अपने विदाई भाषण में जस्टिस आर बानुमति ने कहा, ''मेरा परिवार भी हुआ है न्यायिक देरी का शिकार''
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष और सदस्यों ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति आर बानुमति को विदाई देने के लिए एक समारोह का आयोजन किया।
न्यायमूर्ति आर बानुमति ने शुक्रवार को अंतिम बार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन किया क्योंकि वह 19 जुलाई 2020 को सेवानिवृत्त होने जा रही हैं। उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में अपनी भूमिका निभानी शुरू की थी। वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली छठी महिला हैं।
न्यायमूर्ति बानुमति ने लगभग तीन दशक तक काम किया है। उनकी यह यात्रा तमिलनाडु उच्च न्यायिक सेवा के जरिए जिला न्यायाधीश के रूप में उनकी सीधी भर्ती से शुरू हुई थी। अप्रैल 2003 में, उन्हें मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। नवंबर 2013 में, उनको झारखंड हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया और मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
शुक्रवार का विदाई समारोह एससीबीए के उपाध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कैलाश वासदेव द्वारा दिए गए स्वागत भाषण के साथ शुरू हुआ।
इसके बाद समारोह में अटॉर्नी-जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि यह एक दुखद दिन था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के सबसे प्रिय न्यायाधीशों में से एक न्यायाधीश विदाई ले रही हैं। उन्होंने जस्टिस बानुमति द्वारा पारित कई बड़े आदेशों को भी गिनवाया,जो उन्होंने अपने जिला न्यायाधीश, हाईकोर्ट के न्यायाधीश और फिर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करते हुए दिए हैं।
'एक अच्छी न्यायाधीश हमें छोड़ कर जा रही हैं, एक महान न्यायाधीश। तो, मैं केवल इतना ही कह सकता हूं कि उन्हेंं मेरी शुभकामनाएंं। मुझे पता है कि आप अपने परिवार से प्यार करती हैं, आपने कई बार अपने पोते के बारे में बताया है। लेकिन, मुझे उम्मीद है कि आप जल्द ही कानूनी काम पर लौट आएंगी, शायद मध्यस्थता कानून में किसी भूमिक्का के जरिए।''
इनके बाद एससीबीए के अध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अपना संबोधन शुरू किया,
"माई लेडीशिप, मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि कोर्ट में आपके बिना एक गंभीर खालीपन होगा और कॉलेजियम के लिए इसे भरना मुश्किल होगा। बार आपको याद करेगा, क्योंकि आप में हमें एक स्वतंत्र न्यायाधीश मिली हैंं, जो हमेशा हमारी बात सुनने को तैयार रहींं।''
दवे ने कहा कि न्यायमूर्ति बानुमति ने अपनी स्वतंत्र और कई अलग-अलग राय देकर कानून के शासन की आधारशिला रखी है,जो लोकतंत्र का आधार है। दवे ने जस्टिस बानुमति की उन उपलब्धियों और योगदानों को भी सूचीबद्ध किया,जो न केवल तमिलनाडु राज्य न्यायिक अकादमी के अध्यक्ष के रूप में, बल्कि कानून के विभिन्न पहलुओं पर विभिन्न हैंडबुक और पुस्तकों के लेखक के रूप में भी दिए हैं।
उन्होंने बार के सदस्यों के प्रति उनकी नम्रता और प्रोत्साहक लगाव को भी उजागर किया।
''बार वास्तव में आपके व्यवहार करने के उस तरीके के लिए अभारी है,जो आप बार के सदस्यों के साथ करती हैं। वह स्नेह जो आपने हम पर बरसाया है,यहां तक कि अपने निर्णय लेते हुए भी हमारे साथ दृढ़ता से बने रहना। विशेष रूप से बार के युवा सदस्यों, जिनके साथ आप अत्यंत सम्मान व करूणा के साथ व्यवहार करती हैं।''
फिर दवे ने COVID 19 महामारी के कुछ गंभीर परिणामों को रेखांकित किया, जिसने युवा वकीलों को बिना किसी वित्तीय सहायता के खुद के सहारे पर छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि बार इस समय बार अकेली खड़ी है, बेंच द्वारा उनकी सहायता या देखभाल नहीं की जा रही है। चूंकि यह महामारी मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है इसलिए बार के सदस्य बेहद पीड़ित हो रहे हैं।
''हमारे युवा वकील आत्महत्या कर रहे हैं और हमने पिछले एक सप्ताह में दो युवा महिला वकीलों को खो दिया है। एससीबीए और बार के कुछ उदार सदस्य सबकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने सैकड़ों लोगों की मदद की है, लेकिन सैकड़ों और भी हैं जो इंतजार कर रहे हैं। हमारे संसाधन सीमित हैं। ऐसे हजारों लोग हैं जो अपने अस्तित्व के लिए संस्था पर निर्भर हैं।''
उपरोक्त के प्रकाश में दवे ने अनुरोध किया कि वर्चुअल और फिजिकल कोर्ट के बीच एक संतुलन बनाया जाए,क्योंकि वकीलों की भलाई के लिए यह जरूरी हैं।
