मप्र हाईकोर्ट ने रेस्तरां में एक्सपायर्ड 'माज़ा' के लिए कोकाकोला के खिलाफ समन रद्द करने से इनकार किया, कहा- निर्माता को ऐसे उत्पाद वापस लेने चाहिए

Update: 2023-10-26 07:28 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में खुदरा विक्रेता द्वारा बिक्री के लिए प्रदर्शित कथित फंगल संक्रमित 'माज़ा मैंगो ड्रिंक' के लिए कोकाकोला के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया।

कंपनी और उसके नामांकित व्यक्ति द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि कंपनी यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है कि समाप्ति अवधि के बाद असुरक्षित समझा जाने वाला कोई भी खाद्य उत्पाद खुदरा विक्रेताओं के स्टोर में न रहे, भले ही कंपनी द्वारा उत्पाद सीधे अंतिम उपभोक्ता को नहीं बेचा जाता है।

अदालत ने कहा,

“…निर्माता भी विक्रेता है और यह उसका कर्तव्य है कि असुरक्षित खाद्य उत्पाद उपभोक्ताओं को बिक्री के लिए नहीं रखा जाना चाहिए। सभी पैकर, थोक विक्रेता, वितरक और विक्रेता एक निर्माता के साथ अनुबंध पर काम करते हैं। इसलिए यह निर्माता का कर्तव्य है कि वह यह देखे कि उसका कोई भी उत्पाद थोक विक्रेता, वितरक या विक्रेता के स्टोर में नहीं है और उसकी समाप्ति तिथि से पहले उसे हटा दिया जाना चाहिए या वापस ले लिया जाना चाहिए…”

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम की धारा 27 के तहत असुरक्षित खाद्य उत्पादों की बिक्री के लिए निर्माताओं, पैकर्स, थोक विक्रेताओं और वितरकों की देनदारी गिनाई गई।

जस्टिस विवेक रुसिया की एकल न्यायाधीश पीठ ने यह भी कहा कि यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि निर्मित पेय 02.08.2012 की मुद्रित समाप्ति तिथि से पहले वितरक और खुदरा विक्रेता तक पहुंच गया था या नहीं। अदालत ने कहा कि यह ऐसा मुद्दा है, जिसे पर्याप्त सबूतों पर भरोसा करने के बाद न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा मुकदमे के चरण में तय किया जाना चाहिए।

जस्टिस रुसिया ने कहा,

"इस स्तर पर यह नहीं कहा जा सकता कि केवल आरोपी नंबर 1 असुरक्षित खाद्य उत्पाद यानी "माज़ा मैंगो ड्रिंक" की बिक्री के लिए जिम्मेदार है और याचिकाकर्ताओं/आरोपी नंबर 1 या इसकी दुकान में रखने के दौरान उत्पाद में विकसित फंगल है। जब इसे विनिर्माण इकाई से भेजा गया तब यह वहां था। इस स्तर पर संहिता की धारा 482 के तहत इस याचिका में ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता।"

अदालत ने उस पेय के संबंध में कोको कोला के दायित्व के बारे में तर्क दिया, जो 02.02.2012 को निर्मित किया गया था और लेबल पर 'छह महीने से पहले सर्वश्रेष्ठ' के रूप में चिह्नित किया गया था।

उल्लेखनीय है कि खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग और लेबलिंग) विनियम, 2011 के विनियम 1.2 के विनियम 1 में कहा गया कि शब्द "बेस्ट बिफोर" इंगित करता है कि 'यदि किसी भी स्तर पर उत्पाद असुरक्षित हो जाता है तो भोजन उल्लिखित अवधि के बाद बेचा नहीं जाएगा।'

पीठ ने यह भी बताया कि कोको कोला ने बिक्री दस्तावेज, प्रेषण या चालान जैसे कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए हैं, जो इंगित करते हों कि उत्पाद वास्तव में विनिर्माण इकाई से बाद के प्राप्तकर्ताओं को कब भेजा गया था।

