अपील पर फैसला करते हुए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के 31.08.2018 के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें डीएलएफ और उसकी अनुषंगी को प्रभावी स्थिति के दुरुपयोग के आरोप में क्लीन चिट दी गई थी।
CCI का उक्त आदेश डायरेक्टर जनरल द्वारा प्रस्तुत पूरक रिपोर्ट पर आधारित था। खंडपीठ ने कहा कि CCI केवल बंद होने के मामले में आगे की जांच का निर्देश दे सकता है, न कि जहां डीजी ने पक्षकार(ओं) द्वारा प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 के उल्लंघन को दर्शाने वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
पृष्ठभूमि तथ्य
डीएलएफ लिमिटेड (प्रतिवादी नंबर 1) सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी है, जो आवासीय, वाणिज्यिक और खुदरा संपत्तियों के कारोबार में लगी हुई है। डीएलएफ होम डेवलपर्स लिमिटेड (प्रतिवादी नंबर 2) डीएलएफ लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
डीएलएफ समूह ने डीएलएफ गार्डन सिटी, गुड़गांव के सेक्टर 90 में स्थित रीगल गार्डन (प्रोजेक्ट) के नाम से आवासीय टाउनशिप का शुभारंभ किया। परियोजना में 3 और 4 बीएचके अपार्टमेंट इकाइयां शामिल हैं। अमित मित्तल ("फ्लैट बायर/अपीलकर्ता") को प्रोजेक्ट में अपार्टमेंट आवंटित किया गया और एक अपार्टमेंट बायर एग्रीमेंट 01.09.2012 को निष्पादित किया गया।
हालांकि, समझौते में मनमाना एकतरफा खंड शामिल है, जो डीएलएफ द्वारा प्रभुत्व की स्थिति के दुरुपयोग को दर्शाता है। 2014 में फ्लैट खरीदार ने CCI के समक्ष डीएलएफ द्वारा प्रभुत्व की स्थिति का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए आवेदन दायर किया, जो अनुचित और भेदभावपूर्ण था।
CCI ने प्रथम दृष्टया प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 (अधिनियम, 2002) की धारा 4(2)(a)(i) के तहत प्रभुत्व के दुरुपयोग का मामला पाया। CCI ने डायरेक्टर जनरल (डीजी) को जांच करने का निर्देश दिया।
डीजी ने अपनी जांच रिपोर्ट दिनांक 18.03.2016 में निष्कर्ष निकाला कि डीएलएफ ने प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 19(4) सपठित धारा 4(2)(ए)(i) का उल्लंघन किया। हालांकि, CCI ने 09.11.2016 को आदेश पारित किया। डीजी को आगे की जांच करने का निर्देश दिया।
डीजी ने अपनी पूरक जांच में निष्कर्ष निकाला कि समूह के रूप में डीएलएफ के पास उच्च वित्तीय ताकत हैं। हालांकि, डीएलएफ समूह को ताकत की स्थिति प्रदान करने के लिए ऐसा प्रतीत नहीं होता।
दूसरी/पूरक डीजी रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद CCI ने अधिनियम, 2002 की धारा 26(6) के तहत दिनांक 31.08.2018 को आदेश पारित किया, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया कि "अधिनियम की धारा 4 के प्रावधानों का उल्लंघन वर्तमान मामले में स्थापित नहीं होता। इसलिए अधिनियम की धारा 26 (6) के तहत मामला बंद करने का आदेश दिया जाता है।
फ्लैट खरीदार ने एनसीएलएटी के समक्ष दिनांक 31.08.2018 के आदेश को चुनौती दी।
NCLAT का फैसला
खंडपीठ ने कहा कि अधिनियम, 2002 की धारा 26 के तहत CCI के पास आगे की जांच के लिए निर्देश देने का बहुत सीमित अधिकार क्षेत्र है। यदि डीजी सिफारिश करते हैं कि अधिनियम, 2002 का कोई उल्लंघन नहीं है तो CCI अधिनियम की धारा 26(5) के तहत आपत्तियां या सुझाव आमंत्रित करेगा। इसके बाद यदि आवश्यक समझा जाए तो CCI धारा 26(7) के तहत आगे की जांच के लिए निर्देश दे सकता है।
खंडपीठ ने कहा,
"बंद करने के मामले में अधिनियम के अनुसार आगे की जांच आवश्यक है, न कि उस मामले में जहां डीजी ने पक्षकार द्वारा अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन को दर्शाने वाली रिपोर्ट प्रस्तुत की है।"
खंडपीठ ने पाया कि डीजी की पहली रिपोर्ट में डीएलएफ द्वारा अधिनियम, 2002 की धारा 4 के उल्लंघन का खुलासा किया गया, लेकिन CCI ने सीसीआई (सामान्य) विनियम, 2009 के विनियम 20 (6) का आश्रय लिया और डीजी को पूरक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
इस संबंध में खंडपीठ ने कहा,
"उपरोक्त विनियम 20 डीजी द्वारा जांच के बारे में प्रक्रिया का वर्णन करता है, जबकि विनियम 20 (6) CCI को डीजी को आगे की जांच के लिए निर्देशित करने का अधिकार देता है। हालांकि, अधिनियम की धारा 26 के मद्देनजर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विनियम 20 (6) CCI (सामान्य) विनियम, 2009 का उपयोग अधिनियम की धारा 26(7) के तहत क्षेत्राधिकार के प्रयोग को आगे बढ़ाने में किया जा सकता है, जिसे उस मामले में लागू करने की आवश्यकता होती है, जहां अधिनियम की धारा 26(5) के तहत डीजी अधिनियम के प्रवाधान के गैर-उल्लंघन के संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। किसी भी स्थिति में विनियम 2009 के विनियम 20(6) का आश्रय लेते हुए CCI आगे की जांच के लिए आदेश पारित करने के लिए अधिकृत नहीं है और इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता।"
खंडपीठ ने 31.08.2018 का आदेश रद्द कर दिया, क्योंकि यह मुख्य रूप से डीजी द्वारा प्रस्तुत पूरक जांच रिपोर्ट पर पारित किया गया, जो CCI के शून्य आदेश पर आयोजित किया गया। बेंच ने डीजी द्वारा दिनांक 18.03.2016 को पहली रिपोर्ट जमा करने के बाद की सभी कार्यवाही को शून्य घोषित कर दिया।
खंडपीठ ने 18.03.2016 की पहली डीजी रिपोर्ट के आधार पर नया आदेश पारित करने के लिए मामले को CCI को वापस भेज दिया। CCI को तीन महीने की अवधि के भीतर सभी संबंधितों को सुनवाई का अवसर देने के बाद पूरे मामले की जांच करने और कानून के अनुसार उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल: अमित मित्तल बनाम डीएलएफ लिमिटेड व अन्य।
केस नंबर: कॉम्पिटिशन अपील (एटी) नंबर 2018/82
अपीलकर्ता के वकील: जितेंद्र मलकान और आर.पी. शर्मा।
उत्तरदाताओं के वकील: प्रवीण बहादुर, कनिका शर्मा, रोहन अरोड़ा, चांदनी आनंद, आकाश कुंभट, आर1 और आर2 के वकील। शमा नरगिस, उप निदेशक (कानून), सीसीआई। आर3 के लिए अविष्कार सिंघवी, निपुण कत्याल और विवेक कुमार।
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