व्यक्ति ने खाना परोसने से मना करने पर महिला को आग लगाई: मप्र हाईकोर्ट ने हत्या की सजा को आईपीसी की धारा 304 में बदला, कहा- "आवेग" में घटना को अंजाम दिया गया

Update: 2022-11-16 06:18 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत दोषी पाए गए व्यक्ति की सजा को आईपीसी की धारा 304 (सदोष मानव हत्या, आवेग में आकर की गई हत्या) में बदल दिया।

इस व्यक्ति को अपनी महिला साथी को जलाकर मारने का दोषी ठहराया गया था। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि उसने आवेग में घटना को अंजाम दिया।

जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस प्रकाश चंद्र गुप्ता की खंडपीठ ने सजा के सवाल की जांच करते हुए सवाल उठाया कि भले ही अपीलकर्ता ने अचानक आवेग में आकर किए गए कृत्य के बारे में तर्क नहीं दिया, लेकिन,

इस अदालत ने अपीलीय अदालत होने के नाते आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध करने के लिए सजा के सवाल की जांच करना उचित समझा। इस प्रकार दिए गए और यहां ऊपर चर्चा किए गए साक्ष्य से पता चलता है कि वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा मृतक को आग लगाने में रत्ती भर भी पूर्वचिंतन नहीं है। घटना अचानक आवेग के कारण हुई। अपीलकर्ता ने सुमन बाई पर मिट्टी का तेल डाला और उसे आग लगा दी ... यदि उपरोक्त निर्णयों में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर वर्तमान मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स की जांच की जाती है तो यह स्पष्ट होगा कि अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। दरअसल, उसे आईपीसी की धारा 304 (भाग- I) के तहत अपराध करने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। इसके लिए हमारी राय में 10 साल के कठोर कारावास की सजा पर्याप्त होगी।

मामले के तथ्य यह है कि अपीलकर्ता और मृतक साथ रह रहे थे। घटना के दिन अपीलार्थी ने मृतक से उसे खाना देने के लिए कहा। उसने जब खाना देने से इनकार किया तो वह आगबबूला हो गया और उसके ऊपर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी। उसने खुद को बचाने के लिए जगह छोड़ने की कोशिश की, लेकिन अपीलकर्ता ने उसे जबरन वापस पकड़ लिया, जो इस प्रक्रिया में जली हुई चोटों से भी पीड़ित थी।

मृतका को अस्पताल ले जाया गया, जहां उसने कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष मृत्यु से पहले अपना बयान दिया। आखिरकार, उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया। अपीलकर्ता पर मुकदमा चलाया गया और बाद में आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया। इससे व्यथित होकर उसने न्यायालय के समक्ष अपील की।

अपीलकर्ता ने केवल मृतक द्वारा मृत्यु से पहले दिए गए बयान की वैधता पर सवाल उठाकर अपनी सजा को चुनौती दी। उसने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि मृतक ने अपने नाम का सही उल्लेख नहीं किया। इस प्रकार, यह तर्क दिया गया कि मरने से पहले दिया गया बयान विश्वसनीय नहीं है और इसलिए उसकी दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं बन सकता।

इसके विपरीत राज्य ने तर्क दिया कि मृतक का मरने से पहले दिया गया बयान पूरी तरह से संगत है और उस पर संदेह नहीं किया जा सकता। आगे यह बताया गया कि अपीलकर्ता अपनी खुद की जलने की चोटों के बारे में स्पष्टीकरण देने में विफल रहा। इस प्रकार, यह प्रस्तुत किया गया कि पीड़ित पक्ष ने परिस्थितियों की श्रृंखला को सफलतापूर्वक स्थापित किया, जिससे उचित संदेह से परे अपीलकर्ता का दोष साबित हुआ।

पक्षकारों की दलीलों और ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड की जांच करते हुए अदालत ने मृतक के मरने से पहले दिए गए बयान की प्रामाणिकता के बारे में राज्य सरकार की दलीलों पर सहमति जताई। अदालत ने कहा कि मृतका को उसके डॉक्टर ने कार्यकारी मजिस्ट्रेट को अपना बयान देने के लिए फिट घोषित किया। इसके अलावा, मृतक ने स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता के नाम और पते का उल्लेख किया।

अदालत ने कहा,

"डॉ. ने अपीलकर्ता का नाम प्रकाश कुमार मावरी बताया। 'मावारी' और 'नेवाड़ी' शब्द का उच्चारण करने पर काफी हद तक एक जैसा लगता है। मृतका घायल अवस्था में थी और वह घरेलू नौकर थी। उसका उच्चारण शायद नहीं हो और शिक्षित व्यक्ति की तरह परिपूर्ण न हो। इस प्रकार, हमारे विचार में इस तर्क को निचली अदालत ने सही पाया।"

इसलिए अदालत ने कहा कि उक्त मृत्युकालिक बयान अपीलकर्ता की दोषसिद्धि का आधार बनाया जा सकता है।

अदालत ने दोषसिद्धि के फैसले को बरकरार रखते हुए अपीलकर्ता की सजा को आईपीसी की धारा 302 के तहत धारा 304 में बदलने के लिए उपयुक्त पाया। कोर्ट ने कहा कि तथ्यात्मक मैट्रिक्स को देखते हुए यह स्पष्ट है कि उसने अचानक आवेग में घटना को अंजाम दिया। तदनुसार, अपीलकर्ता की सजा को संशोधित किया गया।

केस टाइटल: प्रकाश कुमार मेवाड़ी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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