दवे यह कहकर अपना संबोधन समाप्त किया कि,''आप में, बार को कोई ऐसा व्यक्ति मिला जो वास्तव में एक मित्र था। आज, जब आप हमें छोड़ कर जा रही हैं, तो हम काफी दुखी महसूस कर रहे हैं। सौभाग्य से, आप दिल्ली नहीं छोड़कर नहीं जा रही हैं, और मुझे उम्मीद है कि आप हमारे साथ जुड़ेंगी, शायद मध्यस्थता के माध्यम से। हम आपके लिए बहुत सारी खुशी और सफलता की कामना करते हैं। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।''
उसके बाद न्यायमूर्ति बानुमति ने अपना संबोधन शुरू किया। उन्होंने उन सभी का धन्यवाद किया जिन्होंने शुक्रवार की शाम को उनको ज्वाइन किया और उनके बारे में अपने अच्छे विचार और अच्छे शब्द व्यक्त किए। उन्होंने अपने बचपन और भारत के सर्वोच्च न्यायालय की अपनी यात्रा के बारे में बताया।
''मैं एक बहुत छोटे से गांंव में पैदा हुई थी,जो तमिलनाडु के एक पिछड़े जिले में है। मैं जब दो साल की थी,तब मैंने अपने पिता को एक बस दुर्घटना में खो दिया था। उन दिनों में, हमें मुआवजे के लिए मुकदमा दायर करना पड़ा था। मेरी मांं ने मुकदमा दायर किया था और अदालत ने एक डिक्री पारित की। लेकिन, हम जटिल प्रक्रियाओं और सहायता की कमी के कारण राशि प्राप्त नहीं कर सके। मैं खुद, मेरी विधवा मां और मेरी दो बहनें,सभी अदालत की देरी और इसकी प्रक्रियात्मक ढ़िलाई का शिकार हुए हैं और अंत तक हमें मुआवजा प्राप्त नहीं हुआ।''
वर्ष 1988 में 33 वर्ष की आयु में तमिलनाडु उच्च न्यायिक सेवाओं में प्रवेश करने के बाद जस्टिस बानुमति ने बाधाओं के पहाड़ों को नेविगेट करते हुए 3 दशक से अधिक समय तक संस्था की सेवा की।
उन्होंने यह भी कहा कि मामलों की पेंडेंसी पर टिप्पणियों के बाद केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और न्यायपालिका ने न्याय की पहुंच में सहायता करने और प्रणाली की अधिक दक्षता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सकारात्मक पहल की हैं।
''अधिक नागरिक-केंद्रित सेवाएं जैसे कि निर्णय/ आदेशों की ऑनलाइन उपलब्धता, काॅजलिस्ट तक आसान पहुंच, ई-भुगतान, ई-सम्मन, मोबाइल ऐप आदि उपलब्ध कराए गए हैं। ये सभी हथियार प्रणाली की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए हैं।''
उन्होंने युवा वकीलों को सलाह दी है कि वे पढ़ते रहें और अपना ज्ञान बढ़ाते रहें, क्योंकि सभी क्षेत्रों में कानून की व्यापकता और विस्तार के चलते वकीलों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह ''सूचनाओं का फव्वारा या उत्पति स्थान'' बन जाएं।
न्यायमूर्ति बानुमति ने अपने परिवार का धन्यवाद किया। उन्होंने बताया कि उनके परिवार ने हमेशा उनके करियर में अपना समर्थन प्रदान किया और कठिन समय में उनके साथ खड़े रहे।
''मैं अपने पति को पूरी ईमानदारी से शुक्रिया करती हूं, जो मुफस्सिल कोर्ट में वकील हैं। उन्होंने हमेशा मुझे कानून को अपनाने और कानूनी पेशे को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे पति सर्वोच्च निष्ठा के व्यक्ति हैं और उन्होंने जीवन भर मुझे अटूट समर्थन प्रदान किया। ''
उसके बाद उन्होंने अपनी बहनों, अपने बच्चों और सुप्रीम कोर्ट के सभी साथी न्यायाधीशों के साथ-साथ हर उस अदालत का धन्यवाद किया जहाँ उन्होंने सेवा दी थी।
न्यायमूर्ति बानमुति ने यह भी कहा कि जो वकील अदालत में उनके सामने पेश हुए थे, वे हमेशा पूरी तरह से तैयार होकर आते थे और अपनी सर्वश्रेष्ठ दलीलें पेश करते थे। उन्होंने कहा कि अगर कभी किसी के दिल को उनके कारण कोई कष्ट हुआ हो तो उसे अपने दिल में न रखें, क्योंकि उनका एकमात्र उद्देश्य युवा वकीलों को प्रोत्साहित करना और उन्हें सीखने में मदद करना था।
उन्होंने मीडिया और प्रेस का भी धन्यवाद किया। जो सुप्रीम कोर्ट से जुड़े हुए है और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की ईमानदारी से रिपोर्टिंग कर रहे हैं। साथ ही रिपोर्टिंग के उद्देश्य के लिए न्यायालय में मौजूद रहने के दौरान अनुशासन बनाए रखते हैं।
वहीं फिजिकल कोर्ट के कामकाज के संबंध में दवे द्वारा दिए गए सुझाव के जवाब में, न्यायमूर्ति बानुमति ने कहा कि यह एक निर्णय था जिसे न्यायाधीशों की समिति द्वारा लिया गया था। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि इस समय देश बहुत पीड़ित है और ये बहुत कठिन समय है। उन्होंने सभी से अपील की है कि थोड़ा और इंतजार करें क्योंकि यह ''जीवन का सवाल'' है।
''COVID 19 खतरनाक और बहुत घातक है। हम आशा करते हैं कि जल्द ही एक टीका विकसित किया गया जाएगा और हमें कुछ अच्छी खबर मिल जाएगी। आइए हम सभी सामूहिक रूप से राष्ट्र के लिए प्रार्थना करें कि भारत इससे बाहर निकल आए और जल्द ही स्थिति सामान्य हो जाए।''
सभी की सुरक्षा और कल्याण की कामना के साथ ही न्यायमूर्ति आर बानुमति ने अपने विदाई भाषण का समापन कर दिया।
इसके बाद एससीबीए के कार्यकारी सचिव रोहित पांडे ने सभी का धन्यवाद किया और समारोह का समापन किया गया।