जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कथित क्रिकेट एसोसिएशन घोटाले में डॉ. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ PMLA के आरोप खारिज किए
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (JKCA) घोटाले में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत डॉ. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ दायर आरोप पत्र खारिज किया। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा निकाले गए निष्कर्षों पर अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य नहीं कर सकता है, जिससे ED के अधिकार क्षेत्र की सीमाओं पर मिसाल कायम होती है।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह विवाद JKCA से संबंधित धन के कथित दुरुपयोग से उपजा है। डॉ. फारूक अब्दुल्ला और JKCA के एक अन्य पदाधिकारी मोहम्मद सलीम खान के खिलाफ रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की धारा 120-बी, 406 और 409 के तहत श्रीनगर के राम मुंशी बाग पुलिस स्टेशन में शुरू में एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच CBI को सौंप दी गई, जिसने बाद में एफआईआर में उल्लिखित अपराधों के लिए डॉ. अब्दुल्ला सहित छह व्यक्तियों पर आरोप लगाते हुए आरोप पत्र दायर किया।
बाद में ED ने CBI की जांच का संज्ञान लिया और PMLA के तहत प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) दर्ज की, जिसमें कथित धन शोधन के लिए डॉ. अब्दुल्ला के खिलाफ अभियोजन शुरू किया गया। याचिकाकर्ता अहसान अहमद मिर्जा, जो डॉ. अब्दुल्ला के साथ सह-आरोपी हैं, जिनका प्रतिनिधित्व एडवोकेट शारिक जे. रियाज ने किया, ने ED की शिकायत और उसके बाद के अभियोजन को चुनौती दी।
तर्क का सार यह था कि CBI के आरोप पत्र में उल्लिखित अपराध अर्थात् धारा 120-बी, 406 और 409 आरपीसी PMLA के तहत अनुसूचित अपराध नहीं थे। यह दावा किया गया कि PMLA के तहत अभियोजन के लिए अनुसूचित अपराध से प्राप्त अपराध की आय की मौजूदगी की आवश्यकता होती है, जो इस मामले में स्थापित नहीं हुई।
रेयाज ने पवना डिब्बर बनाम प्रवर्तन निदेशालय में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहुत अधिक भरोसा किया, जहां यह माना गया कि PMLA के तहत अनुसूचित अपराध के रूप में सूचीबद्ध नहीं किए गए अपराध को करने की साजिश मामले को अधिनियम के दायरे में लाने के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि ED ने यह मानकर अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया कि धारा 120-बी आरपीसी (आपराधिक साजिश) अंतर्निहित अनुसूचित अपराध की अनुपस्थिति में अनुसूचित अपराध का गठन करती है।
दूसरी ओर, प्रवर्तन निदेशालय का प्रतिनिधित्व करने वाले एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने तर्क दिया कि CBI की चार्जशीट, हालांकि मुख्य रूप से गैर-अनुसूचित अपराधों से संबंधित है, इसमें ऐसे तत्व शामिल हैं, जो संभावित रूप से मामले को धारा 411 और 424 आरपीसी के तहत अनुसूचित अपराधों के दायरे में ला सकते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि CBI द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य के अपने स्वतंत्र मूल्यांकन के आधार पर PMLA के तहत अभियोजन के साथ आगे बढ़ना ED के लिए उचित था।
न्यायालय की टिप्पणियां:
जस्टिस संजीव कुमार ने दोनों पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत तर्कों की सावधानीपूर्वक जांच की और पाया कि PMLA अभियोजन इस धारणा पर आधारित था कि धारा 120-बी आरपीसी अनुसूचित अपराध है, एक व्याख्या जिसे पहले अहसान अहमद मिर्जा बनाम प्रवर्तन निदेशालय और अन्य में हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा बरकरार रखा गया। हालांकि, पवना डिब्बर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति को पलट दिया, जिसने स्पष्ट किया कि धारा 120-बी आरपीसी PMLA के तहत अनुसूचित अपराध तभी बनती है, जब साजिश में अनुसूचित अपराध का कमीशन शामिल हो।
न्यायालय ने टिप्पणी की:
“प्रवर्तन निदेशालय किसी भी तरह से CBI से श्रेष्ठ कोई प्राधिकरण या जांच एजेंसी नहीं है, न ही उसे जांच और उसके द्वारा निकाले गए निष्कर्ष के खिलाफ अपील करने की शक्ति या अधिकारिता प्राप्त है।”
जस्टिस कुमार ने आगे जोर दिया कि ED CBI के आरोपपत्र से स्वतंत्र रूप से अनुसूचित अपराध के अस्तित्व का अनुमान नहीं लगा सकता, जब CBI ने स्वयं याचिकाकर्ता पर PMLA के तहत किसी अनुसूचित अपराध का आरोप नहीं लगाया।
न्यायालय ने पवना डिब्बर बनाम प्रवर्तन निदेशालय और विजय मदल लाल चौधरी बनाम भारत संघ 2022 लाइव लॉ (एससी) 633 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर बहुत अधिक भरोसा किया, जिससे यह रेखांकित किया जा सके कि अनुसूचित अपराध का होना किसी भी PMLA अभियोजन के लिए अनिवार्य है।
न्यायालय ने दोहराया,
“2002 अधिनियम के तहत अधिकारी किसी भी व्यक्ति के खिलाफ धन शोधन के लिए कार्रवाई नहीं कर सकते, यह मानकर कि उनके द्वारा बरामद की गई संपत्ति अपराध की आय होगी और यह अनुसूचित अपराध है, जब तक कि यह अधिकार क्षेत्र वाली पुलिस के पास रजिस्टर्ड न हो या सक्षम फोरम के समक्ष शिकायत के माध्यम से जांच लंबित न हो।”
शिकायत की प्रकृति और अभियोजन शुरू करते समय ED की ओर से गलत दिशा-निर्देश पर टिप्पणी करते हुए पीठ ने कहा,
“प्रतिवादी द्वारा नामित विशेष न्यायालय के समक्ष दायर की गई शिकायत के अवलोकन से यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि ECIR रजिस्टर्ड किया गया और प्रतिवादियों द्वारा अभियोजन केवल इस धारणा पर शुरू किया गया कि धारा 120-बी आरपीसी जिसके संबंध में CBI द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, अनुसूचित अपराध था।”
टिप्पणियों और कानूनी मिसालों के मद्देनजर, न्यायालय ने ED की शिकायत और PMLA के तहत विशेष न्यायालय द्वारा तय किए गए आरोपों को खारिज कर दिया। हालांकि, जस्टिस कुमार ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय ED को नई ECIR दर्ज करने और अभियोजन शुरू करने से नहीं रोकता, यदि श्रीनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अंततः PMLA के तहत किसी भी अनुसूचित अपराध के लिए आरोप तय करते हैं।
केस टाइटल: अहसान अहमद मिर्जा बनाम प्रवर्तन निदेशालय