सीतापुर एस-आई की 'रहस्यमय' मौत | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीनियर आईपीएस अधिकारी द्वारा एफआईआर और जांच के आदेश दिए

Update: 2024-08-16 04:22 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह 54 वर्षीय पुलिस उपनिरीक्षक (एस-आई) की 'रहस्यमय' मौत की जांच सीनियर आईपीसी अधिकारी द्वारा करने का निर्देश दिया। उक्त पुलिस अधिकारी की इस साल अप्रैल में सीतापुर के मछरेहटा पुलिस थाने में कथित तौर पर अपनी सर्विस बंदूक से खुद को गोली मारने के बाद मौत हो गई थी।

जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ ने संबंधित पुलिस महानिरीक्षक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि एफआईआर दर्ज करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी फैसले का अनुपालन सुनिश्चित करने के बाद मामले की जांच किसी अन्य जिले के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी द्वारा की जाए।

अदालत ने निर्देश दिया,

“तीन महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन न तो याचिकाकर्ता के पति की मौत के मामले की जांच किसी तार्किक निष्कर्ष पर पहुंची है और न ही कथित पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके मामले की जांच की गई। मामला पुलिस अधिकारी की अप्राकृतिक मौत से संबंधित है। उपरोक्त के मद्देनजर, रिट याचिका का निपटारा संबंधित पुलिस महानिरीक्षक को निर्देश देते हुए किया जाता है कि वे ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य (2014) 2 एससीसी 1 के मामले में एफआईआर दर्ज करने के संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय का अनुपालन सुनिश्चित करें।"

अदालत ने यह आदेश उनकी पत्नी (गीता देवी) द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उनके पति अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित थे। हालांकि, उनकी हत्या कर दी गई, क्योंकि वह स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) द्वारा भ्रष्टाचार और उत्पीड़न का विरोध कर रहे थे।

अपनी याचिका में उन्होंने आरोप लगाया कि उनके पति ने अपने बेटे को (अपनी मृत्यु से कुछ घंटे पहले) एसएचओ की रिश्वत की मांग और इस संबंध में उनके उत्पीड़न के बारे में व्हाट्सएप मैसेज भेजा था। उनके वकील ने कहा कि पुलिस द्वारा किए गए दावों के विपरीत कि उनके पति की मौत आत्महत्या से हुई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि गोली का घाव उनके सीने के बाएं हिस्से पर लगा था। उनके आंतरिक अंग सुरक्षित थे, जिससे पता चलता है कि यह आत्महत्या का नहीं बल्कि हत्या का मामला था।

यह भी आरोप लगाया गया कि पुलिस ने परिवार को सूचित किए बिना शव की जांच और पोस्टमार्टम किया।

महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत को यह भी बताया गया कि हालांकि घटना की जांच के लिए सीतापुर के एडिशनल पुलिस अधीक्षक (दक्षिण) की अध्यक्षता में समिति गठित की गई, लेकिन जांच अभी तक अंतिम रूप नहीं दी गई। उच्च पुलिस अधिकारी जांच में देरी कर रहे हैं और केवल समय व्यतीत कर रहे हैं।

अंत में, अदालत को बताया गया कि पीड़ित की पत्नी ने अप्रैल में घटना की एफआईआर दर्ज करने के लिए पुलिस अधीक्षक, सीतापुर को अभ्यावेदन प्रस्तुत किया था, लेकिन अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। यहां तक ​​कि सीसीटीवी कैमरे, जो पुलिस स्टेशन में लगाए गए हैं और लगातार 24X7 काम कर रहे हैं, की सीसीटीवी फुटेज भी हासिल नहीं की गई।

इन दलीलों की पृष्ठभूमि में यह देखते हुए कि मामला पुलिसकर्मियों द्वारा 'ईमानदार' पुलिस अधिकारी की कथित हत्या से संबंधित है, जिसमें एसएचओ रैंक के जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए, अदालत ने मामले की जांच का निर्देश दिया।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी आगे की शिकायत के मामले में याचिकाकर्ता को फिर से इस अदालत में जाने की स्वतंत्रता होगी।

केस टाइटल- गीता देवी बनाम यूपी राज्य के माध्यम से एडील. मुख्य सचिव गृह विभाग सरकार लखनऊ और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 515

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