मुंबई की डॉक्टर आईआईटी बीएचयू में इलाहाबाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद प्रवेश पाने वाली छात्रा की पढ़ाई का खर्च उठाएगी
इलाहाबाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आईआईटी बीएचयू में प्रवेश पाने वाली दलित छात्रा की पढ़ाई को प्रायोजित करने के लिए मुंबई की एक डॉक्टर ने पहलकदमी की है।
अनिवार्य रूप से, हस्तक्षेप के लिए एक आवेदन दाखिल करते हुए डॉ सोनल चौहान [कंसल्टेंट एमडी, डीएमआरई, एमबीबीएस, वाडिया चिल्ड्रेन हॉस्पिटल, मुंबई] ने जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि वह दलित छात्रा संस्कृति रंजन की पूरी पढ़ाई [5 साल, बैचलर और मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी (दोहरी डिग्री] को प्रायोजित करना चाहती हैं।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता संस्कृति रंजन ने फीस न जमा कर पाने के कारण आईआईटी बीएचयू में अपनी सीट गंवाने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। वित्तीय संकट के कारण वह स्वीकृति शुल्क के 15 हजार रुपए नहीं जमा कर पाईं थीं।
उनकी स्थिति के मद्देनजर जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने पिछले हफ्ते आईआईटी बीएचयू को उन्हें एडमिशन देने का निर्देश दिया था। जस्टिस सिंह ने सीट आवंटन के लिए आवश्यक 15 हजार रुपये खुद दिए थे।
सोमवार (6 दिसंबर) को अदालत को सूचित किया गया था कि याचिकाकर्ता को प्रवेश दिया जा चुका है। याचिकाकर्ता को जब पता चला कि मुंबई की डॉक्टर उनकी पढ़ाई को प्रायोजित करना चाहती है, तो उन्होंने डॉ सोनल चौहान के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त की।
दरअसल, याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया था कि आईआईटी के कई पूर्व छात्रों ने भी उनसे संपर्क किया है, यहां तक कि कई वकील याचिकाकर्ता के पूरे अध्ययन को प्रायोजित करने के लिए आगे आए हैं।
इस पृष्ठभूमि में, डॉ सोनल चौहान के नेक कार्य के लिए उनकी विशेष प्रशंसा को रिकॉर्ड में रखते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की है-
" यह काफी खुशी की बात है कि समाज का सक्षम वर्ग समाज के निचले तबके की मेधावी छात्रा के अध्ययन को प्रायोजित करने के लिए तैयार है। न्यायालय ऐसे सभी व्यक्तियों की सराहना करता है, जिन्होंने स्वेच्छा से याचिकाकर्ता के पूरे अध्ययन को प्रायोजित किया है।"
हालांकि, कोर्ट ने नोट किया कि यह इकलौता मामला नहीं है, जहां समाज के निचले तबके के मेधावी छात्र को आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के लिए प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद शुल्क जमा करने में इतनी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
यह देखते हुए कि अन्य लोग न्यायालय में आने के लिए इतने भाग्यशाली नहीं हो सकते हैं, न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया के साथ-साथ राज्य सरकार से भी जानना चाहा कि क्या ऐसे छात्रों के अध्ययन को प्रायोजित करने के लिए कोई योजना/ निधि है जिन्होंने जेईई/एनईईटी/सीएलएटी, आदि के माध्यम से सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में प्रवेश सुरक्षित कर लिया है, लेकिन वे खराब आर्थिक स्थिति के कारण फीस का भुगतान करने में असमर्थ हैं।
अदालत ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार के निर्देशों को 20 दिसंबर से पहले रिकॉर्ड में रखा जाना चाहिए।
केस शीर्षक - संस्कृति रंजन बनाम संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण के माध्यम से संगठन अध्यक्ष जी और अन्य