ड्यूटी पर चालक की हत्या रोजगार की प्रकृति के निकट नहीं, यह कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत 'व्यावसायिक खतरा' नहीं कहा जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2022-01-22 09:19 GMT

झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में आयुक्त के एक फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कर्मचारी मुआवजा अधिनियम के तहत ड्यूटी पर एक ट्रक चालक की हत्या के लिए मुआवजा दिया गया था।

जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा कि कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 की धारा 3 के तहत मुआवजे प्रदान करने के रोजगार के दरमियन आकस्मिक मृत्यु अनिवार्य है। कोर्ट का विचार था कि ड्यूटी पर ड्राइवर की हत्या दुर्घटना नहीं है...।

कोर्ट ने कहा,

"रोजगार और रोजगार के दरमियान कर्मचारी के साथ परिणामी दुर्घटना के बीच करणीय संबंध होना चाहिए। करणीय संबंध यह मानता है कि रोजगार की प्रकृति दुर्घटना का निकटतम कारण है। कुछ संबंध होना चाहिए, चाहे वह कितना भी तुच्छ हो...।"

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पेट्रोलियम उत्पादों संबंध‌ित कार्य कर रहे व्यक्तियों के निए विस्फोट एक व्यावसायिक खतरा हो सकता है, जबकि कंप्यूटर प्रोग्रामर के रूप में कार्यरत व्यक्ति के मामले में ऐसा नहीं हो सकता है। इसी तरह, सुरक्षा गार्ड की हत्या को रोजगार के दरमियान हुई हत्या कहा जा सकता है, जबकि एक निजी या सार्वजनिक वाहन चालक के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है।

पृष्ठभूमि

मृतक ट्रक ड्राइवर की विधवा और बच्चों ने एडवोकेट अमरेश कुमार के माध्यम से अपील दायर की थी। ट्रक ड्राइवर की डकैतों ने हत्या की थी और ट्रक लेते गए थे। आयुक्त, कर्मकार मुआवजा अधिनियम, हजारीबाग ने दावेदारों के पक्ष में 1,35,560 रुपये मुआवजे का आक्षेपित आदेश पारित किया था, जिसके खिलाफ राष्ट्रीय बीमा कंपनी ने कर्मकार मुआवजा अधिनियम की धारा 30(1) के तहत अपील दायर की थी।

अपील को इसलिए प्राथमिकता दी गई, क्योंकि मृतक ट्रक ड्राइवर का रोजगार के दर‌मियान अपहरण कर हत्या कर दी गई, हालांकि यह दुर्घटना की श्रेणी में नहीं आएगा। इसलिए बीमा कंपनी दावेदारों को क्षतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगी।

अवॉर्ड को निम्न बिंदुओं पर चुनौती दी गई थी-

-क्या कर्मचारी और नियोक्ता का संबंध स्थापित हो गया था और मृतक और दावेदारों के बीच प‌िता और पिता का संबंध था?

-क्या आक्षेपित आदेश अधिनियम के प्रावधानों के गलत मूल्यांकन पर आधारित था?

यह भी बताया गया कि मृतक अगस्त 1995 में ट्रक के साथ लापता हो गया था, जबकि भारतीय दंड संहिता की धारा 364 और 379 के तहत मामला जनवरी 1997 में दर्ज किया गया। पुलिस ने आरोप पत्र प्रस्तुत करते हुए पाया कि मामला बिना किसी सुराग के सच था; उसके बाद, कर्मकार मुआवजा अधिनियम की धारा 30(1) के तहत दावा मामला दर्ज किया गया था।

निष्कर्ष

कोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा, क्या रोजगार के दौरान किसी कर्मचारी की हत्या, दुर्घटना के दायरे में आएगी, जिससे मालिक/बीमा कंपनी को मुआवजे की राशि का हक मिल सके?

यह देखा गया कि रोजगार के दरमियान आकस्मिक मृत्यु कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 की धारा 3 के तहत मुआवजे के लिए अनिवार्य है।

कोर्ट ने कहा, "शब्द "रोजगार से उत्तन्न, और उसके दरमियान उत्पन्न होती है" यह मृत्यु और रोजगार के बीच एक करणीय संबंध को दिखाता है। रोजगार और रोजगार के दरमियान कर्मचारी की परिणामी दुर्घटना के बीच करणीय संबंध होना चाहिए।"

न्यायालय ने यह भी नोट किया कि करणीय संबंध यह मानते हैं कि रोजगार की प्रकृति दुर्घटना का निकटतम कारण है। रोजगार की प्रकृति और दुर्घटना के बीच कोई संबंध होना चाहिए, चाहे वह कितना ही तुच्छ क्यों न हो, जो कर्मचारी द्वारा किए जा रहे कार्य के खतरे से जुड़ा हो सकता है।

वर्तमान मामले के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि यह निर्विवाद है कि चालक पिता था और ट्रक का मालिक उसका पुत्र था। मृतक को ट्रक सहित अगवा कर हत्या कर दी गई थी।

केस शीर्षक: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, रामगढ़ बनाम कुलसुम खातून और अन्री

सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (झा) 5


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