पृष्ठभूमि और न्यायालय का तर्क

मिलावट के संदेह पर खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा दिनांक 24.03.2013 को पेय का नमूना लिया गया। राज्य खाद्य जांच लैब के खाद्य विश्लेषक ने दिनांक 08.04.2013 की रिपोर्ट के माध्यम से पेय को 'बोतल की गर्दन और मुंह और उत्पाद की सतह पर कवक के विकास' के कारण उपभोग के लिए असुरक्षित माना। खाद्य एवं औषधि प्रशासन के नामित अधिकारी ने खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 (एफएसएए, 2006) की धारा 51, 52, 58 और 59 का उल्लंघन पाया। इसलिए नामित अधिकारी ने मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करने की मंजूरी दे दी और एफएसएए, 2006 की धारा 36(3)(ई) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर खाद्य सुरक्षा अधिकारी को भी ऐसा करने के लिए अधिकृत किया। 22.03.2014 को खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने जेएफएमसी, टोंक खुर्द, देवास जिले के समक्ष याचिकाकर्ताओं सहित आठ आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की।

20.08.2014 को मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ताओं सहित फरार आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ समन जारी करने का निर्देश दिया। वर्तमान याचिका मजिस्ट्रेट द्वारा दिनांक 20.08.2014 का आदेश रद्द करने की मांग करते हुए दायर की गई।

याचिकाकर्ताओं के वकील की इस दलील पर विचार करते हुए कि मजिस्ट्रेट ने कई असंबद्ध मामलों में प्रक्रिया जारी करने के लिए सामान्य आदेश पारित करके मामले में गलत तरीके से संज्ञान लिया है, जस्टिस विवेक रूसिया ने कहा कि दिनांक 20.08.2014 का आदेश उनका नहीं है, जिसका मजिस्ट्रेट ने संज्ञान ले लिया है।

उन्होंने कहा,

“…यह आदेश 20.06.2014 से 27.06.2014 तक रिकॉर्ड रूम के भौतिक निरीक्षण के दौरान पारित किया गया और रिकॉर्ड रूम में विभिन्न अनियमितताएं पाई गईं, इसलिए फरार आरोपियों के खिलाफ सभी लंबित वारंटों की तामील करने के आदेश जारी किए गए हैं। वर्तमान मामले में खाद्य सुरक्षा अधिकारी द्वारा 22.03.2014 को शिकायत दर्ज की गई…”

इसके अलावा, एकल न्यायाधीश पीठ ने यह इंगित करने के बाद टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता सभी ऑर्डर शीट प्रस्तुत करने में भी विफल रहे हैं, जो इस मुद्दे पर कुछ प्रकाश डाल सकती है।

कोको कोला के इस तर्क के संबंध में कि नामित अधिकारी उन अपराधों में मंजूरी नहीं दे सकता है या अपने दम पर अभियोजन शुरू नहीं कर सकता है, जिसमें सजा के रूप में कारावास और न केवल जुर्माना शामिल है, अदालत ने उक्त प्रस्ताव को यह कहकर अमान्य कर दिया कि ट्रायल के चरण में इसकी जांच की जा सकती है।

अदालत ने कहा,

“…इस मामले में अधिनियम के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए विभिन्न धाराओं के तहत शिकायत दर्ज की गई है, जिसके तहत उनमें से कुछ को केवल जुर्माने से दंडनीय है और उनमें से कुछ को कारावास से दंडनीय है; साथ ही आयुक्त द्वारा नामित अधिकारी को शक्ति सौंपी गई है। इसलिए ट्रायल कोर्ट ट्रायल के दौरान इस मुद्दे की जांच कर सकता है, क्योंकि मंजूरी की वैधता के मुद्दे की जांच ट्रायल कोर्ट द्वारा ट्रायल के दौरान विशिष्ट मुद्दा बनाकर की जा सकती है। इस स्तर पर यह नहीं माना जा सकता कि याचिकाकर्ता नंबर 2 को भी कारावास की सजा दी जाएगी।''

केस टाइटल: हिंदुस्तान कोका कोला बेवरेजेज प्रा. लिमिटेड और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य, निर्मला सोमकुवर, खाद्य सुरक्षा अधिकारी के माध्यम से।

केस नंबर: आपराधिक मामला नंबर 36435/2019

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